राजीव
यह कैसी विडंबना है, कैसा विरोधाभास, कौन सी साजिश है। पूरी दुनिया को कामसूत्र जैसा उत्कृष्ट और महान ग्रन्थ देने वाले देशवासियों को सेक्स के मामले में दकियानूस बताया जा रहा। कहा जा रहा कि भारतीय जरूरत से ज्यादा सेक्स करते हैं लेकिन वो सेक्स का आनंद नहीं ले पाते इसलिए उन्हें सेक्स बोरिंग लगने लगता है। यह शिगूफा कंडोम बनाने वाली एक कंपनी ने छोड़ा है। ख़ास बात यह है ट्विटर प्लेटफार्म पर कुछ देर तक हैश टैग “व्हाई सो बोरिंग” के साथ इस विषय पर चर्चा होती रही।
इस बात में कुछ सचाई है। कारण अलग अलग हो सकते हैं, जैसे गरीबी, तनाव, जीवन में एकरूपता या दकियानूसी सोच। भारत में आनंद की अनुभूति के लिए दो-तिहाई भारतीय आबादी सेक्स में बहुत ज्याद संलिप्त रहती है और बहुत जल्दी बोर हो जाती है इस बात में कुछ सचाई है। जनता सेक्स में आनंद खोजने के लिए अन्य तरीके अपनाती है फिर भी अतृप्त रह जाती है। यहाँ स्पष्ट कर देना जरूरी है कि सेक्स में “आनंद” से तात्पर्य यहाँ कपल को सेक्स के दौरान आनंद की अनुभूति से है। सेक्स के दौरान स्त्री-पुरुष दोनों के आनंद से है। संभव है कि सेक्स क्रिया में पुरुष या स्त्री में से किसी एक को आनन्द मिले लेकिन अगर दूसरे को न मिले तो इसे सेक्स में चरमानंद (ओर्गेस्म) नहीं माना जा सकता।
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कुछ दिन पहले एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया था कि शहरी और ग्रामीण महिलाओं में करीब 70 फीसदी सेक्स के दौरान चरमानंद या ओर्गेस्म का अनुभव ही नहीं करती। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पुरुषों में स्खलन के दौरान जिस तरह के आनंद की प्राप्ति होती है उसी तरह तरह के आनंद की अनुभूति महिलाओं को स्खलन या ओर्गेस्म के दौरान होती है। लेकिन यह कडुआ सत्य है कि भारतीय पुरुष सेक्स में निहायत स्वार्थी होते हैं। उन्हें सिर्फ अपने चरमानंद से मतलब होता है अपने पार्टनर के नहीं। अपवाद स्वरुप इसका उल्टा भी हो सकता है।
बस यहीं से समस्या शुरू होती है। इसी से सेक्स के वाद असंतोष या ऊब पनपती है। चूंकि लोगों को लगता है कि सेक्स में आनंद की कमी कंडोम की वजह से है तो वो बिना कंडोम के सेक्स करने लगते हैं या या कोई अन्य उपाय अपनाते हैं। लेकिन ऊब किम असली वजह कंडोम या अतिसम्भोग नहीं बल्कि ओर्गेस्म के प्रति अज्ञानता है। ऐसा ट्विटर पर आई टिप्पणियों को देखने से लगता है।
एक ने लिखा है कि इस ऊब का कारण भारतीय कंपनियों की कार्यसंस्कृत भी है। ये लोगों को इतना निचोड़ लेती हैं कि थकाहारा इंसान सेक्स का आनंद ही नहीं ले पता। अनहेल्दी फ़ूड, व्यायाम न करने से भी सेक्स उबाऊ लगाने लगता है।
ट्विटर पर कुछ लोगों की टिप्पणी बहुत चालू किस्म की है जैसे अश्लील वीडिओ देखने के बजाय इस पर अमल करें या कामसूत्र पढ़ें। किसी ने सेक्स में असंतुष्टि पर “अंगूर खट्टे” होने का उदाहरण दिया। किसी ने लिखा है की सेक्स में हमेशा एक जैसी अनुभूति नहीं होती। कभी हम इसे एन्जॉय करते हैं, कभी तृप्ति का भाव आता है और कभी निराशा भी होती है। इसे लेकर किसी तरह का पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहिए। किसी ने सलाह दी कि सेक्स को रुचिकर बनाने के लिए इसकी एकरूपता को तोडना जरूरी है। इस पर कुछ समलैंगिक लोगों की भी टिप्पणी है। कुछ लोगों ने एक रूपता तोड़ने के लिए अहतियात के साथ एनल सेक्स की सलाह दी है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकला कि अगर आपको सेक्स का आनंद लेना है और आप चाहते हैं यह उबाऊ न लगे तो आपको पहले अपने सेक्स पार्टनर के चरमानंद या ओर्गास्म का ध्यान रखना होगा। और इसके लिए मशीन नहीं मनुष्य की तरह संवेदनशीलता के साथ सम्भोग करें, आप कभी बोर नहीं होंगे। सेक्स को टैबू नहीं श्रृष्टि की रचना में आनंद अनुभूति का वरदान माने। यह कंडोम बनाने वाली कंपनी नहीं कामसूत्र कहता है।
(लेख में लेखक के निजी विचार हैं)
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