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पेटेंट के मामले में क्यों फिसड्डी है भारत

स्पेशल डेस्क

भारत सरकार ने नवंबर में इंडियन पेटेंट ऑफिस (आईपीओ) और अन्य देशों के पेटेंट दफ्तरों के बीच पेटेंट प्रोसीक्यूशन हाईवे (पीपीएच) बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। हाईवे से आशय है कि पेटेंट आवेदन पर कार्रवाई के लिए फास्टट्रैक प्रकिया अपनाई जाए। फिलहाल पीपीएच का एक पायलट प्रोग्राम जापान के साथ शुरू किया गया है।

भारत सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि भारत पेटेंट के मामले में पीछे है। बीते दिनों राज्यसभा में लिखित जवाब में केन्द्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने बताया कि देश के शीर्ष शोध और प्रौद्योगिकी संस्थानों ने 2009-2019 की अवधि यानी एक दशक में 25 हजार से अधिक पेटेंट के आवेदन दिए, पर उनमें से करीब पांच हजार को ही पेटेंट हासिल हो पाया।

हर्षवर्धन ने बताया कि सबसे ज्यादा पेटेंट आवेदन आईआईटी ने जमा कराए थे, उसके बाद वैज्ञानिक और औद्योगिक शोध परिषद (सीएसआईआर), एनआईटी और डीआरडीओ की अर्जियों का नंबर था।

सबसे ज्यादा पेटेंट सीएसआईआर की स्वीकृत हुई। सीएसआईआर की 2,400 में से 1,917 अर्जियां पेटेंट के लिए स्वीकृत हुईं, जबकि आईआईटी की स्वीकृत पेटेंट की संख्या केवल 519 थी। आईआईटी ने तीन हजार से ज्यादा आवेदन किया था। आईआईटी के बराबर ही डीआरडीओ को पेटेंट मिले, जबकि उसने 998 के लिए आवेदन किया था।

वहीं एनआईटी के 2016 आवेदनों के सापेक्ष उसके सिर्फ 11 पेटेंट स्वीकृत हुए तो जीबी पंत यूनिवर्सिटी को 14 और अन्ना यूनिवर्सिटी को 13 पेटेंट मिले।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के अनुसार अमेरिका और चीन की तुलना में भारत के पेटेंट पंजीकरण काफी कम है। अमेरिका और चीन में एक साल में एक लाख से अधिक पेटेंट रजिस्टर किए जाते हैं, जबकि भारत में करीब दो हजार। इस तरह से भारत की अमेरिका या चीन से तुलना करना बेमानी है।

2017 में भारत में साढ़े 46 हजार आवदेन जमा किए गए तो उसी अवधि में अमेरिका में छह लाख और इससे दोगुना चीन में जमा हुए। इस अवधि में भारत में स्वीकृत पेटेंट सिर्फ 12 हजार थे।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के एक आकलन के मुताबिक 2016-17 के दौरान भारत ने अपनी जीडीपी का महज दशमलव सात प्रतिशत ही आर एंड डी यानि शोध और विकास कार्यकर्मों पर खर्च किया। जापान में ये प्रतिशत 3.2 था, अमेरिका में 2.8 और चीन में 2.1।

अंतरराष्ट्रीय पेटेंट के सबसे अधिक आवेदनों के लिहाज से 2018 में दुनिया के पांच शीर्ष देश रहे – क्रमश: अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया। घरेलू पेटेंट के मामले में चीन दुनिया में सबसे आगे है।

अमेरिका है सबसे आगे

अमेरिका पेटेंट ग्रांट के मामले में भी सबसे आगे है। 2018 में उसने एक लाख 72 हजार से ज्यादा पेटेंट स्वीकृत कराए तो 2019 में सितंबर तक उसके पास ग्रांटेड पेटेंट की संख्या एक लाख 44 हजार थी। अमेरिका के बाद जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और जर्मनी का नंबर आता है।

टेकरिपब्लिक वेबसाइट के अनुसार पेटेंट के मामले में नवोन्मेषी देशों में शीर्ष पर ताईवान और इस्राएल के नाम भी हैं। वैसे डब्ल्यूआईपीओ के अनुसार दुनिया का सबसे अधिक नवाचार उद्यत देश स्विट्जरलैंड है।

2019 के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में स्विटजरलैंड के बाद स्वीडन, अमेरिका, नीदरलैंड्स और यूके का नंबर है। 129 देशों के इस सूचकांक में भारत की रैंक 52वीं है।

भारत में पेटेंट की प्रक्रिया भारतीय पेटेंट कानून, 1970 से निर्धारित होती है। ट्रिप्स के तहत कुछ संसोधन हुए हैं। 2005 में भारत ने अपने पेटेंट कानून में संसोधन किया था और विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के मुताबिक उसे ढालने की कोशिश की थी। उस समय भारत में 56 हजार आवेदन लंबित थे।

भारत में पेटेंट देने के मामले में ज्यादा समय लगता है। ओईसीडी के अनुसार, 2017 में जहां जापान ने 15 महीने, चीन ने 22 और अमेरिका ने 24 महीने पेटेंट स्वीकृत करने में लगाए वहीं भारत ने 64 महीनों में ये काम किया।

भारत में शोधार्थियों की भी कमी है। 2016 के एक आंकड़े के अनुसार भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर 216 शोधकर्ता हैं, जबकि जापान में पांच हजार से ज्यादा, अमेरिका में चार हजार से ज्यादा और चीन में हजार से ज्यादा शोधकर्ता हैं।
अमेरिका में तो कहा ही जाता है कि सिलिकॉन वैली, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध और पेटेंटों की देन है।

भारत पेटेंट के मामले में पीछे है तो इसकी कई वजह है। भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों की अहमियत को लेकर जागरूकता का अभाव माना जाता है। जब भी कोई नवाचार संबंधी सर्वे जारी होता है तो भारत की रैंक इसमें नीचे ही नजर आती है। नवोन्मेष की ओर पीठ इसलिए भी है क्योंकि सामने और भी कई सारी चुनौतियां और कमजोरियां और विवशताएं हैं। कमजोर बुनियादी ढांचा और सीमित संसाधनों की वजह से एक विशाल बैकलॉग बना है।

भारत में आवेदनों की संख्या ज्यादा है और उनकी जांच करने वाले पर्यवेक्षकों की संख्या कम। जाहिर है इसका असर स्वीकृत पेटेंट की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। बौद्धिक संपदा प्रशासन को पारदर्शी और चुस्त बनाए जाने की जरूरत भी है। पेटेंट विभाग अभी वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन आता है, जिसकी भारी-भरकम और जटिल सरकारी मशीनरी में पेटेंट का मुद्दा शायद उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता।

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