प्रीति सिंह
जॉर्ज ऑरवेल ने अपने उपन्यास 1984 में लिखा है, ‘जिसका वर्तमान पर नियंत्रण होता है उसी का अतीत पर भी नियंत्रण होता है।’
इसका मतलब साफ है कि आप अपने अतीत को मनमाफिक बना सकते हैं , क्योंकि वर्तमान में आपको इसकी जरूरत पड़ती है। भारत में ऐसा ही हो रहा है। इतिहास को यहां हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सत्तासीन सरकार अतीत को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। सारा सियासत वोट बैंक को लेकर है।
देश में पिछले एक साल में ऐसी कई घटनाएं हुई जहां इतिहास के साथ छ़ेड़छाड़ करने की कोशिश की गई। दो साल पहले जब राजस्थान में बीजेपी सत्ता में थी तो राजस्थान बोर्ड की किताबों में सावरकर को गांधी से बड़ा नायक दर्शाने और राजस्थान यूनिवर्सिटी की किताबों में तथ्यों के विपरीत महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी की लड़ाई का विजेता बताने की खबरें सुर्खियां बनीं थी। पर जब कांग्रेस सत्ता में आई तो फिर किताबों में बदलाव हो गया। जून 2019 में राजस्थान की स्कूली किताबों में विनायक दामोदर सावरकर के नाम के आगे से ‘वीर’ हटा लिया गया था। सत्ता में आने के छह माह के भीतर कांग्रेस सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रमों में बदलाव किया।
राजस्थान के बाद जुलाई 2019 में नागपुर विश्वविद्यालय का सामने आया था। महाराष्ट्र की नागपुर विश्वविद्यालय के बीए द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका और उसका इतिहास शामिल किया गया था। जिसका कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने विरोध दर्ज कराया था।
विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम से ‘राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनिज्म’ का हिस्सा हटा दिया था, जिसमें संघ की भूमिका पर चर्चा की गई थी। इसके साथ ही हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग वाला हिस्सा भी हटा दिया है और इसके स्थान पर राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया। इसका खूब विरोध हुआ था।
हाल-फिलहाल जो मामला सामने आया है उसका जिक्र करते हैं। मणिपुर में बोर्ड के कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान के पेपर में छात्रों से कमल बनाने और ‘राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू के दृष्टिकोण के नकारात्मक लक्षणों’ के बारे सवाल पूछा गया है। इसको लेकर मणिपुर कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि परीक्षा के जरिए छात्रों को नेहरु की नकारात्मक छवि पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं कि आज की तारीख में राजनीतिक दलों की जरूरत यही है कि वो अपने मन का इतिहास पढ़ाएं। मतलब मणिपुर में बीजेपी को ऐसी जरूरत थी तो कर दिया। राजस्थान में कांग्रेस को जरूरत थी तो उसने कर दिया। बीजेपी को जो जरूरत महसूस हो रही है, वह उसे पढ़ा रही है। हो सकता है आने वाले दिनों में देश अन्य हिस्सों में भी ऐसा देखने को मिल सकता है। दरअसल इतिहास के तथ्यों से इन्हें कोई मतलब नहीं है। इनकी राजनीतिक जरूरते सच-झूठ जिससे भी पूरी हो रही है, वह वही कर रहे हैं।
वो कहते हैं, वर्तमान में सरकारों का सबसे ज्यादा जोर इतिहास बदलने पर है। इतिहास को देश में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सत्तासीन सरकार अतीत को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है।
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इतिहास के साथ छेड़छाड़ घातक
इतिहास के प्रवक्ता डा.अभिषेक पांडेय कहते हैं इतिहास के मामले में मनमर्जी के झूठ फैला देना घातक हो सकता है। यह किसी सभ्य और जागरूक समाज की निशानी नहीं है। अपने ही ऐतिहासिक महापुरुषों और महास्त्रियों का चरित्र-हनन करके हमारे यहां पीढिय़ों को कुंठित मानसिकता का बनाया जा रहा है।
समाज में द्वेष और विभाजन पैदा करने वाली ऐतिहासिक शख्सियतों का अतिश्योक्तिपूर्ण महिमामंडन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। यह लोगों की स्मृतियों से खेलने का सुनियोजित प्रयास है। हो सकता है भविष्य में ऐतिहासिक रिकॉर्डों से भी छेड़छाड़ की जाए। आधिकारिक पाठ्य पुस्तकों को भी अजीबो-गरीब नकारात्मक तथ्यों से भर दिया जाए।
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क्या हो इतिहास का वास्तविक उद्देश्य
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि इतिहास के साथ सियासत हो रही है। पहले भी इतिहास और इतिहास लेखन के साथ राजनीति हुई है, लेकिन वर्तमान में राजनीतिक दल अपने हिसाब से इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं।
दरअसल इतिहास का वास्तविक उद्देश्य अतीतोन्मुखी बनाना नहीं, बल्कि भविष्योन्मुखी बनाना होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। राजनेता इतिहास को राजनीतिक अफवाह और प्रचार का हथकंडा बनाने पर तुले हुए हैं। अतीत के अन्यायों की झूठी कहानियों के जरिए सुनियोजित तरीके से हमारी नई पीढिय़ों में घृणा, द्वेषभाव और सांप्रदायिक आक्रोश भरा जा रहा है।
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