जुबिली न्यूज डेस्क
देहरादून: ऋषिकेश, जो कि तीर्थनगरी के नाम से जाना जाता है। यहां के कुछ इलाकों के हिंदू घर में बनी मजारें कुछ और ही कहानी बयां करती हैं। ये मजारें समुदाय विशेष के लोगों ने नहीं बल्कि हिंदू परिवारों ने अपने घरों में पिछले 30-40 वर्षों से बनाई हुई हैं। हिंदू परिवारों के घरों में स्थित इन मजारों के बनाने की कहानी भी लोग अलग-अलग बताते हैं।
हालांकि अब ये लोग घरों के सामने बनी इन मजारों को खुद ही तोड़ कर हटा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि अक्सर हिंदूवादी संगठनों के लोग ऐसे घरों में कभी भी धमक पड़ते हैं जहां मजारें बनी हुई हैं। यही कारण है कि अब वे लोग इन मजारों को हटा रहे हैं ताकि किसी तरह का विवाद ना हो।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश
उत्तराखंड में पिछले कुछ महीनों में हाईकोर्ट के आदेश पर सरकारी और वन विभाग की भूमि पर बने मजारों, मदरसों और मंदिरों को हटाकर अतिक्रमण मुक्त किया था। हालांकि इस अभियान को सीधे तौर पर जनता ने मजार मुक्त देवभूमि अभियान करार दिया था। इसके बाद तमाम हिंदूवादी संगठनों ने भी मजारों को हटाने के लिए कमर कस ली थी और जगह-जगह जाकर ऐसी मजारों को ढूंढ कर सरकार के संज्ञान में लाए जो प्रशासन की नजरों में नहीं आ पाए थे।
दो गांवों में 35 मजार
ऋषिकेश के गुमानीवाला और भट्टोवाला गांव में लगभग 35 घरों में मजारें चिह्नित की गई हैं जिन्हें लोगों ने अपने घरों के भीतर या आंगन में बनाया हुआ है। हैरत की बात तो यह है कि यह मजारें कोई सदियों पुरानी नहीं बल्कि 15, 20, 30 या ज्यादा से ज्यादा 40 साल पुरानी ही हैं। इनके बनने की वजह भी लोग अलग-अलग बता रहे हैं। भट्टोवाला और गुमानी वाला के तमाम घरों में मजारें हैं। गुमानी वाला के ग्रामीणों का मानना है कि उनके बुजुर्गों ने यही बात बताई है कि कोई फकीर बाबा जिसे पीर बाबा भी कहा जाता है उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। उन्हीं की याद में उन लोगों ने अपने घरों में मजार स्थापित की है।
‘नहीं चाहते अगली पीढ़ी किसी विवाद से जूझे’
ग्रामीण गिरीश नेडवाल का कहना है कि उनकी मां ने उन्हें बताया था कि जब वह 20 साल पहले बहुत बीमार हुए थे तब वे उन्हें लेकर किसी पीर बाबा के यहां गए थे और उनकी दुआ से वे ठीक हो गए। इसके बाद उनकी माता की पीर बाबा पर आस्था बढ़ गई और उन्होंने घर पर ही मजार की स्थापना कर दी। नेडवाल का का कहना है कि अब वे लोग नहीं चाहते हैं कि उनकी अगली पीढ़ी मजार के कारण किसी भी विवाद से जूझे, इसीलिए उन्होंने मजार को हटाने का मन बना लिया है।
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मुस्लिम परिवारों का कोई रोल नहीं
इसमें मुस्लिम परिवारों की यहां कोई दखलअंदाजी नहीं है। इन दोनों गांवों में अभी तक नौ परिवारों ने अपने घरों से मजारें हटा दी हैं। परिवार खुद ही इन मजारों को अपने घरों से हटा रहे हैं। अन्य लोगों का कहना है कि जिनके घरों में मजारें हैं वहां आए दिन किसी न किसी हिंदू संगठन के लोग धमक पड़ते हैं। या स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा उन्हें मजार हटाने के लिए कहा जा रहा है। किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए वे अब इन मजारों को हटा रहे हैं।
हिंदूवादी संगठनों ने मजार तोड़ने का चलाया अभियान
विदित हो कि पिछले दिनों कुछ हिंदूवादी संगठनों ने ऋषिकेश के कई घरों में जाकर मजार तोड़ने का अभियान चलाया था। इस दौरान कई बार विवाद भी हुए, लेकिन कुछ लोगों ने खुद ही मजार हटाने का आश्वासन दिया और मजार तोड़ भी दी। इसके बावजूद अभी भी कई घरों में मजार स्थापित होने को लेकर लोगों में गुस्सा है।