Monday - 28 October 2024 - 4:16 PM

आखिर क्यों यह जर्मन गोसेविका भारत छोड़ने को थी तैयार

राजीव ओझा

यह खबर उत्तर प्रदेश वासियों के लिए प्रेरक भी है और सबक लेने वाली भी। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने जब से प्रदश में सत्ता सम्भाली है, गो संरक्षण और गोसेवा उनकी प्रमुखता सूची में है।

योगी सरकार गोरक्षा के लिए प्रति गोवंश प्रतिदिन 30 रूपये दे रही है। इसके आलावा निजी संस्थाओं से भी गोसेवा के लिए चंदे का प्रावधान किया गया है। सरकार ने इसके लिए अलग बजट का भी रखा है। इन प्रयासों के बावजूद गोशाला और गोसंरक्षण की कार्ययोजना उस तरह से आगे नहीं बढ़ रही जैसी की अपेक्षा की गई थी।

कुछ गोशालाओं में गायों की भूख से मरने या बीमार होने की खबरे अभी भी आ रहीं हैं। कुछ गोशालों में गोवंशों के फर्जी आंकड़े प्रस्तुत किये गए। महराजगंज में ऐसी शिकायतें मिलने पर डीएम और कुछ अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई। दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो निस्वार्थ भाव से गोसेवा में लगे हुए हैं। ऐसे ही एक महिला हैं सुदेवी दासी। इनका असली नाम है फेडरिक इरीना ब्रूनिंग।

 

इरीना जर्मनी की हैं। सुदेवी दासी यानी इरीना को निस्वार्थ गोसेवा के लिए स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। सुदेवी दासी पिछले लगभग तीन दशक से भी अधिक समय से मथुरा के गोवर्धन में गोशाला खोलकर गायों की सेवा में लगी हुई हैं।

जर्मन नागरिक फ्रेडरिका एरिक बूनिंग उर्फ सुदेवी दासी करीब तीन दशक पहले पहले माथुरा घूमने आईं थी। यहाँ लावारिस गायों की हालत देख उन्होंने गोसेवा का संकल्प लिया और मथुरा में गोसेवा में जुट गईं। सुदेवी मथुरा के राधाकुंड में कोन्हई रोड स्थित राधा सुरभि गौशाला चलाती हैं। उनकी गोशाला में सैकड़ों बेसाहरा गोवंश का लालन-पालन होता है। गोसेवा के लिए उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के पहले एक समय ऐसा आया था जब कुछ कानूनी खामियों के चलते वीसा अवधि न बढ़ने के कारण व्यथित सुदेवी ने पद्मश्री लौटकर जर्मनी लौटने का फैसला कर लिया था।

बात तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक पहुँच गई। सुषमा स्वराज ने सुदेवी की फाइल तलब कर की और उनके हस्तक्षेप से कानूनी खामियां दूर करने के बाद सुदेवी दासी के वीसा की अवधि बढ़ा दी गई। सुदेवी ने उस समय सुषमा स्वराज को ट्वीट कर धन्यवाद भी दिया था। अब सुदेवी दासी को पहला स्वामी ब्रह्मानंद पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।

ख़ास बात यह है कि सुदेवी के लिए गोशाला में रहने वाली सभी गौएँ उनके परिवार की तरह हैं । सुदेवी बढ़िया हिंदी बोलती हैं और उन्होंने हर गाय को नाम दे रखे हैं। उनकी गोशाला में किसी बछड़े का नाम कृष्णा है तो बछिया का नाम है राधा। गौएँ भी उनकी भाषा समझती हैं। अपना नाम पुकारे जाने पर ये मवेशी दौड़े चले आते हैं। सुदेवी की निस्वार्थ सेवा उन लोगों के लिए सबक है जो गो सेवा को लेकर राजनीति करते हैं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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