पुष्पेंद्र का एनकाउंटर और बैकफुट पर सरकार!
राजेंद्र कुमार
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में 28 वर्षीय पुष्पेंद्र यादव की मौत को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार बैकफुट पर है। पुष्पेंद्र की 6 अक्टूबर को पुलिस की गोली से मौत हो गई थी। पुलिस मुठभेड़ (एनकाउंटर) में मारे गए इस युवक की मौत को लेकर यूपी पुलिस पर एक बार फिर फर्जी एनकाउंटर करने का आरोप लगा है। ऐसा ही आरोप यूपी पुलिस पर सरधना क्षेत्र में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए इरशाद का मामले में और लखनऊ में पुलिस की गोली से हुई एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारी की मौत को लेकर भी लगा था। पुष्पेंद्र के मामले को लेकर सूबे में राजनीतिक गर्मी बढ़ी है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी पुष्पेंद्र यादव के परिजनों से मुलाकात करने के बाद आरोप लगाया है कि पुलिस निर्दोष लोगों की जानबूझकर एनकाउंटर के नाम पर हत्या कर रही है।
अखिलेश यादव के इस आरोप के बाद पुलिस ने दावा किया है कि पुष्पेन्द्र ने एक पुलिस अफसर पर गोली चलाई, जिसके बाद पुलिसवालों से उसका एनकाउंटर हुआ और पुष्पेंद्र की मौत हो गई। जबकि पुष्पेंद्र के परिवारीजनों का कहना है कि रिश्वत देने से मना करने पर उसे मार दिया गया। ऐसे आरोप के बीच बसपा सुप्रीमों मायावती और कांग्रेस ने भी पुष्पेंद्र की मौत को लेकर योगी सरकार की एनकाउंटर नीति और पुलिस की कार्य प्रणाली को ही नए सिरे से कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल हो रहा है कि सूबे की पुलिस मासूमों को मार कर क्यों बहादुर होने का दिखावा करती है? क्यों वह शरण में आए व्यक्ति की जान चंद लोगों भीड़ से नहीं बचा पाती? और छोटे मोटे अपराध के आरोपियों को एनकाउंटर में मार कर कानून व्यवस्था बेहतर होने का दिखावा करती है? और शातिर अपराधी और शोहदों की मनमानी पर पुलिस अंकुश नहीं लगा पा रही है। और क्यों जेल में बंद अपराधियों को पिकनिक मनाने दे रही है।
विपक्षी दलों के इन सवालों का जवाब योगी सरकार नहीं दे रही है। मुख्यमंत्री इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। और प्रशासन को विपक्षी दलों के सवालों का जवाब देने में लगा दिया गया है। जिसके चलते ही ऐसे सूबे की पुलिस पर लगाये गए आरोपों का जवाब देने का जिम्मा झांसी प्रशासन ने उठाया और इस मामले की गंभीरता को देखते हुए झांसी के डीएम शिवसहाय अवस्थी ने मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए गए। एडीजी जोन प्रेम प्रकाश से यह बयान दिलाया गया कि इस मामले की जांच में अगर पुलिसवाले दोषी पाए जाएंगे, तो उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा। और यह बताया गया कि पुष्पेंद्र यादव बालू खनन का कारोबार करता था और उस पर मामूली झड़पों के अलावा कोई खास केस दर्ज नही है। उसके ट्रक का अवैध खनन में दो बार चालान हो चुका था। ऐसे व्यक्ति का एनकाउंटर कई सवाल उठा है। जिनका जवाब डीजीपी से लेकर प्रमुख सचिव गृह तक नहीं देते।
ऐसे में पुलिस के इस समूचे एक्शन को फेससेविंग की कवायद माना जा रहा है। बीते ढ़ाई वर्षों से एनकाउंटर में पुलिस का रवैया कमोवेश ऐसा ही रहा है। इसलिए योगी सरकार की एनकाउंटर नीति को सोशल मीडिया पर ठोको नीति कहा जा रहा है।
वास्तव में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अपराधियों के एनकाउंटर को लेकर पुलिस को जो छूट मिली है, उसे लेकर योगी सरकार को कठघरे में है। पुलिस के तमाम एनकाउंटर फर्जी पाए गए है और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई है। इसके बाद भी सूबे की सरकार अपनी एनकाउंटर नीति का पक्ष ले रही है। और यह दावा किया जा रहा है कि अगर यूपी में कोई अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाओगे। सरकार के इस ऐलान के चलते ही सूबे के पुलिस ने बीते ढ़ाई वर्षों में अपराधियों से हुई करीब 4,604 पुलिस मुठभेड़ में अब तक 94 अपराधी मार गिराए। और 1571 अपराधी एनकाउंटर में घायल हुए हैं। अब तक हुए एनकाउंटर के दौरान पुलिस ने 10098 अपराधियों को गिरफ्तार किया। जबकि पांच पुलिसकर्मी एनकाउंटर में शहीद हुए और 742 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
अपराधियों को एनकाउंटर में मारने के इस आंकड़ों पर भले ही यूपी पुलिस गर्व करती हो पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एनकाउंटर की तमाम घटनाओं पर सूबे की सरकार और पुलिस से जवाब मांगा है। आयोग ने पिछले बारह साल का एक आंकड़ा जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि देश भर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं जिनमें 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे। ऐसा नहीं है कि फर्जी एनकाउंटर को लेकर यूपी सरकार पहली बाद बैकफुट पर है। फर्जी एनकाउंटर को लेकर यूपी पुलिस का रिकॉर्ड पहले भी कुछ अच्छा नहीं रहा है।
लंबे समय से उत्तर प्रदेश देश में सर्वाधिक मुठभेड़ों वाला राज्य है। लेकिन यहां गुजरात की तरह किसी मुठभेड़ की जांच नहीं होती। उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों की शुरुआत सामाजिक न्याय के मसीहा वी.पी. सिंह ने की थी। उन्होंने खुलेआम डकैत सफाई के नाम पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के असरदार दबंग पिछड़ो की हत्याएं करवाई। इस अभियान में दर्जनों राजनैतिक कार्यकर्ता मारे गए। आंकड़े बताते हैं कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में पुलिस मुठभेड़ के मामले बारह गुना बढ़े। तब कोई तीन हजार लोग दो साल में मारे गए थे। इनमें ज्यादातर पिछड़े थे। ये हत्याएं भी उस प्रतिक्रिया में हुई जब वी. पी. सिंह के भाई सी.एस.पी. सिंह को डकैतों ने मारा और बेहमई में फूलन देवी ने राजपूत नरसंहार कराया। यानी जातीय बदले में मुख्यमंत्री ने पुलिस से फर्जी मुठभेड़ में हजारों पिछड़ो की हत्या करवाई। तब हालात इस कदर खराब थे कि मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं को भी जान के लाले पड़े थे। बाद में मुलायम सिंह यादव इसी सवाल पर वी. पी. सिंह का हर कहीं विरोध करते थे।
मुलायम सिंह यादव और मायावती की पहली साझा सरकार गिरने के पीछे भी एक मुठभेड़ थी। पुलिस ने बुलन्दशहर के एक अपराधी महेन्द्र फौजी को मुठभेड़ में मार गिराया था। महेन्द्र फौजी मुलायम सिंह यादव के लिए असुविधाजनक और मायावती के लिए उपयोगी था। सत्तर के दशक में बंगाल, अस्सी के दशक में पंजाब और नब्बे के दशक में यूपी में फर्जी मुठभेड़ों का व्यापक राजनैतिक इस्तेमाल हुआ। पर तब किसी के कानो में जूं नहीं रेंगी थी।
फर्जी मुठभेड़ के इतिहास में 17 अक्टूबर 1998 को उत्तर प्रदेश में तो गजब हुआ था। हुआ यह कि सूबे की बहादुर पुलिस ने मिर्जापुर-भदोही सड़क पर एक युवक को पुलिस मुठभेड़ में मारा। पुलिस लाश के सामने फोटो खिंचा दावा करती है कि मारा गया ईनामी बदमाश जौनपुर का धनंजय सिंह था। पुलिस का कहना था कि धनंजय का गैंग जौनपुर के सिकरारा थाने में रजिस्टर्ड था। उसकी हिस्ट्रीशीट का नम्बर- 12 ए था। मुठभेड़ में मारे गए युवक का अन्तिम संस्कार भी हो गया। बाद में यह मुठभेड़ फर्जी निकली। मुठभेड़ में मारे गए धनंजय सिंह अदालत में प्रकट हुए। यही धनंजय सिंह लोकसभा के सदस्य हुए और यूपी विधानसभा में भी पहुंचे। पर आज भी किसी मानवाधिकार संगठन ने यह मामला नहीं उठाया कि धनंजय के नाम पर मारा गया युवक कौन था?
एनकाउंटर को लेकर जिस प्रदेश का रिकार्ड इस कदर दागदार हो वहां जब भी किसी पुष्पेंद्र की एनकाउंटर में मारा जाता है, तो यूपी पुलिस सवालों के घेरे में आती है। और सवाल पूछा जाता है कि ढ़ाई साल में चार हजार से अधिक एनकाउंटर करने के बाद भी क्यों प्रदेश पुलिस अपराधियों पर अंकुश लगा पा रही है? ऐसे में कानून व्यवस्था को बेहतर कर पाने में नाकाम पुलिसतंत्र को अपराधियों का एनकाउंटर करने की दी गई छूट राज्य सरकार क्यों वापस नहीं ले रही है? सूबे में रिटायर्ड हो चुके तमाम सीनियर पुलिस एनकाउंटर के जरिये कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने की सोच को गलत मानते है। ये अफसर मानते है कि एनकाउंटर कर अपराध कम नहीं किए जा सकते, अपराध कम करने के लिए पुलिस को अपनी चौकसी बढ़ानी होगी, ईमानदार होना होगा और जनता का मित्र बनना होगा। यूपी पुलिस में इन सबका आभाव है, इसलिए रात के अँधेरे में एनकाउंटर हो रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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