प्रीति सिंह
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी जब भी विदेश जाते हैं उनकी यात्रा सुर्खियों में आ जाती है। उनके विदेश दौरे को लेकर भाजपा अक्सर चुटकी लेती रहती है।
राहुल की विदेश यात्रा का जिक्र चुनाव प्रचार के दौरान भी भाजपा करती है। चाहे चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का। राहुल गांधी को घेरने के लिए भाजपा का अब विदेश यात्रा यह एक अस्त्र बन गया है। जिसका जिक्र करना भाजपा जरूरी समझती है।
दरअसल राहुल गांधी ऐसे मौके पर विदेश जाते हैं जब देश को उनकी पार्टी को उनकी जरूरत होती है। अब एक बार फिर उनका विदेश दौरा चर्चा में है।
आज कांग्रेस का स्थापना दिवस है और राहुल विदेश दौरे पर हैं। इस कार्यक्रम में राहुल की गैरमौजूदगी पर सवाल उठ रहा है। इसी वजह से कांग्रेस के स्थापना दिवस के एक दिन पहले राहुल का विदेश दौरा विवादों में घिर गया है।
राहुल की इस विदेश यात्रा के बाद से एक बार फिर भाजपा सक्रिय हो गई है। दरअसल भाजपा इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश करती है कि राहुल गांधी गंभीर नहीं है। लगातार ऐसा करके वह इसमें सफल भी होती दिख रही।
इसके पहले भी कई बार ऐसा मौका आया जब देश में राहुल गांधी की मौजूदगी जरूरी रही है लेकिन वह मौजूद नहीं रहे हैं। बार-बार उनके विदेश यात्रा पर सवाल उठता है बावजूद इसको गंभीरता से नहीं लेते हैं।
पिछले साल इसी दिसंबर महीने में जब विपक्षी दलों समेत पूरा देश एनआरसी और सीएए के खिलाफ सड़क पर उतर गया था तो राहुल गांधी देश में मौजूद नहीं थे। वह दक्षिण कोरिया की यात्रा पर थे।
कुछ और घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है। दिसंबर 2012 में निर्भया मामले में पूरे देश में आंदोलन चल रहा था तब भी राहुल गांधी विदेश चले गए थे। हां, उस वक्त सत्ता में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी।
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2015 में मोदी सरकार बनने के बाद भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष एकजुट हो रहा था तब भी राहुल सदन में मौजूद नहीं थे। वह करीब दो महीने विदेश में रहे थे। उसी साल सिंतबर माह में बिहार में विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान राहुल विदेश चले गए थे। उस समय उनका खूब मजाक उड़ा था।
8 नवंबर 2016 को जब मोदी सरकार ने हजार और पांच सौ रुपए के नोट पर प्रतिबंध लगाया तो पूरा देश बैंक और एटीएम के कतार में खड़ा हो गया। राहुल गांधी ने जोरदार तरीके से नोटबंदी का विरोध किया लेकिन कुछ समय बाद ही वह विदेश चले गए। विपक्ष ने उनके इस यात्रा पर चुटकी ली थी।
इसके अलावा 2019 में अक्टूबर माह में महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही वह विदेश चले गए थे। इन दोनों राज्यों के चुनावों में भी राहुल ने कुछ खास रूचि नहीं ली थी।
राहुल की अधिकांश विदेश यात्रा पर सवाल उठा है वावजूद वह इसे गंभीरता से नहीं लेते। वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि राहुल गांधी समेत पूरे कांग्रेस को भाजपा से सीख लेनी चाहिए। भाजपा अपने छोटे-छोटे कार्यक्रमों में बड़े-बड़े नेताओं को भेजती है ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़े। और एक राहुल गांधी हैं जो अपनी ही पार्टी के स्थापना दिवस के कार्यक्रम से नदारद है। सवाल उठना लाजिमी है। इससे यही संदेश जाता है कि जब अपने पार्टी को लेकर गंभीर नहीं है तो देश को लेकर क्या होंगे।
जाहिर है कांग्रेस का स्थापना दिवस है तो इस कार्यक्रम में राहुल गांधी की मौजूदगी जरूरी है, क्योंकि वह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। आज भी कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार ही है।
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कांग्रेस की स्थापना दिवस कार्यक्रम में राहुल की गैरमौजूदगी ने एक बार फिर विपक्ष को तंज कसने का मौका दे दिया। भाजपा नेता राहुल को घेरने में लगे हुए हैं कांग्रेस सफाई देने में लगी हुई है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला राहुल की विदेश यात्रा को सही ठहराने पर लगे हुए हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पास तो इन सवालों का कोई जवाब भी नहीं था।
जवाब होगा भी नहीं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब ऐसी गलती राहुल गांधी ने की है। हालांकि कई जानकारों का कहना है कि स्थापना दिवस से दूरी बनाकर राहुल गांधी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वो पार्टी के दोबारा अध्यक्ष नहीं बनना चाहते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते है कि राहुल यदि कार्यक्रम से दूरी बनाकर ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें अध्यक्ष पद में कोई रूचि नहीं है तो तो यह निहायत ही गैरजिम्मेदाराना रवैया है। कोई उन्हें जबर्दस्ती अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठा सकता। पार्टी का स्थापना दिवस कार्यकर्ता से लेकर पदाधिकारी नेता सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसकी तैयारियां लंबे समय से होती है। इस कार्यक्रम पार्टी के कामकाज और भविष्य की नीतियों पर चर्चा होती है। अब जब राहुल इसमें शामिल नहीं है तो इससे तो यही संदेश जाता है कि उन्हें पार्टी से भी कोई सरोकार नहीं है।
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