अविनाश भदौरिया
2019 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं. आगामी चुनाव में देश की जनता को सिर्फ एक प्रधानमंत्री नहीं बल्कि एक नई राह भी चुनना है. कुछ ही दिनों बाद मतदान शुरू होने वाला है। सभी राजनीतिक दल और उनके स्टार नेता रात-दिन चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। कोई रोड-शो कर रहा है तो कोई नाव पर यात्रा। लोकतंत्र के इस महापर्व नेताओं द्वारा आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी है। विवादित बयानों से मीडिया चैनल और सोशल मीडिया के स्लॉट पटे हुए हैं।
कोई ‘चौकीदार चोर है’ के नारे लगवा रहा है तो कोई ‘मैं भी चौकीदार’ के नारे लगवा रहा है। बीच-बीच में दबी जुबान कहीं लोकहित के मुद्दों को उठाने की कोशिश की जाती है तो ‘राष्ट्रवाद’ और ‘पाकिस्तान का मुद्दा’ आ जाता है और लोगों को चुप करा दिया जाता है।
आम जनता को यह तो समझ आ रहा है कि खतरा है और देश के लिए प्राण न्यौछावर करने हैं लेकिन भोली-भाली जनता यह नहीं समझ पा रही कि वास्तव में खतरा किससे है, पाकिस्तान से या देश के ही नेताओं से।
चुनावी फिजाओं में गायब हैं जमीनी मुद्दे
एक समय था जब नेता के भाषणों में वो मुद्दे शामिल होते थे जिनसे आम जन का सरोकार होता था लेकिन 2019 के चुनावी दंगल में किसी भी दल द्वारा इन मुद्दों पर बात नहीं की जा रही।
एक समाचार पत्र में आज खबर प्रकशित हुई कि, किसानों को बीमा कंपनियों द्वारा फसल नुकसान का मुआवजा नहीं दिया जा रहा। केंद्र की मोदी सरकार ने इस योजना का जोर-शोर से प्रचार किया था। लगा था कि अब कोई किसान फसल ख़राब होने पर आत्महत्या नहीं करेगा। बेचारे किसानों ने लंबी-लंबी लाइनों में लगकर फसल का बीमा कराया अब जब उस बीमा योजना का लाभ लेने की बात आई तो बीमा कंपनियां उन्हें मानक के खेल में फंसाकर नुकसान का मुआवजा नहीं दे रहीं।
बेरोजगारी में तेजी से हुई है बढ़ोत्तरी
इसी तरह रोजगार की बात की जाए तो पिछले कुछ सालों में देश में बेरोजगारी में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. सरकार रोजगार के नए अवसर तो खोज नहीं सकी बल्कि कई युवाओं को अपनी नौकरी से हाथ जरूर धोने पड़ गए। मौजूदा समय में भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और हमारे समाज के ठेकदार युवा शक्ति के सदुपयोग के विषय में ना सोचकर उन्हें युद्धोन्मादी और धर्म-जाति के नाम पर कट्टर बनाने में लगे हुए हैं।
7 साल की एक मासूम पिता की जिंदगी की खातिर 2 घंटे ड्रिप पकड़े खड़ी रही
आज ही एक और खबर सामने आई कि 7 साल की एक मासूम पिता की जिंदगी की खातिर 2 घंटे ड्रिप पकड़े खड़ी रही। तस्वीर सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत को बयान करती है। तस्वीर औरंगाबाद के घाटी सरकारी अस्पताल की है। जहां ड्रिप स्टैंड ना होने के कारण एक बेटी अपने पिता के इलाज के लिए ड्रिप स्टैंड पकड़े घंटों खड़ी रही। अफ़सोस इस बात का है कि स्वास्थ्य विभाग पर कोई स्ट्राइक की बात क्यों नहीं हो रही।
वाट्स ऐप की शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं नेता
अब बात करते हैं शिक्षा व्यवस्था की जोकि किसी भी राष्ट्र के विकास और समाज के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। बिना शिक्षा व्यवस्था में सुधार के कोई भी देश कभी ना तो महान हो सकता है और ना ही संम्पन्न लेकिन हमारे वर्तमान नेताओं को यह मुद्दा रास नहीं आता क्योंकि इससे वोट नहीं देश का निर्माण होता है। शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम बजट में शिक्षा पर खर्च होने वाले धन में कटौती की गई थी। फ़िलहाल हमारे नेता आजकल वाट्स ऐप की शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं जहां झूठ और तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है जिससे लोग मूर्ख बनते हैं और नेताओं को राजनीतिक लाभ मिलता है।
अपराधी हैं बेख़ौफ़
साल 2014 के चुनाव में महिला सुरक्षा का मुद्दा एक प्रमुख मुद्दा था। दिल्ली के ‘दामिनी रेप केस’ को लेकर देशभर में गुस्सा था. उस समय भाजपा विपक्ष में थी और यूपीए की सरकार थी। इस मामले को लेकर कांग्रेस की देशभर में फजीहत हुई थी। दामिनी केस के बाद महिलाओं से जुड़े मामलों में शीघ्र कार्रवाई के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया गया। लेकिन अभी भी देश में अपराध और अपराधियों में कमी नहीं आई है। पंजाब के खरड़ में एक महिला अधिकारी की शुक्रवार को उनके ऑफिस में एक अज्ञात हमलावार ने गोली मारकर हत्या कर दी। महिला अधिकारी का नाम डॉक्टर नेहा शौरी था, वो जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी ऑफ फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन में ड्रग इंस्पेक्टर के पद पर तैनात थीं।