जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. मथुरा के बाद सीएम योगी के अयोध्या से चुनाव मैदान में उतरने की खबरें आम हो चुकी थीं. अयोध्या से योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं यह सिर्फ कयास भर नहीं था क्योंकि इसकी बाकायदा तैयारी की जा चुकी थी. अयोध्या में बीजेपी कार्यकर्ताओं की टोलियाँ बना दी गई थीं. इन टोलियों ने घर-घर जनसंपर्क शुरू कर दिया था. अयोध्या के संत भी मन्दिर आने वालों से योगी को जिताने की अपील करने लगे थे. सबको भरोसा था कि योगी यहाँ से जीते तो अयोध्या का विकास बहुत तेज़ी से होगा लेकिन बीजेपी की सूची आई तो योगी आदित्यनाथ का नाम गोरखपुर से नज़र आया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं यह सवाल अब अयोध्या ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के अधिकाँश इलाकों में चर्चा का विषय बन गया है. हर कोई जानना चाहता है कि योगी आदित्यनाथ आखिर अयोध्या से चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं.
आखिर ऐसा क्या हुआ कि योगी को अयोध्या जैसी प्रतीकात्मक सीट छोड़नी पडी. इसके पीछे कई कारण है जिनमे एक ये भी बताया जा रहा है कि अयोध्या सीट पर आये एक अंदरूनी समीकरण ने पार्टी और योगी को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया. बतया जा रहा है कि इस सर्वे में अयोध्या के संतो के एक बड़े धड़े से भितरघात का खतरा था. संतो के इस समूह का मानना था कि यदि योगी यहाँ से जीत गए तो अयोध्या के संतो का महत्त्व कम हो जायेगा.
इसके अलावा अयोध्या सीट के वोटरों की गणित भी एक बड़ी वजह रही है . इस सीट पर ब्राहमण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक है जो योगी के लिए मुफीद नहीं था.
एक मुद्दा यह भी है कि क्या सीएम योगी शिवसेना सांसद संजय राउत की चुनौती से घबरा गए हैं.
योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के बजाय गोरखपुर को चुना क्योंकि दिक्कतें बहुत सारी हैं. शिवसेना को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता और पिछले चुनावों के परिणामों को भी यूँ ही नहीं छोड़ा जा सकता. योगी सीएम हैं इसलिए पार्टी उनकी जीत पर कोई संशय भी नहीं रखना चाहती है.
अयोध्या में 2012 में समाजवादी पार्टी के पवन पाण्डेय चुनाव जीते थे. तब समाजवादी पार्टी को 28.74 फीसदी और बीजेपी को 25.93 फीसदी वोट मिले थे. 2017 में जब पूरे प्रदेश में मोदी लहर चल रही थी और अधिकाँश सीटों पर सारे गणित गड़बड़ा गए थे तब भी समाजवादी पार्टी के वोट प्रतिशत पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा था. उलटे बसपा को तो वोट परसेंटेज बढ़ गया था.
जब सभी दलों की हालत खराब हो गई थी तब भी समाजवादी पार्टी को 26.20 फीसदी वोट हासिल हुए थे. 2012 में बसपा को 17.41 वोट मिले थे जबकि 2017 में बसपा का वोट प्रतिशत बढ़कर 18.32 हो गया था. इस गणित को यूं ही छोड़ा नहीं जा सकता वह भी तब जब मुख्यमंत्री को चुनाव लड़ाने पर विचार चल रहा हो.
अयोध्या में योगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़ाते वक्त यह देखना भी ज़रूरी हो गया कि वहां 70 फीसदी ब्राह्मण वोट है. मौजूदा हालात में ब्राह्मण पर यूपी सरकार भरोसा नहीं कर सकती है क्योंकि ब्राह्मण पिछले काफी समय से सरकार से नाराज़ चल रहा है. इसके अलावा अयोध्या में 27 हज़ार मुस्लिम वोट और 50 हज़ार दलित वोट भी हैं. इस संख्या को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता.
इस सबके साथ-साथ योगी आदित्यनाथ को यह भी पता था कि अगर वह अयोध्या से चुनाव लड़ते तो उन्हें गोरखपुर क्षेत्र से दूर रहना पड़ता. गोरखपुर क्षेत्र छोड़ने का मतलब था 17 विधानसभा सीटों पर फर्क पड़ जाना. योगी गोरखपुर से दूर रहते तो चौरीचौरा और पिपराइच सीट भी मुश्किलों में फंस जाती.
स्वामी प्रसाद मौर्या के साथ छोड़ जाने की वजह से यूं भी पडरौना, तमकुहीराज और फाजिलनगर की सीटें समाजवादी पार्टी की झोली में जाती नज़र आ रही हैं. इसी तरह से संतकबीर नगर में खलीलाबाद सीट को फिर से जीत लेने की गारंटी नज़र नहीं आ रही है.
अयोध्या में 70 हज़ार ब्राह्मण हैं लेकिन बीजेपी ब्राह्मण चेहरा देकर भी यह गारंटी नहीं तय कर सकती कि उसका उम्मीदवार वहां से जीत जायेगा क्योंकि अयोध्या में तीन बार ब्राह्मण विधायक बने हैं लेकिन तीनों बार समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण प्रत्याशी जीते. समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मण प्रत्याशी को अयोध्या से जिता लिया क्योंकि उसे 50 हज़ार दलितों और 27 हज़ार मुसलमानों का भी सहयोग मिल गया. जबकि भारतीय जनता पार्टी न ब्राह्मणों को मना सकती है न मुसलमानों को और न ही दलितों को. यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में रिस्क लेने के बजाय गोरखपुर की सुरक्षित सीट लेने में ही अपनी भलाई समझी.
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