जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. शिवसेना के मुखपत्र सामना में दावा किया गया है कि केन्द्र सरकार ने किसान आन्दोलन को खत्म कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाई है. सरकार किसी भी सूरत में किसान आन्दोलन खत्म कराना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट ने कृषि क़ानून के अमल पर रोक लगा दी है. अब सरकार चाहती है कि किसान अपने घरों को लौट जाएँ.
सामना में लिखा गया है कि 15 जनवरी को जब सरकार और किसान आमने-सामने होंगे तब सरकार यही कहेगी कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर स्टे लगा दिया है तो अब आन्दोलन का क्या मतलब. आन्दोलन खत्म करिए और घर जाइए, मगर किसानों को चाहिए कि वह सरकार पर कृषि क़ानून को रद्द करने का दबाव बनाए रखें क्योंकि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं.
सामना ने अपने सम्पादकीय में किसानों को आगाह किया है कि सरकार उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मान-सम्मान का वास्ता देगी. उन्हें बतायेगी की कानूनों के अमल पर रोक लग गई है. किसान नहीं मानेंगे तो सरकार कहेगी कि सुप्रीम कोर्ट की भी नहीं मान रहे.
सामना में लिखा है कि यह देश की कृषि सम्बन्धी नीति का सवाल है. इस मामले को निबटाने के लिए जो समिति बनाई गई है उस समिति के सदस्यों पर भी सवाल उठते रहे हैं. यह सदस्य तो सरकार के कृषि कानूनों का समर्थन करते रहे हैं. किसाम यह बात समझ लें कि वह एक बार दिल्ली बार्डर से उठकर अपने घरों को लौट गए तो कृषि कानूनों पर लगा स्टे हटने में देर नहीं लगेगी. उसके बाद किसान चाहकर भी दिल्ली नहीं घेर पायेगा क्योंकि सरकार इतनी नाकाबंदी कर देगी कि उसे फंड पाना किसानों के बूते की बात नहीं होगी.
शिवसेना ने किसानों को आगाह किया है कि पचास दिनों के आन्दोलन और कई दौर की सरकार से बातचीत में सिर्फ पराली जलाने और सब्सिडी के मामले पर ही सहमति बन पाई है. बड़े मुद्दे तो अभी भी अपनी जगह ही बरकरार हैं.
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शिवसेना ने किसानों को यह भी याद दिलाया है कि सरकार ने उन्हें खालिस्तानी बताया, देशद्रोही बताया. उन पर तमाम तरह के आरोप लगाए. बेहतर होगा कि किसान सरकार की मंशा को समझ जाएँ. कृषि कानूनों की वापसी से कम पर वह कोई समझौता नहीं करें क्योंकि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं.