शबाहत हुसैन विजेता
शिक्षा के क्षेत्र में दो पड़ाव सबसे अहम हैं हाईस्कूल और इंटरमीडिएट. इससे पहले की कक्षाओं में कितने पर्सेन्ट नम्बर मिले उसके कोई मायने नहीं होते. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा देने वालों की सही समीक्षा इसलिए हो पाती है क्योंकि न परीक्षा केन्द्र अपना होता है, न कापी जांचने वालों के बारे में कोई जानकारी होती है. परीक्षक की नज़रों से हजारों कापियां गुज़रती हैं इसलिए उसके लिए इस बात के कोई मायने नहीं होते कि यह किसकी कापी है. कापी में जो लिखा होता है उसी से परीक्षार्थी की काबलियत पता चलती है.
शिक्षा के क्षेत्र में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट नाम के यह दो पड़ाव शुरू होने के बाद यह पहला मौका है जब बगैर परीक्षा हर परीक्षार्थी को पास कर दिया गया. सरकार ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि कोरोना महामारी अपने शबाब पर थी और परीक्षा देने वाले बच्चे संक्रमित हो सकते थे.
बगैर परीक्षा पास होने वालों में उन चेहरों पर मुस्कान है जिनके पास यह परीक्षाएं पास करने की काबलियत ही नहीं थी लेकिन वह परीक्षार्थी बहुत निराश हैं जिन्होंने अपनी बेहतर परसेंटेज के लिए रात-दिन एक कर दिया था. मेधावी बच्चे निराश हैं क्योंकि तैयारी के बाद भी वह एग्जाम नहीं दे पाए और मेरिट लिस्ट में आने का ख़्वाब चकनाचूर हो गया.
कोरोना की वजह से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाएं नहीं हुईं, सभी बच्चे पास हो गए. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा देने वाले परीक्षा का फ़ार्म भरने के साथ ही अन्य कई प्रतियोगी परीक्षाओं के फ़ार्म भी भरते हैं. इंटर के बाद बच्चे बीटेक और एमबीबीएस, बीडीएस वगैरह कम्पटीशन की परीक्षा देते हैं तो हाईस्कूल के बाद आईआईटी और पालीटेक्निक का एग्जाम देते हैं.
बड़ा सवाल यहीं से शुरू होता है कि जिन विद्यार्थियों ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का फ़ार्म भरा था उन सभी को पास कर दिया गया तो क्या जिन विद्यार्थियों ने प्रतियोगी परीक्षाओं का फ़ार्म भरा था वहां भी बगैर परीक्षा एडमिशन मिलेगा?
प्रतियोगी परीक्षाओं में अगर बगैर परीक्षा पास करने में दिक्कत है तो फिर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाएं कैसे पास करा दीं? जब छोटी-बड़ी सभी कक्षाओं के ऑनलाइन क्लास चल रहे हैं तो फिर ऑनलाइन एग्जाम करा लेने में क्या दिक्कत थी? ऑनलाइन एग्जाम कराने से परीक्षार्थियों की मेधा की लगभग सही जानकारी मिल सकती थी और इससे मेरिट लिस्ट बनाई जा सकती थी.
सभी बच्चो का सपना सिर्फ क्लास पास करना भर नहीं होता है. मेधावी बच्चो का सपना मेरिट में आने का होता है. मेरिट में अपनी जगह देखकर बच्चे अपने भविष्य की राह तय करते हैं.
कोरोना काल में सभी काम तो हो रहे हैं. सब्जियां बिक रही हैं, आटा-दाल-चावल बिक रहा है. दूध, ब्रेड और बिस्कुट बिक रहा है. फ़ौरन सवाल उठ सकता है कि सब्जी, दूध और आटा-दाल-चावल को बेचने से रोका गया तो लोग भूख से मर जायेंगे. अगर वाकई यही सोच है तो फिर शराब क्यों बिक रही है, तम्बाकू क्यों बिक रही है. क्या यह भी नहीं मिले तो मौत हो जायेगी.
कोरोना काल में चुनाव हो रहे हैं. बड़ी-बड़ी रैलियां हो रही हैं. चुनाव हो गए तो सरकारें शपथ ले रही हैं. दल-बदल का काम बदस्तूर जारी है. एक दल दूसरे को धमकियां दे रहे हैं. आगजनी और मारपीट की घटनाएं हो रही हैं. सरकार के साथ कदमताल करने वाले नेताओं को वाई और जेड श्रेणी की सुरक्षा दी जा रही है.
अपराधियों को एक जेल से दूसरी जेल में शिफ्ट कराया जा रहा है. अपराधियों के जेलों के भीतर कथित गैंगवार हो रहे हैं. दूसरे दलों के साथ खड़े होने वाले और सरकार का विरोध करने वाले माफिया नेताओं की संपत्तियां ज़ब्त की जा रही हैं. बनी हुई इमारतों पर बुल्डोजर चलाये जा रहे हैं.
कोरोना काल में वह कौन सा काम है जो रुक गया है. हर काम तो हो रहा है. सड़कों पर पहले वाली रफ़्तार में गाड़ियाँ दौड़ रही हैं. चालान के ज़रिये गाड़ी चलाने वाले की जेबें खाली करा लेने पर पुलिस आमादा है. श्मशान के बाहर भी चालान किये गए.
कोरोना पीड़ितों के इंजेक्शन ब्लैक हो रहे हैं. मंत्रियों के ड्राइवर भी इंजेक्शन ब्लैक करने में पकड़े गए हैं. अस्पतालों के लूट जाल में मरीजों के घर वाले फंसे हुए हैं.
आम आदमी के पास नौकरी नहीं है मगर सरकार हर चीज़ में जीएसटी वसूलने में लगी है. हालात इतने ज्यादा परेशान करने वाले हैं कि हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं के बगैर सबको पास कर दिए जाने का फैसला भी संदेह पैदा कर देने वाला है. आखिर ऐसा किया गया तो क्यों किया गया. यह सवाल उठेगा और ज़रूर उठेगा.
यह सवाल इसलिए भी उठेगा कि ऑनलाइन क्लास चलाने वाले स्कूल पूरी फीस वसूल रहे हैं. तमाम स्कूलों ने स्कूल बस तक का चार्ज कर लिया. तमाम विरोध के बावजूद इस मुद्दे पर सरकार ने कोई स्टैंड नहीं लिया. जब फीस में कोताही नहीं है तो फिर बगैर परीक्षा के पास करने का अहसान क्यों कर रही है सरकार? ऑनलाइन परीक्षा कराने में कोरोना बढ़ जाने की दिक्कत आ रही थी तो शराब की दुकानों पर कोरोना क्यों नहीं आ रहा है.
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बगैर परीक्षा के ही पास करा देने का अहसान सरकार कर ही रही है तो हर बच्चे को उसकी मर्जी की यूनिवर्सिटी, मेडिकल कालेज या इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन का अहसान भी सरकार को ज़रूर करना चाहिए. यह एडमिशन सरकार नहीं कराती है तो फिर विद्यार्थियों को बीच चौराहे पर खड़ा किये जाने को न विद्यार्थी भूल पायेंगे और न ही उनके माँ-बाप.