जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य इन दिनों काफी सुर्खियों में है। दरअसल रामचरितमानस को लेकर दिए बयानों की वजह से वो चर्चा में आ गए है।
उन्होंने अब रामचरितमानस को लेकर पीएम मोदी को पत्र लिखा है। अब सवाल है कि उनके इस पत्र में आखिर क्या लिखा है और उन्होंने आखिर किस चीज की मांग की है।
इतना ही नहीं उन्होंने इस पत्र के माध्यम से रामचरितमानस से उन पंक्तियों को हटाए जाने की मांग की है जिसको लेकर वह विरोध कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने अनेक कथावाचक और धार्मिक पाखंडी पर सवाल उठाये जो हर दिन रामचरित मानस की चौपाइयों को उद्धृत करके उन्हें ईश्वर सम्मत फैलाते हैं।
जिससे इस देश के करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। रामचरितमानस को लेकर दिए बयानों की वजह से स्वामी प्रसाद मौर्य कई लोगों के निशाने पर है लेकिन इस बार उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर साफ कर दिया है वो अपने बयानों से पलटने वाले नहीं है।
पत्र में लिखा है
16 वीं सदी के मध्य में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस‘ उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय है। मध्यकालीन सामंती राजसत्ता के दौर में रचे गए अवधी महाकाव्य रामचरित मानस के कतिपय प्रसंगों में वर्णवादी सोच निहित है। इसकी अनेक चैपाइयों में भेदभावपरक वर्ण व्यवस्था को उचित ठहराया गया है।
कुछ चैपाईयों में वर्ग विशेष की श्रेष्ठता स्थापित की गई है और शूद्रों को नीच और अधम बताया गया है। कतिपय चैपाइयों में स्त्रियों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः यह संदर्भ तुलसीदास की मध्यकालीन सोच का परिचायक है। 90 साल के लंबे संघर्ष के बाद भारत को राजनीतिक आजादी प्राप्त हुई।
नए भारत के निर्माण के लिए प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने गहन अध्ययन और कठिन परिश्रम से ऐसे संविधान की रचना की, जिसमें स्वाधीनता आंदोलन से उपजे विचार और समूचे भारतवासियों के सपने समाहित हैं। संविधान सभा में संपन्न संवाद और मंथन से भारत का संविधान समृद्ध हुआ। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ।
संविधान ने देश में समता, न्याय और बंधुत्व को सैद्धांतिक रूप से स्थापित किया। बाबासाहेब आंबेडकर ने इस बात को स्पष्ट तौर पर रेखांकित किया था कि समता और न्याय को व्यावहारिक धरातल पर स्थापित करना हमारा अभीष्ट है। इसलिए सविंधान के अनुच्छेद 15 में धर्म, मूलवंश, जाति लिंग या जन्म के स्थान के नाम पर भेदभाव न करने का उल्लेख किया गया है।
संविधान सभा के अंतिम दिन 26 नवंबर 1949 को बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने भविष्य की चुनौतियों को स्पष्ट करते हुए कहा था कि ‘‘26 जनवरी 1950 को हम एक विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। हमारी राजनीति में समानता होगी और हमारे सामाजिक व आर्थिक जीवन में असमानता। राजनीति में हम एक व्यक्ति एक वोट और हर वोट का समान मूल्य के सिद्धांत पर चल रहे होंगे।
परंतु अपने सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में हमारे सामाजिक एवं आर्थिक ढांचे के कारण हर व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धांत को नकार रहे होंगे। इस विरोधाभासी जीवन को हम कब तक जीते रहेंगे? कब तक हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? यदि हम इसे नकारना जारी रखते हैं तो हम केवल अपने राजनीतिक प्रजातंत्र को संकट में डाल रहे होंगे। हमें जितनी जल्दी हो सके इस विरोधाभास को समाप्त करना होगा, अन्यथा जो लोग इस असमानता से पीड़ित हैं, वे उस राजनीतिक प्रजातंत्र को उखाड़ फेंकेंगे, जिसे इस सभा ने इतने परिश्रम से खड़ा किया है।‘
पत्र की कॉपी
बता दे की रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। पहले समावजादी पार्टी एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य ने विवादित टिप्पणी की। इसके बाद सपा विधायक पल्लवी पटेल ने कहा कि मैं रामचरितमानस को मानती ही नहीं हूं।