न्यूज डेस्क
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी के कद्दावर नेता और ब्राह्मण चेहरा रामवीर उपाध्याय को पार्टी से निकाल दिया।
कभी मायावती के बेहद करीबी रहे रामवीर को पार्टी से निकाले जाना इस बात का संकेत है कि पिछड़ों की आवाज बुलंद करने वाली बसपा में सब कुछ सामान्य नहीं है।
कांशीराम के बाद जब मायावती ने बसपा की कमान संभाली थी, उसके बाद से कई पुराने और भरोसेमंद नेता एक-एक करके मायावती का साथ छोड़ रहें हें।
शायद यही वजह है कि ‘सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय’ के नारे के साथ बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का तिलिस्म भी धराशायी होता दिख रहा है और यूपी में कभी बहुजन समाज की इकलौती पार्टी रही बसपा के सामने भीम आर्मी जैसे संगठन मजबूती से खड़े हो रहे हैं।
ऐसे में मायावती के सामने अपने दलित वोट बैंक को बचाए रखने की भी चुनौती है। इसकी एक वजह यह मानी जा रही है कि पार्टी के पुराने और भरोसेमंद नेताओं का लगातार अलग होना है।
कांशीराम के बाद से पार्टी के कई दिग्गजों का अलग होने का असर बसपा को पिछले दो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में देखने को मिला है।
अब तक पार्टी से मायावती के सभी करीबी एक के बाद एक पार्टी से अलग हो गए हैं। आरके चौधरी, बाबूसिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, दीनानाथ भास्कर, राजबहादुर, बलिहारी बाबू, ईसम सिंह, डा. मसूद अहमद, मोहम्मद अरशद, राम प्रसाद, इंद्रजीत सरोज, आरके पटेल, ब्रजेश पाठक, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, जंग बहादुर पटेल, राम लखन वर्मा, बरखूराम वर्मा जैसे कद्दावर नेता अलग हो चुके हैं।
इन सब ने पार्टी से अलग होने के बाद मायावती पर गंभीर आरोप लगाए और पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मित्र को उनके पार्टी से बाहर निकाले जाने का जिम्मेदार बताया है।
बताते चले कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मायावती ने विवाद के बाद पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बसपा के प्रदेश पदाधिकारी के मुताबिक उस वक्त सिद्दीकी ने सतीश मिश्रा पर खुद को निकलवाने का आरोप लगाया।
पार्टी के एक नेता बताते हैं कि तब नसीमुद्दीन की बात को तवज्जो देकर रामवीर उपाध्याय ने भी सतीश मिश्रा के खिलाफ लामबंदी की थी। यह मायावती को नागवार गुजरी थी। हालांकि रामवीर को सुधरने की हिदायत तक दी गई थी। तभी से रामवीर एकाएक पार्टी में साइड लाइन हो गए थे।