मल्लिका दूबे
गोरखपुर। जिस संतकबीर की वैश्विक पहचान सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए है, उनकी ही कर्मस्थली पर भाजपा के अंदरखान में दो बड़ी जातियों का संघर्ष सतह पर आ गया है। ऐन चुनावी महासंग्राम में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की अंदरूनी लड़ाई के चलते भाजपा यहां अजीब धर्मसंकट में फंसती जा रही है। इसी धर्मसंकट के चलते पार्टी अभी तक यहां प्रत्याशी का नाम फाइनल नहीं कर पायी है।
एक माह से जारी है असमंजस
संतकबीरनगर में भाजपा का असमंजस काल एक माह से अधिक समय से जारी है। वजह पार्टी के भीतर ब्राह्मण बनाम ठाकुर के वर्चस्व की जंग। इसकी नींव 6 मार्च को उस समय पड़ी जब जिला योजना समिति की बैठक में सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल के भाजपा विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच विवाद हुआ। विवाद के दौरान ही सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायक बघेल के सिर पर ताबड़तोड़ जूते की बारिश कर दी। इस मामले को मैनेज करने में पार्टी को पसीना छूट रहा है।
कार्यक्रम नहीं कर रहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
बीजेपी इस मामले को अभी संभाल पाती कि शनिवार 13 अप्रैल को एक और बवाल हो गया। मेंहदावल क्षेत्र में बीजेपी का चुनावी कार्यक्रम तय था। इस कार्यक्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय को संबोधित करना था। महेंद्रनाथ पांडेय अभी मंच पर आये भी नहीं थे कि फिर बवाल हो गया।
बवाल, सांसद शरद त्रिपाठी को ही दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना को भांप कर हुआ। यहां विधायक राकेश सिंह बघेल के समर्थकों ने शरद त्रिपाठी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कुर्सियां तोड़ डाली।
मंच पर मौजूद नेताओं के समझाने का कोई असर नहीं हुआ और कई नेताओं को भागना पड़ा। हालात इतने बिगड़ गये कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके और कार्यक्रम रद करना पड़ा।
ब्राह्मण बनाम ठाकुर का अंदरुनी घमासान
यहां बीजेपी दूसरे दलों से चुनावी घमासान में जूझने से पहले अंदरुनी घमासान को नहीं संभाल पा रही है। यहां पार्टी की सबसे बड़ी दिक्कत ब्राह्मण बनाम ठाकुर को लेकर है। यदि शरद त्रिपाठी को टिकट मिला तो ठाकुरों की नाराजगी चुनाव को प्रभावित करेगी।
विधायक बघेल के सिर पर जूते पड़ने के बाद ठाकुर किसी भी दशा में शरद को बीजेपी प्रत्याशी के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। शरद को टिकट देने पर आसपास के कुछ अन्य लोकसभा क्षेत्रों में भी भाजपा को ठाकुर बिरादरी की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।
यही नहीं बघेल समर्थक किसी दूसरे ब्राह्मण प्रत्याशी को भी तवज्जो नहीं देना चाहते। उधर ठाकुरों के समानांतर बीजेपी से जुड़े ब्राह्मण भी मोर्चा खोले बैठे हैं, ऐसे में शरद का टिकट कटा और किसी दूसरे ब्राह्मण को टिकट नहीं मिला तो इसका भी नुकसान बीजेपी से जुड़े ब्राह्मणों की नाराजगी से उठाना पड़ेगा।
शरद को टिकट न मिलने की दशा में ब्राह्मण भी समीप की अन्य संसदीय सीटों पर बीजेपी के प्रति नकारात्मक भाव रख सकते हैं। इस स्थिति से दो चार हो रही भाजपा किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही है।