जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। अर्थशास्त्रियों और चिकित्सकों के साथ जनस्वास्थ्य समूह सरकार ने अपील कर रहे हैं कि सभी तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया जाए ताकि अतिरिक्त राजस्व पैदा हो सके।
वित्त मंत्रालय से की गई अपनी अपील में इन सबों ने सिगरेट, बीड़ी और बगैर धुंए वाले तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की अपील की है। इस समूह के अनुसार, सभी तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाना केंद्र सरकार द्वारा राजस्व बढ़ाने की आवश्यकता पूरी करने का एक बहुत ही प्रभावी नीतिगत तरीका हो सकता है।
तंबाकू से प्राप्त होने वाला कर राजस्व महामारी के दौरान संसाधनों की बढ़ी हुई आवश्यकताओं में अच्छा खासा योगदान कर सकता है। इनमें टीकाकरण और स्वास्थ्य संरचना को बेहतर करना शामिल है।
सभी तंबाकू उत्पादों पर जीएसटी की सबसे ऊंची दर से उत्पाद शुल्क लगाने से यह सुनिश्चित होगा कि तंबाकू उत्पाद सस्ते और आसान पहुंच में न रहें। इससे तंबाकू का उपयोग कम करने की ठोस बुनियाद मुहैया होगी और जो लोग इन का उपयोग शुरू कर सकते हैं उनके जीवन पर इसका लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव रहेगा।
इनमें देश के 268 मिलियन तंबाकू उपयोगकर्ताओं के साथ बच्चे और युवा भी हैं जो तंबाकू का सेवन करते हैं या करना चाहते हैं पर कीमत बढ़ने से प्रभावित होंगे। वॉलंट्री हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया की मुख्य कार्यकारी भावना मुखोपाध्याय ने कहा, “भावना मुखोपाध्याय ने कहा, सभी तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने से केंद्र सरकार को अच्छा खासा राजस्व मिलेगा और महंगा होने के कारण तंबाकू उत्पादों को खरीदना मुश्किल या कम आसान होगा, खासकर युवाओं के लिए। राजस्व में वृद्धि और स्वास्थ्य संबंधी नुकसान कम करने के लिए वित्त मंत्री से आग्रह की प्रशंसा नागरिक करेंगे।” इस समय चल रहे शीतकालीन सत्र में वित्त मंत्रालय ने एक संसदीय सवाल के जवाब में स्पष्ट किया है कि वर्ष 2018-19 में तंबाकू उत्पादों पर एकत्र केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेस (उपकर) 1234 करोड़ रुपए था जो 2019-20 में 1610 करोड़ और 2020-21 में 4962 करोड़ रुपए था। तंबाकू से एकत्र कर दूसरे स्रोतों से प्राप्त के जैसा ही है और भारत सरकार के संपूर्ण सकल कर राजस्व (जीटीआर) का भाग है तथा इसका उपयोग सरकार की सभी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए धन के रूप में किया जाता है।
तंबाकू पर कर में केंद्रीय उत्पाद शुल्क का हिस्सा घटकर औसतन सिगरेट के लिए 54% से 8%, बीड़ी के लिए 17% से 1% और बगैर धुंए वाले तंबाकू उत्पादों के मामले में 59% से 11% रह गया है। यह 2017 (जीएसटी लागू होने से पहले और 2021 (जीएसटी के बाद) की स्थिति है।
तथ्य यह है कि जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से तंबाकू पर कर में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है और गुजरे तीन वर्षों में सभी तंबाकू उत्पाद किफायती हुए हैं या पहुंच में आ गए हैं।
दुनिया भर के कई देशों में जीएसटी के साथ या बिक्री कर लगता है तथा इन्हें लगातार संशोधित किया जा रहा है। इसके बावजूद तंबाकू पर उत्पाद शुल्क बेहद कम है।
राजागिरि कॉलेज ऑफ सोशल साइंसेज, कोच्चि में हेल्थ इकनोमिस्ट और एडजंक्ट प्रोफेसर डॉ. रिजू जॉन ने कहा, “जीएसटी लागू किए जाने के बाद भारत में तंबाकू उद्योग तंबाकू उत्पादों पर एक तरह से विस्तारित कर-मुक्त सत्र का आनंद ले रहा है क्योंकि इस अवधि में तंबाकू पर कराधान में कोई अहम वृद्धि नहीं हुई है।
इससे कई तंबाकू उत्पाद सस्ते और आसान पहुंच में आ गए हैं। यह जन स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है और आशंका है कि 2010-2017 के दौरान भारत ने तंबाकू के उपयोग के मामले में जो कमी हासिल की है वह उलट जाए। केंद्रीय बजट में जनस्वास्थ्य से संबंधित इस मामले पर विचारशील रुख अपनाया जाना चाहिए और तंबाकू खासकर बीड़ी पर टैक्स में अच्छी-खासी वृद्धि की जानी चाहिए।”
कुल कर भार (खुदरा कीमत समेत अंतिम टैक्स के प्रतिशत के रूप में टैक्स) सिगरेट के लिए करीब 52.7%, बीड़ी के लिए 22% और बगैर धुंए वाले तंबाकू पर 63.8% है। यह सभी तंबाकू उत्पादों पर खुदरा मूल्य का कम से कम 75% कर भार रखने के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अनुशंसा के मुकाबले बहुत कम है।
डब्ल्यूएचओ के मुकाबले टैक्स बढ़ाकर तंबाकू उत्पादों की कीमत बढ़ाना तंबाकू का उपयोग कम करने की सबसे प्रभावी नीति है। तंबाकू की ऊंची कीमत इसे पहुंच से दूर करती है और खरीदना मुश्किल बनाती है। इससे उपयोगकर्ता सेवन छोड़ने के लिए प्रेरित होते हैं, गैर उपयोगकर्ताओं को शुरुआत करने से रोकता है और जो उपयोग जारी रखते हैं उनमें खपत कम होती है।
तंबाकू के उपयोग से गंभीर कोविड-19 संक्रमण, जटिलताओं और मौत का जोखिम बढ़ता है। उपलब्ध अनुसंधान से संकेत मिलता है कि धूम्रपान करने वाले गंभीर बीमारी के शिकार होने और कोविड-19 से मौत के लिहाज से भारी जोखिम में रहते हैं।
तंबाकू का उपयोग अपने आप में धीमे बढ़ने वाली एक महामारी है और हर साल इससे 13 लाख भारतीयों की मौत होती है। ऐसे में पहले के मुकाबले यह ज्यादा गंभीर है कि तंबाकू उत्पादों को उन लोगों से दूर रखा जाए जो इसका सेवन शुरू कर सकते हैं या आदी हो सकते हैं। इनमें युवा और समाज के उपेक्षित व पिछड़े वर्ग के लोग हैं।
डॉ. पंकज चतुर्वेदी, हेड नेक कैंसर सर्जन, टाटा मेमोरियल हॉस्पीटल ने कहा, “इस बात के अच्छे-खासे सबूत हैं कि तंबाकू से कोविड-19 संक्रमण और इसके बाद की जटिलताओं के गंभीर मामलों का जोखिम बढ़ जाता है। तंबाकू के उपयोगकर्ताओं में कोविड के बाद मौत का जोखिम ज्यादा है। यह उपयोगकर्ताओं और देश के हित में है कि सभी तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया जाए। इससे इसकी खरीद और खपत कम होगी। इससे कोविड-19 संक्रमण तथा उसकी जटिलताओं का शिकार होना कम होगा।”
भारत में तंबाकू का उपयोग करने वालों की संख्या दुनिया भर में दूसरे नंबर पर है (268 मिलियन) और इनमें से 13 लाख हर साल तंबाकू से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं। भारत में सभी कैंसर में करीब 27% तंबाकू के कारण होते हैं। तंबाकू के कारण होने सभी सभी बीमारियों और मौतों की वार्षिक आर्थिक लागत 2017-18 में 177,341 करोड़ रुपए होने का अनुमान है जो भारत के जीडीपी का 1% है। कोविड के बाद इसका बढ़ना जारी रहेगा।