न्यूज डेस्क
पिछले एक सप्ताह से दिल्ली में कश्मीर को लेकर हलचल बनी हुई है। जितनी हलचल घाटी में है उतनी ही दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में भी है। कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के बाद से मोदी-शाह पर सब की निगाहें टिकी हुई है। कश्मीर को लेकर मोदी-शाह के चेहरे पर बैचेनी भी टटोलने की कोशिश की जा रही है। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और सबके कयास आकर आर्टिकल 35 ए पर रूक रहा है।
जम्मू-कश्मीर को लेकर सबके जेहन में एक ही सवाल है-क्या सरकार कश्मीर में कुछ बड़ा करने जा रही है? हालांकि सरकार अभी तक अपना स्टैंड क्लीयर नहीं की है लेकिन इतना तो तय है कि मोदी-शाह कश्मीर को लेकर सच में कुछ बड़ा करने की तैयारी में है।
पिछले दिनों लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह के कश्मीर के हालात और अलगाववादी नेताओं को लेकर जिस तरह अपना रूख स्पष्टï किया था, उसी समय संकेत मिल गए थे कि मोदी अपने इस कार्यकाल में कश्मीर को लेकर गंभीर हैं।
जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले कुछ दिनों में मोदी सरकार की गतिविधियां
27 जुलाई : 10,000 से ज्यादा जवानों को जम्मू-कश्मीर में तैनात कर दिया गया।
28 जुलाई : पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर पर फोकस किया। उन्होंने कहा, विकास की मदद से बंदूक और बमों पर विजय पाई जा सकती है।
30 जुलाई : दिल्ली में जम्मू-कश्मीर बीजेपी इकाई के कोर ग्रुप की अहम बैठक हुई। विधानसभा चुनाव इसी साल कराने के संकेत दिए गए।
महबूबा मुफ्ती लगतार आर्टिकल 35 ए का कर रही हैं जिक्र
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती लगातार आर्टिकल 35 ए का जिक्र कर रही है। घाटी में बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की तैनाती पर भी उन्होंने ट्वीट कर केंद्र सरकार के इस फैसले की अलोचना करते हुए मुफ्ती ने कहा था कि यह एक राजनीतिक समस्या है। इसे सैन्य तरीकों से हल नहीं किया जा सकता है।
मुफ्ती ने लिखा था कि केंद्र के घाटी में जवानों की तैनाती करने से स्थानीय लोगों में भय पैदा कर दिया है। राज्य में सुरक्षा बल की कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार को अपनी नीति पर विचार करने की जरूरत है।
वहीं जम्मू-कश्मीर में सरकार की ओर से जारी सिक्यॉरिटी अडवाइजरी और घाटी में बड़े पैमाने पर सुरक्षाबलों की तैनाती के बाद पैदा हुए तनावपूर्ण माहौल के बीच महबूबा मुफ्ती और शाह फैसल समेत राज्य के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने देर रात राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात की।
नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर में ‘भयपूर्ण वातावरण’ पर चिंता जताई। कश्मीरी नेताओं की चिंता पर राज्यपाल ने उन्हें अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की सलाह दी।
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तो क्या 35 ए हटाने को लेकर सरकार है गंभीर ?
जम्मू-कश्मीर से धारा 35ए हटाए जाने की लंबे समय से मांग की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट भी याचिका दाखिल कर इसकी मांग की जा चुकी हैं। अगले हफ्ते एक याचिका पर सुनवाई हो सकती है, जिसमें इस धारा की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं।
दरअसल मोदी सरकार को लगता है कि यह सबसे मुफीद समय है जब वह धारा 35 ए को लेकर कड़ा रूख अख्तियार कर सकती है।
सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कह सकती है कि उसे इस धारा को हटाने से आपत्ति नहीं है। यह धारा 370 के मूल अवधारणा में नहीं थी।
क्या है आर्टिकल 35 ए
आर्टिकल 35 ए भारतीय संविधान का वह अनुच्छेद है जिसमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा को लेकर विशेष प्रावधान है। यह अनुच्छेद राज्य को यह तय करने की शक्ति देता है कि वहां का स्थाई नागरिक कौन है? सन 1956 में बने जम्मू-कश्मीर के संविधान में स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया था। यह जम्मू एवं कश्मीर में ऐसे लोगों को कोई भी सम्पत्ति खरीदने या उसका मालिक बनने से रोकता है, जो वहां के स्थायी निवासी नहीं हैं।
आर्टिकल 35 ए जम्मू एवं कश्मीर के अस्थाई निवासियों को वहां सरकारी नौकरियों और सरकारी सहायता से भी वंचित करता है। इसके मुताबिक अगर यहां की कोई लड़की इस राज्य के बाहर के किसी लड़के से शादी करती है तो पैतृक संपत्ति जुड़े उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की प्रॉपर्टी से जुड़े उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।
कौन है जम्मू-कश्मीर का स्थाई नागरिक?
जम्मू एवं कश्मीर के संविधान के अनुसार वहां का स्थायी नागरिक वह है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो, या फिर उससे पहले के 10 सालों से जम्मू-कश्मीर में रह रहा हो और उसने वहां प्रापर्टी बनाई हो।
महाराजा हरि सिंह के द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुसार जम्मू-कश्मीर का स्थाई नागरिक वह है जो सन 1911 या उससे पहले जम्मू-कश्मीर में पैदा हुआ और रहा हो या जिन्होंने कानूनी तौर पर राज्य में प्रॉपर्टी खरीद रखी है।
मालूम हो जम्मू-कश्मीर का गैर स्थायी नागरिक लोकसभा चुनावों में तो वोट दे सकता है, लेकिन वो राज्य के स्थानीय निकाय यानी पंचायत चुनावों में वोट नहीं दे सकता है।
कैसे अस्तित्व में आया आर्टिकल 35ए ?
जानकारों के मुताबिक कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने साल 1927 में पहली बार इस कानून को पास किया ताकि उत्तरी पंजाब से लोगों का यहां आना रुक सके। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के कुछ प्रभावशाली हिन्दू परिवारों ने हरिसिंह से ये कदम उठाने का आग्रह किया था। पाक अधिकृत कश्मीर के कुछ हिस्सों में ये कानून अभी भी जारी है।
भारत में इस कानून को साल 1954 में पहचान दी गई। यह संविधान की धारा 370 का एक हिस्सा है, जो कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देती है।
संविधान का ये अंग इस राज्य को एक अलहदा संविधान, अलग झंडा और सभी मामलों में स्वतंत्र रहने का अधिकार देता है, लेकिन विदेशी मामले, रक्षा और संचार के मामले भारत सरकार के पास ही हैं।
जब सन 1956 में जम्मू एवं कश्मीर संविधान को स्वीकार किया गया तो दो साल पुराने स्थाई नागरिकता कानून को भी सहमति दी गई। ये कानून इस राज्य के विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान की रक्षा करता है।
भारत प्रशासित कश्मीर देश का अकेला मुस्लिम बाहुल्य राज्य है। ऐसे में कई कश्मीरियों को ऐसा शक है कि हिन्दू राष्टï्रवादी समूह हिंदुओं को कश्मीर में आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। दरसअल भारत के साथ कड़वे संबंध रखने वाले कश्मीरियों के लिए ये बात हजम नहीं हो रही है, क्योंकि कश्मीर में साल 1989 से भारत के खिलाफ हिंसक संघर्ष जारी है।
35 ए की वजह से अधिकारों से वंचित है हजारों परिवार
आर्टिकल 35 ए की वजह से जम्मू एवं कश्मीर में पिछले कई दशक से रहने वाले बहुत से परिवारों को कोई भी अधिकार आज तक नहीं मिल पाया। मालूम हो कि 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान को छोड़कर जम्मू में बस चुके हिंदू परिवार आज तक शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं।
एक आंकड़े के अनुसार 1947 में जम्मू में पांच हजार 764 परिवार आकर बसे थे। इन परिवारों को आज तक कोई नागरिक अधिकार हासिल नहीं है। अनुच्छेद 35ए की वजह से ये लोग सरकारी नौकरी भी हासिल नहीं कर सकते और ना ही इन लोगों के बच्चे यहां व्यावसायिक शिक्षा देने वाले सरकारी संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं।
विधानसभा चुनाव की चर्चा भी गर्म
मोदी सरकार ने तत्काल कश्मीर पर किसी बड़े फैसले की संभावना को खारिज करते हुए मौजूदा घटनाक्रम को वहां से मिली खुफिया रिपोर्ट और चुनाव की तैयारी से जोड़ रही है। तय कार्यक्रम के अनुसार राज्य में अक्टूबर-नवंबर में बर्फ गिरने से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं।
चुनाव के लिए वहां बहुत बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की जरूरत होगी। सुरक्षा कारणों से ही वहां एक लोकसभा सीट पर दो चरणों में चुनाव कराने पड़े थे। सरकार वहां लोगों की भागीदरी से कामयाबी से चुनाव कराके अलगाववादी ताकतों को करारा जवाब देना चाहती है।