दूर बसे प्रियतम को लिखता कौन पत्र
अश्रु के क्षण।
बात हृदय की प्रकट किया है,
आसव का जल तनिक पिया है,
स्मृतियों की उम्र ढल गई,
बुझती बाती मुखर दिया है।
पीड़ा को उन्मादित करता कौन अत्र
अश्रु के क्षण।
उसने मुझे बुलाया है कल
जाऊंगा मै कल के कल से
भले पैर मे चुभ जायें कांटे
मिट जाऊं मै भ्रम के छल से।
झंझा के पावस मे छाता कौन छत्र
अश्रु के क्षण।
