राजेन्द्र कुमार
यूपी पुलिस में साफ छवि वाले एक दर्जन से भी अधिक अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने को तैयार हैं। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कार्य करने का अवसर मिलने से अफसरों के केंद्र सरकार के बड़े पदों पर जाने रास्ता साफ होता है। इसलिए राज्यों में तैनात आईएएस और आईपीएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन करते है।
इसी क्रम ने इन सबने केंद्रीय पर प्रतिनियुक्ति जाने के लिए आवेदन किया हुआ है। इनमें पांच आईपीएस ऐसे भी हैं, जिन्होंने एक साल पहले केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उस पर कोई फैसला अब तक नही लिया गया। यानि सरकार अपने इन काबिल अफसरों को अभी छोड़ने को तैयार नही है।
सरकार के इस रुख को जाने के बाद भी बीते दिनों एक एडीजी, एक आईजी, दो डीआईजी और आठ जिलों के पुलिस कप्तानों ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन किया। इन अफसरों को उम्मीद है कि वर्तमान डीजीपी के प्रयासों से उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए सरकार से अनुमति मिल जायेगी।
पहले वाले डीजीपी से इन अफसरों को शायद ऐसी उम्मीद नही थी, इसीलिए उन्होंने बीते साल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन नही किया था। अब देखना यह है कि उक्त अफसरों की उम्मीद कब पूरी होगी? क्योंकि सिर्फ डीजीपी के चाहने भर से किसी आईपीएस को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने का अवसर नही मिलता।
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए डीजीपी के आलावा अपर मुख्य सचिव गृह, प्रमुख सचिव मुख्य मंत्री और खुद मुख्यमंत्री का सहमत होना जरूरी है। इनमें से एक ने भी यदि मन से किसी अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने की पैरवी कर दी तो उसे केंद्र सरकार के साथ काम करने का मौका मिल जाता है।
अब देखना यह है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की चाह रखने वाले आईपीएस अफसरों में से किस-किस को डीजीपी, अपर मुख्य सचिव गृह, प्रमुख सचिव मुख्य मंत्री की कृपा मिलती है? जिस आईपीएस अफसर को इन आला अफसरों की कृपा मिली, वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने का आदेश पा जायेगा, यह अब पुलिस मुख्यालय की आलीशान बिल्डिंग में बैठने वाले अफसरों के बीच कहा जा रहा है।
ना साहब ना …
कई अधिकारी जिलों की तैनाती से घबराते हैं। ऐसे में यह अफसर किसी भी विभाग में अपनी तैनाती का आग्रह अपर मुख्य सचिव नियुक्ति और कार्मिक से करते हैं। कुछ अधिकारी मुख्य मंत्री से मिलकर भी अपनी तैनाती मुख्यालय के किसी विभाग में करने की फरियाद करते हैं। तो मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी ऐसे आवेदनों को अपर मुख्य सचिव नियुक्ति और कार्मिक के पास भेज देता है। जिस पर नियुक्ति विभाग कार्यवाही करते हुए विभागों में कार्य करने के इच्छुक अधिकारिओं को उनकी मंशा के अनुसार तैनाती देने का प्रयास करता है।
इस व्यवस्था के अनुसार बीते दिनों जिलों में तैनात सचिव स्तर के दो अफसरों को नियुक्ति विभाग के एक विशेष सचिव का फोन कर यह पूछा कि सर, आप क्या फलां विभाग में जायंगे? विशेष सचिव नियुक्ति ने जिस विभाग का नाम लिया था, वह राज्य के सबसे प्रमुख पांच विभागों में तीसरे नंबर का विभाग है।
यह विभाग सरकार की आमदनी और खर्चे का हिसाब रखता है। इस विभाग के अपर मुख्य सचिव की कोई सलाह मुख्य मंत्री भी नही टालते और ना ही इस विभाग के किसी भी फैसले पर कोई मंत्री या अधिकारी कुछ बोलता है। लेकिन इस विभाग में तैनाती की बात सुन कर जिले में कार्यरत अधिकारी हडबडा गए और विशेष सचिव से फोन पर बोले ना साहब ना। वहां तो एसीएस साहब किसी को बोलने तक नही देते।
एसीएस मतलब अपर मुख्य सचिव। और एसीएस साहब की भाषा भी खराब है। अब इस उम्र में हमें क्यों बेज्जत करवाओंगे। कोई और विभाग देख लो न मिले तो साहब को बोल दो मैं जिले में ही ठीक हूँ। जबकि जिले में तैनात दूसरे अधिकारी ने विशेष सचिव से कहा कि अगर सर मुझसे या मेरे काम को लेकर खफां हों तो वह मुझे किसी निदेशालय में भेज दे, लेकिन उक्त विभाग में मैं सचिव बन कर मीन-मेख नही निकाल पाऊंगा।
जिलों में तैनात दोनों अफसरों के मत से अपर मुख्य सचिव नियुक्ति और कार्मिक अवगत हो गए है और जिलों में तैनात अफसरों की मंशा अभी पूरी नही हुई है।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)