जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में अब शिवसेना भी जोर शोर से उतरने जा रही है। बीजेपी विरोधी खेमे में खड़ी शिवसेना अपने नए सहयोगियों के लिए उसी तरह की स्थिति बनाना चाहती है जो एआईएमआईएम के नेता असासुद्दीन औवेसी के मैदान में उतरने से बीजेपी के लिए बन सकती है। हालांकि जमीन पर यह कितनी कारगर होगी, इसका आकलन चुनाव नतीजों पर ही होगा।
कुछ का मानना है कि हिंदूवादी छवि के कारण शिवसेना बंगाल में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है, तो वहीं बीजेपी का कहना है कि राज्य में शिवसेना की मौजूदगी न के बराबर है, इसलिए उसे कोई चिंता नहीं है। ऐसे में सवाल है कि एनडीए की पूर्व सहयोगी की बंगाल चुनाव में एंट्री से क्या वाकई बंगाल की राजनीति के समीकरण बदलेंगे या फिर ऐन वक्त पर चुनाव में उतरने का दांव खुद शिवसेना के लिए ही उलटा न पड़ जाए।
बीजेपी व शिवसेना ने लगभग तीन दशक तक एक दसरेके साथ राजनीति की, लेकिन अब दोनों एक दूसरे के खिलाफ हैं। शिवसेना महाराष्ट्र की जंग अन्य राज्यों में ले जा रही है और जितना भी संभव हो रहा है बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपने आपको सत्ता में काबिज करना चाहती है, तो वहीं अब शिवसेना बंगाल चुनाव में बीजेपी का खेल खराब करने में जुटी है। राज्य में बीजेपी हिंदुत्व का मुद्दा जोर शोर से उठा रही है। अब शिवसेना भी इसी मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतर रही है।
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So, here is the much awaited update.
After discussions with Party Chief Shri Uddhav Thackeray, Shivsena has decided to contest the West Bengal Assembly Elections.
We are reaching Kolkata soon…!!
Jai Hind, জয় বাংলা !
— Sanjay Raut (@rautsanjay61) January 17, 2021
शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने ट्वीट कर कहा है कि पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे से चर्चा के बाद शिवसेना ने बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। हम बहुत जल्द कोलकाता आ रहे हैं। जय हिन्द, जय बांग्ला का नारा भी संजय राउत ने दिया है।
राउत का कहना है कि बंगाल में शिवसेना की इकाई कई सालों से काम कर रही है। वह पश्चिम बंगाल जाकर रिसर्च करेंगे और उद्धव ठाकरे मार्गदर्शन करेंगे। यह एक शुरुआत है। हम किसी को हराने या मदद करने नहीं जा रहे। हम पार्टी का विस्तार करने जा रहे हैं।
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विभिन्न राज्यों की चुनावी राजनीति में इन दिनों एआईएमआईएम के नेता असासुद्दीन औवेसी की मौजूदगी की चर्चा अहम हैं। भाजपा विरोधी दल इसे भाजपा की बी टीम का नाम दे रहे हैं। हालांकि बीजेपी व औवेसी दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं।
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विपक्षी खेमे को लगता है कि औवेसी के चुनाव में उतरने से धर्म निरपेक्ष वोट बंटते हैं। ऐसे में शिवसेना भी हिंदू वोटों कों बांट सकती है। हालांकि शिवसेना को पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा से भी कम वोट मिले थे। कई सीटों पर तो उसके पास उम्मीदवार भी नहीं थे।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र दुबे का कहना है कि जहां एक ओर असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री बंगाल में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकती है तो वहीं शिवसेना के चुनाव में उतरने से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। एआईएमआईएम ममता और बीजेपी विरोधी दलों के कुछ वोटों में सेंधमारी करके अपनी ओर खींच सकती है तो हिंदूवादी पार्टी की छवि होने के नाते शिवसेना बीजेपी के वोट बांटकर घाटा करा सकती है जिससे ममता को मुनाफा हो सकता है। इस बार चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण तय है, लेकिन शिवसेना की एंट्री किस पर भारी पड़ने वाली है, इसका अंदाजा चुनाव के रिजल्ट में हो सकेगा।
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब शिवसेना बंगाल में चुनाव लड़ने जा रही है। इससे पहले पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव और 2016 विधानसभा चुनाव में भी कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 2019 लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने 15 सीटों- तमलुक, कोंटई, मिदनापुर, उत्तर कोलकाता, पुरुलिया, बैरकपुर, बांकुरा, बारासात, बिश्नुपुर, उत्तर मालदा, जादवपुर वगैरह पर चुनाव लड़ा था। 2016 चुनाव में शिवसेना ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन किसी में भी जीत दर्ज नहीं कर सकी।