उत्कर्ष सिन्हा
“भारत में लोकतंत्र की मौत हो रही है”…. ये शब्द शुक्रवार की प्रेस कांफ्रेंस में एक तरह से घोषणा के स्वर थे. बीते कुछ महीनो से आत्मविश्वास से लबरेज दिख रहे कांग्रेस संसद राहुल गाँधी ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनपर विचार करना जरुरी है.
महंगाई और रोजगार के मुद्दे पर बुलाई गयी प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गाँधी के साथ राजस्थान के सीएम अशोक गहलौत भी बैठे थे.
राहुल गांधी ने अपनी बात की शुरुआत ही यह कहते हुए की… आज हमारे देश मे लोकतंत्र कहाँ है, नज़र नही आता, लोकतंत्र की मौत हो चुकी है। हमारे देश मे महज़ चार लोग है जो तानाशाही के बल पर देश को चला रहे हैं,,,, राहुल गांधी ने आगे कहा आग हमे बोलने नही दिया जाता ,देश को बचाने का समय आ गया है। जिस लोकतंत्र को बनाने मे 70 साल लगे थे, उस लोकतंत्र की मौत 8 सालों में कर दी गई.
राहुल गांधी ने कहा कि भारत में डेमोक्रेसी को खत्म कर दिया गया है, उन्होंने कहा कि हम महंगाई, बेरोजगारी, समाज में हिंसा की स्थिति का मुद्दा उठाना चाहते हैं। हमें संसद के बाहर और अंदर बोलने नहीं दिया जाता है। सरकार दो-तीन बड़े उद्योगपतियों के फायदे के लिए काम कर रही है.
इसके बाद राहुल ने देश के संस्थानों में आरएसएस के लोगो को बैठने का आरोप भी मोदी सरकार पर लगाया. जब उनसे पूछा गया कि भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है तब राहुल गाँधी ने जर्मन तानाशाह हिटलर का जिक्र करते हुए कहा कि चुनाव तो हिटलर भी जीत जाता था, अगर देश के सभी संस्थानों पर आपका कब्ज़ा हो तो आप चुनाव जीतते ही रहेंगे.
जाहिर है यहाँ राहुल प्रशासनिक अमले से ले कर चुनाव आयोग तक को कटघरे में खड़ा करना चाह रहे थे.
ये सारे आरोप हल्के नहीं हैं. लेकिन इन बातो पर क्या बहस होगी ? क्या मुख्य धारा का मीडिया कहे जाने वाले टीवी चैनल इन सवालों पर बहस कराने के लिए तैयार होंगे ? इस बात की संभावन कम है और ये बात राहुल गाँधी भी खूब जानते हैं, इसीलिए उन्होंने मीडिया को कुछ तल्खी के साथ उकसाने का प्रयास भी किया.
प्रेस कांफ्रेंस में अशोक गहलौत ने जब कहा कि इन हालातों में मीडिया को भी आगे आना पड़ेगा तब राहुल उन्हें टोकते हुए बोले .. नहीं , ये लोग आगे नहीं आयेंगे.
दिल्ली के सियासी मौसम में कांग्रेस और भाजपा इस वक्त आमने सामने की लडाई में है. प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मामले में जिस तरह से सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी से पूछ ताछ के बाद अख़बार के आफिस को सील किया गया और फिर संदन के बीच से कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे को इडी कार्यालय बुलाया गया, यह बताने के लिए काफी है कि मोदी सरकार गाँधी परिवार पर बड़ा दबाव बनाना चाहती है.
दूसरी तरफ कांग्रेस इस मुद्दे पर कतई दबने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है. उसका कहना है कि बेरोजगारी और मंहगाई जैसे मुद्दों से डरी हुयी मोदी सरकार कांग्रेस पर आक्रमण कर रही है. संसद के गलियारे में भी राहुल गाँधी इस बात को मीडिया कर्मियों के सामने बार बार कहते रहे.
राहुल गाँधी ने यह भी कहा कि सरकार डरी हुयी है और इसलिए दमनकारी रवैया अपना रही है. सरकार के पास बुनियादी सवालों के जवाब नहीं है और वह चर्चा से भाग रही है.
जब उनसे विपक्ष की कमजोरी पर सवाल किया गया तब राहुल ने बिलकुल स्पष्ट के साथ कहा कि कोई विपक्षी पार्टी अकेले नहीं लड़ रकती है. देश की संस्थाओं और जनता को लोकतंत्र बचने के लिए सक्रिय और मुखर होना पडेगा.
एक तरफ भाजपा कांग्रेस को भ्रष्ट्र के मुद्दे पर घेरने की कोशिश में लगी है तो दूसरी तरफ राहुल गाँधी विचारधारा की लडाई को तेज करने में लगे हैं. आम जनता से जुड़े जिन मुद्दों से मोदी सरकार कतरा रही है कांग्रेस उसे उन्ही मुद्दों पर घेरे में लगी है.
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लेकिन सियासत से इतर कुछ सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण बन कर उभर रहे हैं. देश में बढती बेरोजगारी का सवाल, लगातार बढती महंगाई का सवाल आम जन मानस के बीच लगातार बना हुआ है और मोदी सरकार इन सवालों पर कोई आश्वस्तकारी जवाब भी नहीं दे पा रही है.
लेकिन राहुल गाँधी ने इससे बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या भारत की सरकारी संस्थाएं किसी व्यक्ति विशेष के प्रभाव में काम करने लगी हैं? ये सवाल बहुत बड़ा है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आजादी के अमृत महोत्सव के वक्त क्या भारत में लोकतंत्र वाकई मर रहा है?
इन सवालों का जवाब सरकार या कोई पार्टी नहीं दे सकती, इसका जवाब तो भारत भाग्य विधाता कही जाने वाली जनता को ही देना होगा.