प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. गीत सम्राट गोपाल दास नीरज की आज दूसरी पुण्य तिथि है. मंच और फिल्मों पर एक जैसा जादू छोड़ने वाले गोपाल दास नीरज ने गीतों को रचा नहीं जिया है. यही वजह है कि उनके चाहने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उसे उँगलियों पर नहीं गिना जा सकता. 93 साल की अवस्था तक वह जिये और अपने आख़री वक्त तक अपनी रचना धर्मिता में लगे रहे.
आज उनकी दूसरी पुण्य तिथि पर उनके चाहने वालों ने उन्हें अपने-अपने तरीके से याद किया. वरिष्ठ व्यंग्यकार मुकुल महान का नीरज जी के साथ पारिवारिक रिश्ता रहा है. उनकी दूसरी पुण्य तिथि पर उन्हें याद आया कि कक्षा सात में पढ़ाई के दौरान विद्यालय में हुई काव्य प्रतियोगिता में नीरज जी की कविता सुनाकर पहला पुरस्कार जीता था. बाद में उन्हीं नीरज जी के सानिध्य में मंचों पर काव्य पाठ का मौका मिला.
मुकुल महान हास्य-व्यंग्य के रचनाकार हैं लेकिन जीवन का दर्शन उन्हें नीरज जी के गीतों में ही मिला. वह उन्हें विरह-दर्शन का ऋषि मानते हैं. मुकुल महान बताते हैं कि नीरज जी को मेरा हंसोड़ और मस्तमौला स्वभाव बहुत पसंद था. नीरज जी के साथ करीब सवा सौ कवि सम्मलेन पढ़े. मुझे महान उपनाम नीरज जी ने ही दिया.
मुकुल महान ने बताया कि दूरदर्शन के लिए संतोष वाल्मीकि और सर्वेश अस्थाना के प्रयास से डाक्यूमेंट्री बनाई गई तो उसमें मैंने ही उनके साहित्यिक साक्षात्कार लिए. अलीगढ़ स्थित उनके आवास पर भी कई बार रुका और वहां उन्हें मिले पद्म सम्मानों को छूकर देखा. मुकुल महान उनसे हुई आख़री मुलाक़ात को बताते हुए भावुक हो गए. डॉ. विष्णु सक्सेना ने सिकंदराराऊ में कवी सम्मेलन कराया था. नीरज जी बीमार थे. डॉ. कीर्ति काले को सम्मानित कर वापस लौट गए. मैं विष्णु जी के साथ उन्हें गाड़ी तक छोड़ने गया तो बोले कि मुकुल अलीगढ़ चलना हो तो आओ गाड़ी में बैठ जाओ. मैंने कहा दादा ,अभी मैंने अपना काव्यपाठ ही नही किया. फिर जल्दी ही अलीगढ़ आऊंगा. यह सुनकर नीरज जी मुस्कुराए पर इस बार उनकी मुस्कुराहट में एक अनकहा रहस्य सा लगा और हम नीरज जी की जाती हुई गाड़ी को तब तक देखते रहे जब तक वह आंखों की दृष्टि सीमा के पार नही हो गई. या ये कहूँ कि साँस की शराब का ख़ुमार देखते रहे …कारवाँ गुज़र गया.
नीरज जी को याद करते हुए सुपरिचित व्यंग्यकार पंकज प्रसून कहते हैं कि कौन कहता है कि नीरज मर गया है. वो गया है स्वर्ग में कविता सुनाने. गीत का मुखड़ा सुनाया इस धरा को, अब गया है अंतरा वो गुनगुनाने.
पंकज बताते हैं कि नीरज जी का कविताओं को लेकर समर्पण का ऐसा भाव था कि वो एम्बुलेंस में बैठकर भी कविता पढ़ने गए हैं. मेडिकल कालेज के शताब्दी वर्ष पर हुए मुशायरे में वह एम्बुलेंस में बैठकर कविता सुनाने गए थे, कविता पढ़कर उसी से वापस लौट गए थे.
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वरिष्ठ व्यंग्यकार और पत्रकार प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव कहते हैं कि गोपालदास नीरज हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर बादशाह और मशहूर फ़िल्मी गीतकार थे. वे पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया. पहले पद्मश्री से, उसके बाद पद्म भूषण से. यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला.