जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। देश के जाने-माने और वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी शाहिद जमील ने देश के जीनोम अनुक्रमण कार्य का समन्वय करने वाले वैज्ञानिक सलाहकार समूह, भारतीय SARS-COV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टिया के प्रमुख के पद से से किनारा करते हुए इस्तीफा देकर सबको चौंका डाला है।
उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कोरोना वायरस महामारी की सबसे प्रमुख वैज्ञानिक आवाजों में से एक रहे है। उनके अचानक से इस्तीफा देने को लेकर अभी कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है लेकिन पिछले दिनों उन्होंने कोरोना की दूसरी लहर को लेकर डॉ. शाहिद जमील इंडियन एक्सप्रेस के एक इवेंट में बड़ा बयान दिया था और कोरोना की दूसरी लहर के प्रसार को रोकने के लिए सरकार के प्रयासों की कड़ी आलोचना की थी।
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उन्होंने इस दौरान कहा था कि सरकारी अधिकारियों ने समय से पहले यह मानने में गलती की थी कि जनवरी में महामारी खत्म हो गई थी, और कई अस्थायी सुविधाओं को बंद कर दिया गया, जिसे पिछले महीनों में स्थापित की गई थीं।
एनडीटीवी की खबर के अनुसार डॉ. शाहिद जमील ने हाल में न्यूयॉक टाइम्स के लिए एक लेख लिखा था। उन्होंने उस लेख में सरकारी नीति की आलोचना भी की थी।
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लेख में कहा गया था कि डेटा के आधार पर निर्णय लेना अभी तक एक और दुर्घटना है, क्योंकि भारत में महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई है. हम जिस मानवीय कीमत को झेल रहे हैं, वह एक स्थायी निशान छोड़ जाएगी।
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इसके आलावा उन्होंने टेस्टिंग और आइसोलेशन बढ़ाने, अस्पताल में बिस्तरों की संख्या और अधिक अस्थायी सुविधाएं बढ़ाने, सेवानिवृत्त डॉक्टरों और नर्सों की सेवा लेने के लिए उनकी लिस्ट बनाने और ऑक्सीजन समेत महत्वपूर्ण दवाओं की सप्लाई चेन को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया था।
उन्होंने लिखा था, कि इन सभी उपायों को अमल में लाने के लिए भारत में मेरे साथी वैज्ञानिकों के बीच व्यापक समर्थन प्राप्त है लेकिन वे साक्ष्य-आधारित नीति निर्माताओं के कड़े प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं।
उनके बारे में…
शाहिद जमील एक भारतीय वायरोलॉजिस्ट और अकादमिशियन हैं। अशोका यूनिवर्सिटी से पहले वो वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे।
हेपेटाइटिस ई वायरस में अपने शोध के लिए जाने जाने वाले जमील सभी तीन प्रमुख भारतीय विज्ञान अकादमियों राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत, भारतीय विज्ञान अकादमी और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के निर्वाचित सदस्य भी हैं।
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साल 2000 में चिकित्सा विज्ञान में उनके योगदान के लिए सर्वो‘च भारतीय विज्ञान पुरस्कारों में से एक शांति स्वरूप भटनागर सम्मान से उन्हें नवाजा गया था