न्यूज डेस्क
राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन विश्वविद्यालय की ओर से जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम यानी ‘यू डाइसÓ की रिपोर्ट ने सरकारी स्तर की प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलकर रख दी थी।
निजी क्षेत्र के स्कूलों से बेहतर शैक्षिक तंत्र, कहीं ज्यादा योग्य प्रशिक्षित अध्यापक होने के बावजूद साल 2015-16 और 2016-17 के बीच सरकारी प्राथमिक स्कूलों को 56.59 लाख विद्यार्थियों ने छोड़ दिया।
शिक्षा ऐसा मसला है, जो हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है। शिक्षा ही एक मात्र ऐसा चीज है जो लोगों के साथ-साथ देश का विकास करता है। यही वजह है कि सरकारी तंत्र पर इसे लेकर खूब सवाल उठते हैं, फिर भी हमारी सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर गंभीर नहीं है।
दिल्ली सहित कुछ गिने-चुने राज्यों को छोड़ दिया जाए तो देश के अधिकांश राज्यों में सरकारी स्कूलों की हालत ठीक नहीं है। सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नदारद है। स्कूल बिल्डिंग हो या छात्रों के बैठने की व्यवस्था, शिक्षकों की संख्या हो या शिक्षा की गुणवत्ता, अधिकांश राज्यों में सरकारी स्कूलों का स्थिति खराब है। सरकार की लापरवाही और बदइंतजामी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के 37 प्रतिशत स्कूलों में बिजली नहीं है।
सरकारी तंत्र दावे करना नहीं भूलता, लेकिन असलियत सच्चाई से कोसों दूर है। पीएम मोदी भी 2014 में सत्ता के आने के बाद से कई बार अपने भाषण में कह चुके हैं कि उनकी सरकार ने पूरे देश को रोशन कर दिया है। सरकार ने ऐसी-ऐसी जगहों पर बिजली के तार पहुंचाए है जहां कोई सोच भी नहीं सकता। गांव-गांव में बिजली पहुंच गई है। ऐसा ही कुछ दावा उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी करते हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं है।
यह तो हो गई बिजली की बात। सरकारी स्कूलों की दुर्दशा की कहानी बीते माह फरवरी में आई एक रिपोर्ट से समझा जा सकता है।
राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन विश्वविद्यालय की ओर से जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम यानी ‘यू डाइसÓ की रिपोर्ट ने सरकारी स्तर की प्राथमिक शिक्षा की पोल खोलकर रख दी थी।
56 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ा
इस रिपोर्ट के मुताबिक, हजारों करोड़ के सरकारी बजट के बावजूद लोगों का कम से कम प्राथमिक स्तर पर सरकारी शिक्षा से मोहभंग होता जा रहा है। निजी क्षेत्र के स्कूलों से बेहतर शैक्षिक तंत्र, कहीं ज्यादा योग्य प्रशिक्षित अध्यापक होने के बावजूद साल 2015-16 और 2016-17 के बीच सरकारी प्राथमिक स्कूलों को 56.59 लाख विद्यार्थियों ने छोड़ दिया।
यूपी-बिहार में अधिक समस्या
प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों को छोडऩे वालों की सबसे ज्यादा संख्या अकेले उत्तर प्रदेश और बिहार से है। यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बुरी स्थिति बिहार की है, जहां 2015-16 की तुलना में 2016-17 में 15 लाख 21 हजार 379 बच्चों ने सरकारी प्राथमिक स्कूलों की पढ़ाई छोड़ दी। यह हालत नीतीश सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद है।
नीतीश सरकार ने पिछले साल अपना शिक्षा बजट 25 हजार करोड़ से बढ़ाकर 32,125 करोड़ रुपये कर दिया था। वैसे भी राज्य में उनकी 2015 से सरकार है। फिर वे संजीदा नेता भी माने जाते हैं बावजूद बिहार का ये हाल है।
अब उत्तर प्रदेश का हाल जान लेते हैं। यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी प्राथमिक शिक्षा से मोहभंग के मामले में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है, जहां साल 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 9 लाख 57 हजार 544 विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल छोड़ा।
प्राइवेट स्कूलों में एसी-पंखें और सरकारी में बिजली भी नहीं
एक ओर प्राइवेट स्कूलों में बच्चे पंखे-एसी में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं और दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में बिजली नहीं है। सरकारी स्कूलों की दुदर्शा बिजली तक ही सीमित नहीं है। स्कूलों की बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 37 फीसदी ऐसे स्कूल हैं जहां बिजली नहीं है। इसमें सबसे खराब हालत असम की है। इस राज्य में केवल 24.28 फीसदी स्कूलों तक बिजली की पहुंच है।
एकीकृत जिला शिक्षा प्रणाली सूचना (यूडीआईएसई) की साल 2017-19 की रिपोर्ट के अनुसार, ‘देश के केवल 63.14 स्कूलों में बिजली मौजूद थी, जबकि बाकी स्कूलों में बिजली नहीं थी।’
स्कूलों में बिजली की उपलब्धता के मामले में लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और दादरा और नगर हवेली की स्थिति सबसे बेहतर है। वहीं, दिल्ली के भी 99.93 प्रतिशत स्कूलों में बिजली उपलब्ध है। असम, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों के स्कूलों में बिजली की पहुंच सबसे खराब है।
वहीं इस मामले में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ के अंतर्गत गांवों/ ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई जाती है। ऐसे स्कूल जिन्हें बिजली कनेक्शन की आवश्यकता है, वे राज्य विद्युत युटिलिटी से संपर्क कर सकते हैं और बिजली सेवा कनेक्शन मौजूदा नियमों के तहत राज्य विद्युत युटिलीटी द्वारा लगाया जाता है।
यूडीआईएसई 2017-19 की रिपोर्ट के अनुसार, असम के 24.28 प्रतिशत स्कूलों में बिजली है, जबकि मेघालय के 26.34 प्रतिशत, बिहार के 45.82 प्रतिशत, मध्य प्रदेश के 32.85 प्रतिशत, मणिपुर के 42.08 प्रतिशत, ओडिशा के 36.05 प्रतिशत और त्रिपुरा के 31.11 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन है।
हालांकि लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और दादरा और नगर हवेली के सभी स्कूलों में बिजली है, जबकि दिल्ली में 99.93 प्रतिशत स्कूलों में बिजली उपलब्ध है।
आंध्र प्रदेश में 92.8 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 70.38 प्रतिशत, गोवा में 99.54 प्रतिशत, गुजरात में 99.91 प्रतिशत, हरियाणा में 97.52 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 92.09 प्रतिशत और केरल में 96.91 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन है।
रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में 85.83 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन है जबकि झारखंड में 47.46 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 36.63 प्रतिशत, पुदुचेरी में 99.86 प्रतिशत, पंजाब में 99.55 प्रतिशत, राजस्थान में 64.02 प्रतिशत, तमिलनाडु में 99.55 प्रतिशत, तेलंगाना में 89.89 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 44.76 प्रतिशत, उत्तराखंड में 75.28 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 85.59 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन है।