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कश्मीर में मरीजों की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा ?

न्यूज डेस्क

पिछले साल 5 अगस्त को जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राज्य को दो भागों में बांटने का ऐलान किया तो वहां के 70 लाख लोगों की जिंदगी एकदम थम गई। सरकार ने वहां कई तरह की पाबंदिया लगा दीं जिसकी वजह से आम जनजीवन ठप हो गया। लोग घरों में कैद होकर रह गए। संचार माध्यमों पर पाबंदिया लगने की वजह से दुनिया से उनका संपर्क टूट गया।

कश्मीर में सरकार ने जो नाकेबंदी की उसकी सबसे बड़ी कीमत वहां के मरीजों और उनके परिजनों ने चुकायी है। फोन, इंटरनेट पर प्रतिबंध होने की वजह से वहां के डॉक्टर भी लाचार हो गए थे।

गौरतलब है कि नाकेबंदी के दौरान 27 अगस्त 2019 को एक कश्मीरी डॉक्टर को महत्वपूर्ण दवाइयों की कमी होने और मरीजों की मौत होने की चेतावनी देने की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया था। श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर ओमर सलीम अख्तर को इसलिए गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उन्होंने मीडिया से कहा था कि जीवन रक्षक दवाईयां खत्म हो रही हैं और नई खेप नहीं आ रही है। वह अपने हाथ में एक तख्ती लिए हुए थे, जिस पर लिखा था, ‘यह विरोध नहीं है, यह अनुरोध है’ । इसी की वजह से उन्हें हिरासत में ले लिया गया।

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डॉ. सलीम ने बताया था कि मेरे एक मरीज को 6 अगस्त को कीमोथेरेपी की आवश्यकता थी। वह 24 अगस्त को मेरे पास आया लेकिन हमारे पास कीमोथेरेपी की दवाईयां नहीं थीं। वहीं एक अन्य मरीज को दिल्ली से कीमोथेरेपी की दवाईयां मंगानी थीं लेकिन वह दवाई नहीं मंगा पाया। अब उसकी कीमोथेरेपी कब होगी यह नहीं कह सकते।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘अगर मरीज डायलिसिस नहीं कराएंगे तो वे मर जाएंगे। अगर कैंसर के मरीज कीमोथेरेपी नहीं कराएंगे तो वे मर जाएंगे। जिन मरीजों का ऑपरेशन नहीं होगा, वे मर जाएंगे।’

कश्मीर में नाकेबंदी के दौरान बहुतों ने अपनों को खोया है। समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार सनाउल्लाह डार की 20 साल की बेटी सुमाया के अनुसार उनके पिता जैसे मरीजों के लिए उचित इलाज मुहैया कराना खासा मुश्किल था।

कश्मीर में नाकेबंदी की वजह से डार के परिवार के लिए उन्हें दो हजार किलोमीटर दूर मुंबई में ले जाकर उनकी सर्जरी कराना संभव नहीं हो पाया। अक्टूबर में जब तक परिवार उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में ले जा पाया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वहां से अपने घर लौटने के एक हफ्ते बाद ही डार इस दुनिया को छोड़कर चले गए।

डार का इलाज करने वाले डॉ. उमर जो ओंकोलोजिस्ट हैं कहते हैं, यदि डार की समय पर सर्जरी हो गई होती तो उनकी जिंदगी को बचाया जा सकता था।

वह कहते हैं कि कश्मीर में डार अकेले ऐसे मरीज नहीं हैं जिनकी समय पर इलाज ना मिलने से मौत हुई है। उन्होंने दूसरे डॉक्टरों से इसी तरह कई और मरीजों की मौतों के बारे में सुना है।

वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट पर रोक भारत में ही लगाई जाती है। कश्मीर ही नहीं, बल्कि हाल में नए नागरिकता कानून पर प्रदर्शनों के दौरान देश के दूसरे हिस्सों में भी अस्थायी रूप से इंटरनेट पर पाबंदियां लगाई गईं।

संचार माध्यमों पर प्रतिबंध लगाने पर सरकार ने कहा था कि कश्मीर में इंटरनेट और संचार के दूसरे साधनों पर रोक चरमपंथियों के बीच होने वाले संपर्क और संवाद को नियंत्रित करने के लिए जरूरी था। फिलहाल अब कश्मीर में मोबाइल फोन सेवाएं धीरे-धीरे बहाल हो रही हैं और आवाजाही पर लगी बंदिशों में भी ढील दी जा रही है।

घाटी में इसी साल जनवरी में इंटरनेट को आंशिक रूप से बहाल किया गया, लेकिन इंटरनेट यूजर्स सिर्फ सरकार की तरफ से मंजूर वेबसाइटें ही खोल पा रहे हैं। इनमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की वेबसाइटों के अलावा नेटफ्लिक्स और एमेजॉन जैसे प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं। सोशल मीडिया वेबसाइटों पर अब भी रोक है।

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इंटरनेट पर पाबंदी की सबसे बड़ी कीमत घाटी के मरीजों को ही चुकानी पड़ी है। समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार अब्दुल रहीम लांगू एक हाउसबोट के मालिक और टूरिज्म ऑपरेटर हैं। उन्हें एक अनोखे किस्म का कैंसर है। उन्हें भी अपनी जान जाने का डर सता रहा था क्योंकि वह टेलीफोन लाइनें बंद होने की वजह से दिल्ली में दवाइयों के सप्लायर से संपर्क नहीं कर पा रहे थे। टेलीफोन लाइनें शुरू होने के बाद भी 57 साल के लांगू को इंटरनेट के जरिए सप्लायर को डॉक्टर का नुस्खा भेजने में बहुत दिक्कतें हुईं, क्योंकि उसके बिना दवाएं मिलना संभव नहीं था।

इंटरनेट बंद होने की वजह से लांगू जैसे टूरिज्म ऑपरेटरों का काम भी प्रभावित हुआ। बहुत ही कम टूरिस्ट कश्मीर जा रहे हैं। इसका मतलब है कि लांगू की आमदनी बहुत कम हो गई है। ऐसे में, अगर दवाएं कश्मीर में नहीं पहुंच पा रही हैं तो उन्हें श्रीनगर से दिल्ली जाकर खरीदने के लिए विमान का टिकट खरीदना उनके जैसे मरीजों लिए मुश्किल हो रहा है।

अक्टूबर 2019 में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि घाटी से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से तीन माह में घाटी के कारोबारी समुदाय को १०,००० करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है। यह दावा कश्मीर के एक उद्योग चैंबर ने किया है। कश्मीर चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष शेख आशिक ने बताया था कि ‘कश्मीर में कारोबारियों का नुकसान 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है और सभी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। तीन महीने बीत चुके हैं, पर हालात ऐसे हैं कि लोग कारोबार नहीं कर रहे हैं। ‘

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आशिक ने कहा था कि कारोबार में नुकसान उठाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इंटरनेट सेवाएं बंद है। आज के समय में किसी भी कारोबार की बुनियादी जरूरत इंटरनेट है, जो कि उपलब्ध नहीं है।

आय कम होने की वजह से बहुत से लोग जीवनरक्षक दवाएं खरीदने के काबिल भी नहीं हैं। श्रीनगर में डल झील के किनारे पर खाली खड़े अपने हाउसबोट में बैठे लांगू कहते हैं, “हर महीने दवाएं खरीदने में मुझे बहुत मुश्किलें आ रही हैं। जिस तरह का मेरा काम है, उसमें अगस्त से कोई आमदनी नहीं हो रही है। टूरिस्ट नहीं आ रहे हैं। ”

वहीं सुमाया डार कहती हैं कि पिता की मौत के बाद उनका परिवार पूरी तरह टूट गया है। वह कहती हैं, “जब तक आपके साथ ऐसा कुछ ना हो, तब तक आप समझ ही नहीं पाते हैं कि टेलीफोन लाइनें और इंटरनेट कितने जरूरी हैं।”

पिता की मौत से मायूस सुमाया कहती हैं, “ऐसा लगता है कि मैं भी मर गई हूं, क्योंकि हमारे लिए जिंदगी तभी तक थी जब तक मेरे पिता जीवित थ।”

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