डा. सी. पी. राय
दृश्य 1-एक वीडियो मे एक साथी नेता जो संभवतः सांसद रह चुके है पैरो पर गिरकर वोट मांग रहे है ।
दृश्य 2– कुछ वर्षो पूर्व हम लोगो के 70 के दशक के समाजवादी साथी जो कई बार सांसद रहे और एक बार मंत्री भी रहे तथा जो पूरे समय जनता और लोगो को उप्लब्ध रहते है उनकी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ रही थी पर उनको भी वोट देने वाले सदस्यो को काफी पहले से घुमाना फिराना पड़ा और वोट देने के दो दिन पूर्व लाकर एक बड़े होटल मे रुकवा दिया जहां मनमाने तरीके से सदस्य लोग ऐश कर रहे थे पूरी बेशर्मी से ।एक दिन शाम को उसी होटल मे भोजन पर मुझे भी बुलाया गया था राजनीतिक एकजुटता दिखाने को । मैं पहुचा तो वो नेता मुझे लेकर एक तरफ जाकर बैठ गये और बोले भाई सी.पी.राय मेरे घर पर दिन रात सभी के लिये उपलब्ध रहता हूँ और सबके लिये तुरंत चल देता हूँ पर इन लोगो मे से किसी ने मेरे साथ भी कोई मुरव्वत नही किया और — सबने लिया है वोट देने का और बाकी ये सब खर्चा अलग ।
दृश्य 3– ऐसा ही दृश्य दोहराया गया एक बहुत हल्के व्यक्ति के लिये जिसने ऊपर से ठेके लेकर बेच कर कुछ करोड कमा लिया था और उसकी पत्नी भी जीत गई । जब वो अपने नेता से मिला तो गलती से बता गया कि इतने करोड खर्च हो गये तो नेता बोला कि क्यो इतना खर्च किया ? मुझे दे दिया होता तो एंमएलसी बना देता 6 साल की छुट्टी हो जाती ।
दृश्य 4– स्थानीय निकाय का एंमएलसी का चुनाव जो सत्ता ही जीतती है और जिसमे क्षेत्र के दारोगा जी की बड़ी भूमिका होती है पर सारे वोटर सदस्यो को एकत्र कर के रखना , चुनाव तक दारु मुर्गा और कुछ मोटा सा लिफ़ाफ़ा भी लग जाता है ।
दृश्य 5 -नामी दादा लोग का घर और उनके आतंक से इकट्ठे लोग फिर भी दारु और मुर्गा तो कई दिन चलता ही है ।
दृश्य 6 – प्रदेश की राजधानी बेचैन है कि चुनाव हार गये तो माहौल खराब हो जायेगा ,एक तरफ थैली के इन्तजाम के साथ मंत्री लोग और अन्य प्रमुख नेता दौड़ाए जाते है जिलो की तरफ और दूसरी तरफ एसडीएम , सीओ से लेकर दारोगा जी और लेखपाल तक सब सत्ता की इज्जत बचाने का बोझ अपने कन्धो पर ले लेते है ।
दरअसल ये बोझ लोकतंत्र की अर्थी का होता है जो नीचे से ऊपर तक सब सजा रहे होते है ,ढो रहे होते है और उसका पूरी विधि विधान से अंतिम संस्कार कर रहे होते है ।
क्या ग्राम स्वराज का सपना इसी के लिये देखा था बापू ने ?
क्या डा लोहिया ने चौखम्भा राज की कल्पना किया था की गाँव अपना राज सम्हाले और अपने फैसले खुद ले ।जिला अपनी जरूरत और विकास का फैसला खुद करे और फिर कुछ काम प्रदेश और उससे भी कम देश के पास रहे जिसमे रेल , विदेश , सुरक्षा , मुद्रा इत्यादि हो ।
क्या एक मजबूत पंचायती राज बिल राजीव गांधी इसी सब के लिये लाये थे जिसमे हर हाल मे चुनाव कराने का नियम है ।
ये संस्थाए अब तो बड़े भ्रष्टाचार , हत्याओ , दुश्मनी का कारण बन गई और अब सत्ता की ताकत , प्रशासन और पुलिस के दुरुपयोग तथा करोडो की खरीद फरोख्त इसका आधार बन गये ।
मुझे याद है कि मेरे गाँव मे ऐसी हवा आने के पहले प्रधान का चुनाव ही नही होता था बल्कि पूरे गाँव ने मिल कर गाँव के पण्डित जी जो सबकी पूजा और शादी करवाते थे उन्ही को स्थायी रूप से निर्विरोध प्रधान बना रखा था और इसमे सभी वर्गो की सभी की सहमती थी ,किसी की ताकत या डर इसके पीछे नही था । ऐसे ही ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष भी इलाके के और जिले के प्रतिष्ठित लोग ही होते थे जिनका सब सम्मान करते थे ।
जब मैं आगरा आ गया तो यहा भी महानगर पालिका मेरे क्षेत्र के बहुत प्रतिष्ठित बड़े डॉक्टर डा सरकार सभासद होते थे संभवतः जिनके एक बेटे उत्तर प्रदेश के आई जी हुये थे और जो बंगाली थे पर ना उनकी किसी ने कभी जाती पूछी और ना धर्म ।ऐसे ही लम्बे समय तक मेयर भी शहर के बड़े लोग होते थे ।
चुनाव भी हुआ तो कोई गन्दगी नही ,पैसे का तमाशा नही और गुण्डागर्दी या प्रशासन और सत्ता का दुरुपयोग तो कोई सोच भी नही सकता था ।
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इलाज अब सिर्फ एक है की ये सारे चुनाव किसी भी हालत मे अप्रत्यक्ष न होकर सीधे जनता से हो तभी इन चीजो पर कुछ लगाम लग पायेगी ।हर ऐसे चुनाव मे वो हर रास्ता बंद करना ही होगा जो लोकतंत्र की हत्या करता हो और इन संस्थाओ के सोशल ऑडिट इत्यादि का कोई तरीका ढूढना होगा जो इसे मजाक और भ्रस्टाचार का पहाड बनने से रोके ।कोई सामूहिकता का तरीका ढूढना होगा की उतने लोग मिल कर ही फैसला कर सकेगे । समाज के प्रतिष्ठित लोगो की निगरानी समितिया गठित कर उसके प्रती जवाबदेह बनाना होगा ।तभी हम बचा सकेंगे पंचायती राज व्यवस्था को और इसके उद्देश्यो को ।
(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)