अभिनय की दुनिया में लगातार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड ने कला प्रेमियों को झकझोर कर रख दिया. इस मौत की वजह क्या थी, इस पर मंथन तेज़ हो गया है. इस युवा कलाकार ने आखिर अपनी जान क्यों दे दी? इस पर मंथन जारी है. जांच एजेंसियां यह पता लगाने में जुटी हैं कि आखिर सिशांत ने ऐसा क्यों किया?
सुशांत सिंह की मौत से उपजे सवालों का हल हर कोई चाहता है लेकिन संवेदनशील अभिनेता और संवेदनशील रचनाकार विनायक सिन्हा ने सुशांत की मौत को किस तरह से देखा. उनकी यह कविता अपने हर पाठक को झकझोरती है. वक्त और हालात को कलमकार अल्फ़ाज़ की शक्ल में परोस देता है. ये वक्त साहित्य रचता है और ऐसे वक्त के साहित्य को बचा कर रखना भी जरूरी है. जुबिली पोस्ट ऐसे रचनाकारों की रचनाएं आपको नियमित रूप से प्रस्तुत करता रहता है.
मुंबई में सुशांत सिंह राजपूत ने
अपने फ़्लैट में फाँसी लगा कर
आत्महत्या कर ली.
कर ली तो कर ली.
दोस्त लोग कह रहे हैं ….
वो कई महीनों से डिप्रेशन से पीड़ित थे.
दोस्त लोग कह रहे हैं .. तो सही होगा.
सिर्फ चौंतीस साल की उम्र में
अच्छी शिक्षा, अच्छा खान-पान,
मौज-मस्ती,
मुंबई की चमक-धमक वाला जीवन
गर्लफ्रैंड, पैसा, स्टारडम,
जो चाहे वो पाए.
उसके बाद एक संघर्ष शुरू हुआ.
और फिर तुरंत आत्महत्या
क्योंकि यही सबसे आसान है.
जी लिए … जितना जीना था,
और चले गए.
एक झटके में सब कुछ छोड़ कर.
कई सपनों को तोड़कर.
कई उम्मीदों को ठोकर मारकर.
जी हाँ …. सब कुछ ख़त्म कर दिया
सुशांत ने ~ कुछ भी नहीं छोड़ा.
लेकिन ऐसा नहीं है. अभी कुछ बचा है.
आइये ..!! पटना चलते हैं, जहाँ
उनके पिता जी रहते हैं.
जिन्होंने जीवन भर संघर्ष किया
जीने के लिए, परिवार के लिए
बच्चों के लिए. बच्चों के सपनों के लिए
अपने स्वाभिमान के लिए
अपने गर्व के लिए, लेकिन ….
कभी आत्महत्या करने को नहीं सोची.
उन्होंने अपने बेटे को खूब अच्छे से
पाला-पोसा ~ बढ़िया शिक्षा दी.
इंजीनियरिंग कराया, लेकिन
नौकरी के लिए बाध्य नहीं किया.
बेटे को हीरो बनना था, साथ खड़े हो गए.
क्योंकि सुशांत से बड़े
उनके पिता के सपने थे.
जीवन भर साथ निभाने का वादा करके
आयी पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया.
उस बूढ़े बाप ने धीरे-धीरे
अपनी बेटियों की शादी कर दी.
एक बेटी ने भी साथ छोड़ दिया,
लेकिन वो टूटा नहीं ,संघर्ष करता रहा.
अपने संघर्षों के बावजूद, वो जी रहा है.
बीवी साथ नहीं थी, लेकिन वो जी रहा है.
एक बेटी ने साथ छोड़ दिया, लेकिन
वो जी रहा है, क्योंकि
उसकी आँखों में एक सपना था.
बेटे को कामयाब होते देखने का सपना.
संघर्षों से सदा लड़ा वो बाप,
उसे पैसे की चाह नहीं थी.
उसका धन उसका बेटा था.
उसका सपना उसका बेटा था.
उसका गर्व उसका बेटा था.
उसका स्वाभिमान उसका बेटा था.
उसका मनोबल उसका बेटा था.
उसके लिए जीने का मतलब ही
◆ उसका बेटा था. ◆
आज बेटे ने ही जीवन से हार मान ली,
और ये भी नहीं सोचा उसने,
उन एक जोड़ी
बूढ़ी आँखों का क्या होगा ?
जिसने बेटे के सपनों के लिए
अपने सारे सपने तोड़ डाले.
वो गर्व, वो स्वाभिमान, वो मनोबल
वो सपना, वो धन, वो उम्मीदें
सब एक झटके में खत्म हो गया.
मैं यही सोच रहा हूँ, कि
वास्तव में मरा कौन ?
सुशांत या उनके पिता.
यह भी पढ़ें : मालविका हरिओम की ताज़ा ग़ज़ल : ये कलियुग है यहाँ भूखा कभी रोटी नहीं पाता
यह भी पढ़ें : त्रासदी की ग़ज़ल : रोटियाँ तो रेलवाली पटरियाँ सब खा गईं
यह भी पढ़ें : त्रासदी की कविता : देवेन्द्र आर्य ने देखा “पैदल इंडिया”
यह भी पढ़ें : त्रासदी में कहानी : “बादशाह सलामत जिंदाबाद”