न्यूज डेस्क
बॉम्बे पुलिस एक्ट की धारा 161 के अनुसार एक सरकारी अधिकारी पर किसी अपराध के 1-2 साल के भीतर मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि 23 साल के बाद। इसके अलावा किसी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत सरकार से अनुमति लेनी होती है। संजीव भट्ट के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार ने अनुमति नहीं दी थी, इसके बावजूद ऐसा किया गया।
यह आरोप पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने लगाया है। उनका कहना है कि उनके पति राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार बने और उनकी जान को खतरा है। हालांकि आधिकारिक सूत्रों ने श्वेता भट्ट के इन आरोपों को गलत बताया है।
गौरतलब है कि हाल ही में संजीव भट्ट को 1990 के हिरासत में मौत के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
सात जुलाई को एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा कि संजीव भट्ट को दोषी करार दिए जाने के बाद उनके परिवार के लिए यह मुश्किल समय है। इस घटना ने उन्हें तोड़ दिया है।
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वहीं, आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि वह झूठ फैला रही हैं और मामले में निष्पक्ष मुकदमे के बारे में गलत धारणा बना रही हैं।
हिरासत में मौत मामले में संजीव भट्ट को सजा सुनाए जाने के खिलाफ उनका परिवार आज गुजरात हाईकोर्ट में अपील करेगा।
किस मामले में मिली है संजीव को सजा
मालूम हो कि यह मामला प्रभुदास वैशनानी की हिरासत में हुई मौत से जुड़ा है। 1990 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली थी। इस दौरान बिहार में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद 30 अक्टूबर 1990 को बुलाए गए बंद के दौरान जामनगर के जमजोधपुर कस्बे में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था।
इस संबंध में जामनगर पुलिस ने 133 लोगों को पकड़ा था। वैशनानी भी उनमें शामिल थे। वैशनानी विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता थे। संजीव भट्ट उस समय जामनगर के असिस्टेंट एसपी थे।
श्वेता भट्ट ने कहा कि उनके पति ने न तो किसी को गिरफ्तार किया और न ही किसी को हिरासत में लिया क्योंकि उनके पास इतना अधिकार नहीं था। दूसरी बात, प्रभुदास की मौत हिरासत में लिए जाने के 18 दिनों बाद हुई थी। उसने मजिस्ट्रेट या किसी अन्य के सामने प्रताडऩा की शिकायत भी नहीं की थी।
श्वेता ने दावा किया, ‘प्रभुदास के परिवार ने नहीं बल्कि विश्व हिंदू परिषद के सदस्य अमृतलाल मदजावजी वैशनानी ने हिरासत में प्रताडऩा की शिकायत की थी।’ सूत्रों के मुताबिक गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के जोर देने पर यह मामला दर्ज किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ‘संजीव भट्ट और पुलिस अधिकारियों की उनकी टीम ने लोगों को उनके घरों से निकाला था और उन्हें गिरफ्तार करने से पहले बेरहमी से उनकी पिटाई कर थी।’
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कई गवाहों की हो चुकी है मौत
श्वेता ने आरोप लगाया कि मामले के 300 चश्मदीद गवाहों में से सिर्फ 32 लोगों से ही पूछताछ की गई और बचाव पक्ष को इन लोगों से सवाल पूछने की अनुमति नहीं दी गई। वहीं सरकारी सूत्रों ने बताया कि संजीव भट्ट के आग्रह पर सत्र न्यायालय के जज ने उन्हें 48 गवाहों से पूछताछ की अनुमति दी थी, लेकिन बाद में वह इस तथ्य से मुकर गए।
सूत्रों ने कहा कि 30 सालों के दौरान कई गवाहों की मौत हो गई। इनमें से कुछ इतने बूढ़े हो गए कि गवाही देने की स्थिति में नहीं रह गए।
हालांकि श्वेता भट्ट ने दावा किया कि उनके पति को 23 साल पुराने पालनपुर मामले में हिरासत में लिया गया था और उनकी अनुपस्थिति में पहले केस (1990 के हिरासत में मौत को मामला) की कार्रवाई में तेजी लाई गई थी। वहीं सरकारी सूत्रों का कहना है कि पूर्व आईपीएस अधिकारी ने अप्रैल में हाईकोर्ट के समक्ष हर दिन ट्रायल के लिए सहमति दी थी।
पालनपुर मामले में आरोप है कि राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए संजीव भट्ट ने उनके पास ड्रग्स रखवा दिए थे।
1990 में हिरासत में हुई मौत के मामले में जब सजा सुनाई गई तब पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट पालनपुर मामले को लेकर जेल में बंद थे।
उनकी पत्नी श्वेता भट्ट ने आरोप लगाया कि 2002 में हुए गोधरा दंगों की जांच के लिए बने नानावटी कमीशन के सामने गवाही देने के बाद संजीव भट्ट को निलंबित कर दिया और बाद में उन्हें इस्तीफा देने की अनुमति देने के बजाय बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने दावा किया कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि उनकी पेंशन और भत्तों को रोका जा सके।
श्वेता का आरोप-उनकी जान को है खतरा
श्वेता भट्टï ने एक के बाद एक कई अरोप लगाया। उन्होंने कहा कि, ‘जहां मैं रहती थी, अवैध निर्माण का आरोप लगाकर मेरे पुश्तैनी घर का एक हिस्सा राज्य सरकार ने गिरा दिया और तो और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हमें मिली सुरक्षा को भी हटा दिया गया।’
उन्होंने कहा, ‘मेरा पीछा किया जाता है और मेरे घर पर नजर रखी जाती है, लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं। मैं न्याय के लिए लड़ाई लड़ती रहूंगी। अब मेरी जीवन का यही एक उद्देश्य है।’
श्वेता ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी जान को खतरा है। उन्होंने कहा कि एक सड़क हादसे में वह बाल-बाल बच गईं। जिस गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ उस पर न तो नंबर प्लेट थी और न ही गाड़ी के कागजात थे।
उनके बेटे शांतनु भट्ट ने कहा कि उनके पिता ईमानदार अधिकारी थे। उन्होंने हमेशा कानून का पालन किया और उनके लिए लड़े जो अपना बचाव कर पाने में सक्षम नहीं थे।