शबाहत हुसैन विजेता
खाकी वर्दी पॉवर का प्रतीक होती है. कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने का जिम्मा इसी वर्दी के पास होता है. यह वर्दी चुस्त-दुरुस्त होती है तो समाज चैन की नींद सोता है और जब यह अराजक होती है तो हाशिमपुरा नरसंहार होता है.
खाकी वर्दी वालों के लिये छुट्टियां नहीं होतीं. उन्हें हड़ताल और प्रदर्शन की छूट नहीं होती. अनुशासन के नाम पर वह बुरी तरह से जकड़े होते हैं, साथ ही उन पर राजनेताओं का इतना दबाव होता है कि सही और गलत का फर्क कई बार दिखाई ही नहीं देता.
आम आदमी पर अपनी ताकत का इस्तेमाल करने वाली पुलिस कई बार यह समझ नहीं पाती है कि भीड़ की ताकत सबसे ज्यादा होती है. भीड़ के शिकंजे में फंस जाने पर पुलिस अधिकारियों को भी मॉब लिंचिंग का शिकार होना पड़ता है. बुलन्दशहर में इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह, प्रतापगढ़ में डिप्टी एसपी जियाउल हक, मथुरा में एसपी सिटी मुकुल दिवेदी और एसओ संतोष यादव मॉब लिंचिंग का ही शिकार हुए थे.
लखनऊ जिला जेल में एक जेलर थे, एस.एन.श्रीवास्तव. जिन दिनों लखनऊ जेल से आतंकी फरार हुए वह यहीं तैनात थे. पुलिस पर दबाव था कि फौरन खुलासा करे कि आतंकी कैसे भागे. पुलिस कोई सुराग नहीं लगा पा रही थी. एक दिन अचानक जेलर को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर पैसे लेकर आतंकियों को भगाने की साजिश का इल्जाम लगा. अपनी ही जेल में जेलर को रहना पड़ा. इल्जाम खुद पर लेने के लिये जेलर को खूब टार्चर किया गया. जलते हुए हीटर पर उनसे पेशाब करवाया गया. उनकी बेटियों के साथ उन्हीं के सामने रेप करने की धमकी दी गयी और बस केस साल्व हो गया. बाद में पुलिस कोर्ट में कुछ भी साबित नहीं कर पायी और जेलर बाइज्जत बरी हो गये. आतंकी कैसे भागे, किसकी मदद से भागे यह सवाल 27 साल बाद भी अनसुलझा ही है.
उत्तर प्रदेश का एनआरएचएम घोटाला अपने समय का सबसे बड़ा घोटाला था. इस घोटाले में भी पुलिस पर बड़ा दबाव था कि घोटाला करने वालों को फौरन पकड़ा जाये. घोटाले की जांच चल ही रही थी कि गोमतीनगर में डाक्टर वी.पी. सिंह की हत्या कर दी गयी. अब घोटाले के जिम्मेदारों को पकड़ने के साथ-साथ वी.पी. सिंह के हत्यारों को पकड़ना भी पुलिस के लिये चुनौती बन गयी. पुलिस ने डिप्टी सीएमओ डॉ. वाई.एस. सचान को गिरफ्तार किया. सचान पर एनआरएचएम घोटाले में शामिल रहने और डॉ. वी.पी. सिंह की हत्या की साजिश में गिरफ्तार किया गया. लखनऊ जेल के ट्वायलेट में डॉ. सचान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी.
डॉ. सचान के परिवार ने खूब हंगामा मचाया. उन्हें एसी ताबूत में लिटा दिया और उनके अंतिम संस्कार से ही इंकार कर दिया. दबाव में पुलिस ने उनका दोबारा पोस्टमार्टम कराया. इस बात को आठ बरस गुजर गये लेकिन आज तक यह पता नहीं चल पाया कि डॉ. सचान घोटाले और हत्या में शामिल थे या नहीं. यह भी पता नहीं चल पाया कि डॉ सचान की मौत हत्या थी या आत्महत्या.
जेल अधीक्षक आर.के. तिवारी की राजभवन के सामने हत्या करने वाले की तो पहचान भी हो गयी थी और हत्यारे को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया था लेकिन इस हत्यारे ने आर.के. तिवारी की जेल में भी आराम का वक्त गुजारा और बाद में विधायक बन गया. आर.के. तिवारी जांबाज जेल अधिकारी थे. वह कभी माफियाओं के सामने कभी नतमस्तक नहीं हुए. वह बहुत गरीब परिवार से आये थे इसलिये गरीब कैदियों के साथ नाइंसाफी नहीं होने देते थे.
कैदियों से मुलाकात में होने वाले भ्रष्टाचार को उन्होंने रोका था. वह प्रदेश के पहले जेल अधिकारी थे जिसने जेल को कम्प्यूटराइज्ड करने की योजना बनाई थी. उन्होंने इस दिशा में काफी काम भी किया था. उनकी हत्या के बाद उनका परिवार तो गर्दिशों में चला गया लेकिन जिसने हत्या की वह भी विधायक बन गया और जिस पर हत्या की साजिश का इल्जाम था वह भी विधायक बन गया.
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एक आईपीएस अधिकारी के आवास पर उनकी साली की रहस्यमय मौत हुई थी. मृतक पीसीएस में सेलेक्ट होने के बाद अपनी बहन के घर सेलीब्रेट करने आयी थी लिहाजा सुसाइड की कहानी गले से नहीं उतरती. उसकी मौत में आईपीएस अधिकारी का रिवाल्वर इस्तेमाल हुआ था. गोली छाती में लगी थी और पीठ से बाहर निकल गयी थी. सुसाइड की पोजीशन में गोली सीधी बाहर नहीं निकल सकती.
यह बात पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने भी मानी थी लेकिन मरने वाली लड़की के बाप ने कहा कि एक बेटी तो खो दी अब दूसरी का सुहाग कैसे छीन लूं. उस कत्ल पर उसका घर भी खामोश रहा और पुलिस विभाग ने भी खामोशी अख्तियार कर ली.
प्रतापगढ़ में डिप्टी एसपी जियाउल हक की हत्या और बुलंदशहर में पुलिस इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या की वारदात भी पुलिस की उस नाकामी की लिस्ट का अहम हिस्सा है जिसमें मुजरिमों के गरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पाये.
सोनभद्र में जमीनी विवाद में गई 11 जानों की वजह क्योंकि एक आईएएस अफसर है इसलिये पुलिस भी काफी दबाव में है. इस दबाव की वजह से वह जिस तरह से काम कर रही है उसमें उसकी आधी ऊर्जा विपक्ष के नेताओं को मौके पर न पहुंचने देने में खर्च होती जा रही है और अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर और दूर होता जा रहा है.
कानून व्यवस्था को दुरुस्त करना पुलिस का काम है तो यह सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वह पुलिस को दबाव से आजाद करे. दबाव में केस साल्व नहीं होते. दबाव होता है तो एटीएस के एसपी को सुसाइड करना पड़ता है. आपराधिक मामलों को दबाव में हल कराया जायेगा तो पुलिस मासूम लोगों को फर्जी मामलों में फंसाएगी और असली मुजरिम खुली हवा में सांस लेते हुए नई वारदात की नई कहानी लिखने के लिये आजाद घूमता रहेगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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