शबाहत हुसैन विजेता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीनों कृषि क़ानून वापस लेने का एलान करते हुए माफी मांगी है. प्रधानमंत्री ने साल भर से अनशन पर बैठे किसानों से घर वापस लौट जाने की अपील की है. किसानों ने प्रधानमंत्री की घोषणा का तो स्वागत किया लेकिन यह साफ़ कर दिया कि जब तक क़ानून बनाने वाली संसद इसे रद्द नहीं कर देती है तब तक घर वापसी नहीं होगी. किसानों ने कहा है कि सरकार संसद के सत्र में कृषि कानूनों को रद्द कराये और साथ ही एमएसपी की गारंटी भी दे.
किसान साल भर से खुले आसमान के नीचे मौसम की मार सह रहा है. प्रधानमंत्री की एक माफी से क्या साल भर में मिले ज़ख्मों का दर्द भी एकदम से मिट जाएगा. किसान कैसे भूल जाए कि बार-बार सरकार बैठक बुलाती थी और बार-बार कृषि मंत्री कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा सारी बातें करते थे.
किसान कैसे भूल जाए कि दिल्ली बार्डर पर सरकार ने सड़कों पर बड़ी-बड़ी कीलें लगवाई थीं. किसानों को खालिस्तानी बताया था. अनशनकारियों को खदेड़ने के लिए अनशन स्थल पर वज्र जैसे वाहन भेजे थे. किसानों की एक ही मांग थी कि क़ानून रद्द कर दो और सरकार थी कि कानूनों की तारीफें किये जाती थी.
एक तरफ सरकार किसानों की बात नहीं मान रही थी तो दूसरी तरफ व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी पर किसानों को गद्दार और आतंकी बताया जा रहा था. बड़े-बड़े नेता टीवी पर डिबेट कर अनशन कर रहे किसानों को नकली किसान बताने पर तुले थे. आज प्रधानमंत्री ने माफी मांगी है तो यह सवाल तो उठेगा ही ना कि बगैर गलती माफी कौन मांगता है. गलती की है तो क्या सिर्फ माफी मांगने से माफ़ कर दिया जाए.
सरकार की जवाबदेही क्या साल भर के आन्दोलन में मरने वाले सैकड़ों किसानों के परिवारों के लिए कुछ भी नहीं है. जो किसान सरकार के अड़ियल रवैये की वजह से मरे उनके लिए मुआवज़े का एलान भी आज की माफी के साथ ही होना चाहिए था. जिन किसानों की आन्दोलन की वजह से जान गई है उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का एलान भी आज होना चाहिए था.
यह बातें आज इसलिए करनी पड़ रही हैं क्योंकि सरकार कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की वजह से बैकफुट पर आई है. सरकार को पता है कि किसान आन्दोलन का असर चुनाव पर पड़ने वाला है. सबको पता है कि किसानों को चुनावों के मद्देनज़र वक्ती फायदा दिया गया है.
प्रधानमन्त्री को अचानक से माफी की बात आखिर चुनाव से पहले ही क्यों सूझ गई. यही बात पहले समझ ली होती तो केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री का बेटा हत्यारा बनने से बच गया होता. जिस लड़के के लिए बीजेपी ने विधानसभा टिकट तय किया था वह हत्या के जुर्म में जेल जा चुका है. सरकार की माफी से वह इस जुर्म से बच भी नहीं सकता क्योंकि क़ानून के जाल में वह बुरी तरह से फंस चुका है. उसे गाड़ी से उतरकर भागते हुए देखा जा चुका है. उसके असलहे की बैलेस्टिक जांच हो चुकी है. उसके साथियों ने ही उसके खिलाफ गवाही दे दी है.
लालकिले के पास निकले ट्रैक्टर रैली में जो कुछ हुआ था उसका नतीजा क्या होगा यह भी प्रधानमंत्री ने नहीं बताया. लालकिले के सामने ट्रैक्टर पलट जाने से एक किसान मर गया था. उसके परिवार को सरकार क्या कोई मुआवजा देगी. सरकार उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ क्या एक्शन लेगी जो खुलेआम किसानों पर हमले करवा रही थी.
प्रधानमन्त्री ने आज कहा है कि वह किसानों को समझा नहीं पाए मतलब कृषि क़ानून बहुत अच्छा था. मतलब वह आने वाले दिनों में फिर लागू किया जा सकता है. माफी मांगने से पहले प्रधानमंत्री को समझना चाहिए था कि लोकतंत्र की ताकत सरकार के पास तभी आती है जब जनता खुश होती है. जनता महंगाई से कराहती रहे. जनता हिन्दू-मुसलमान के दंश से डसी जाती रहे. जनता महंगे पेट्रोल-डीज़ल और सरसों का तेल खरीदने को मजबूर रहे, जनता रोड टैक्स भी दे और टोल पर भी पैसा चुकाए. दोनों हाथ से लगातार लुटती जनता से नौकरी भी छीन ली जाए. कुछ पर्सेन्ट लोगों को अनाज बांटकर उन्हें भिखारी की कैटेगरी में खड़ा कर दिया जाए. यह वोट की सौदागरी होती है प्रधानमंत्री जी. आपका क्या भरोसा लोग मुखर हो जायेंगे तो आप आगे बढ़कर माफी मांग लेंगे.
किसानों ने सही फैसला किया है. संसद ने क़ानून बनाया तो संसद ही रद्द करे. किसानों ने जनता को रास्ता दिखा दिया है. किसानों ने जनता को अहसास करवा दिया है कि गांधी के आन्दोलन में आज भी बड़ा दम है. मज़बूत से मज़बूत सरकार को झुकना ही पड़ता है. आपकी माफी आपकी मजबूरी है. आपको भी मजबूरियों से उबरना सीखना चाहिए क्योंकि आपके हाथ में पांच साल लोकतंत्र की कमान रहती है मगर एक दिन वह कमान जनता के हाथ में भी चली जाती है, आप उसी एक दिन से डर गए हैं. जनता की भलाई जनता को भरोसे में लेकर करिये तो माफी मांगने से बच जायेंगे. माफी मांग-मांगकर आगे बढ़ने वाले को महात्मा बनने में सत्तर साल लग जाते हैं.
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