शबाहत हुसैन विजेता
प्रश्न :- इस्लामी आतंकवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :- इस्लामी आतंकवाद इस्लाम का ही एक रूप है. जो विगत 20-30 वर्षों में अत्यधिक शक्तिशाली बन गया है. आतंकवादियों में किसी एक गुट विशेष के प्रति समर्पण का भाव नहीं होकर एक समुदाय विशेष के प्रति समर्पण का भाव होता है. समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता इस्लामिक आतंकवाद की मुख्य प्रकृति है. पंथ या अल्लाह के नाम पर आत्मबलिदान और असीमित बर्बरता, ब्लैकमेल, जबरन धन वसूली और निर्मम नृशंस हत्याएं करना ऐसे आतंकवाद की विशेषता बन गई है. जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पूर्णतया धार्मिक व पृथकतावादी श्रेणी में आता है.
यह सवाल जवाब राजनीतिक बयानबाजी नहीं है. यह राजस्थान में इंटरमीडिएट के विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है. इतनी बेशर्मी के साथ नफरत फैलाने का कोई भी दूसरा उदाहरण देश में दूसरा नहीं मिलेगा.
गंगा-जमुनी संस्कृति वाले हिन्दुस्तान को राजनीति के स्टंटबाज़ पिछले कुछ दशकों से अपने नफरत के हथौड़े से लगातार चोट पहुंचाने का काम करते आ रहे हैं. अब इस मुहिम में शिक्षा को भी शामिल कर लिया गया है. देश की नयी पीढ़ी के दिल-ओ-दिमाग में बड़ी गहराई तक नफरत को पेवस्त करने की जो साजिशें रची जा रही हैं यह उसका बिलकुल ताज़ा उदाहरण है.
देश का माहौल खराब करने वालों को सिर्फ कोई राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि सरकार का भी प्रश्रय मिला हुआ है, यह कहने में भी कुछ गलत नहीं होगा. सोशल मीडिया पर जिस तरह से एक सोची-समझी योजना के तहत एक मज़हब ख़ास को निशाने पर लिया जा रहा है उसे रोकने के लिए न शासन स्तर से कोई कोशिश की गई और न प्रशासन स्तर से ही कोई कोशिश हुई.
कई नामचीन पत्रकार, लेखक और न्यूज़ चैनल भी इस मुहिम का हिस्सा हैं. नफरत फैलाने में लगी इस बिरादरी को बाकायदा इसका पारिश्रमिक भी मिलता रहता है. कभी पुरस्कार के रूप में और कभी अच्छी सैलरी की नौकरी के रूप में.
एक लेखक छात्रनेता कन्हैया की तर्ज़ पर भाषण देते नज़र आते हैं. फर्क यह है कि उनके भाषणों में हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान के अलावा कुछ नहीं होता है. इस लेखक की बड़ी फालोइंग है. इनके वीडियो कुछ ही देर में हज़ारों में शेयर हो जाते हैं. कम लोग जानते हैं कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत की दीवार उठा रहा यह लेखक कई साल तक पाकिस्तान के लिए काम करता रहा है और वहां से वेतन लेता रहा है.
नफरत फैलाने में माहिर राजनेता जिस बेशर्मी से समाज को बांटने का काम कर रहे हैं उससे देश की दुनिया के सामने क्या छवि बन रही है उसकी उन्हें कोई चिंता नहीं है क्योंकि वह सिर्फ अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं.
नफरत फैला रहे इन नेताओं, पत्रकारों और लेखकों के निशाने पर ज़ाहिरी तौर पर तो पाकिस्तान रहता है लेकिन हकीकत यह है कि यह बिरादरी हिन्दुस्तान को एक बड़े पाकिस्तान में बदलने की कोशिश में लगे हैं. यह ऐसा हिन्दुस्तान बनाना चाहते हैं जिसमें हर तरफ नफरत ही नफरत हो. देश में नागरिक नहीं जातियां रहती हों. जातियों के नाम पर दंगे-फसाद और हालात बिगाड़ने वाली साजिशें रची जाती हों.
नफरत फैलाने वालों ने राष्ट्रपिता के हत्यारे को महात्मा की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. अब उस हत्यारे के लाखों फालोवर हैं. यह फालोवर इतने ताकतवर हो गए हैं कि गांधी के पुतले पर गोलियां चला रहे हैं. यह सोशल मीडिया पर बड़ी बेशर्मी से गांधी के कत्ल को गांधी का वध कहते हैं और सरकार तमाशा देख रही है.
यह इस देश में कभी नहीं हुआ था कि किसी वाइस चांसलर ने अज़ान के खिलाफ एफआईआर कराई हो. यह भी कभी नहीं हुआ था कि किसी मंत्री ने अज़ान से दिक्कत होने पर 112 नम्बर डायल करने को कहा हो. क्या किसी यूनीवर्सिटी का वाइस चांसलर किसी ख़ास मज़हब के खिलाफ मुकदमा लिखा सकता है? क्या कोई मंत्री किसी ख़ास मज़हब का मंत्री हो सकता है लेकिन यह सब हो रहा है. यह हो रहा है क्योंकि कोई है जो समाज का ध्यान उन ख़ास मुद्दों से भटकाना चाहता है जो सामने आ गए तो कुछ राय बहादुरों और खान बहादुरों को दिक्कत हो जायेगी.
धर्म की राजनीति के नाम पर धर्म का व्यापार करने वालों ने अपनी सरकार में कुछ ऐसे मुखौटे भी शामिल किये हैं जो समाज के सामने उस मज़हब के प्रतिनिधि हैं जिन्हें अल्पसंख्यक कहा जाता है लेकिन यह मुखौटे सिर्फ अपनी तिजोरी भर रहे हैं, अपनी इमारतें ऊंची कर रहे हैं. इनकी ज़बानें सिली हुई हैं. कहीं फंस जाते हैं और उन्हें बोलना ही पड़ता है तो वह कभी खुलकर इस बेशर्मी के खिलाफ नहीं बोल पाते क्योंकि उन्हें खामोश मुखौटा बने रहने की राशि मिलती है.
गौतम और गांधी का देश खून में नहा रहा है. कुछ बेशर्म और लालची लोग इसे बड़ा पाकिस्तान बनाने में लगे हैं. हालात उसी तरफ बढ़ भी चले हैं, मगर यही सही समय है जब पाकिस्तान के हालात की समीक्षा कर ली जाए. पाकिस्तान में सरकार बदलने के बाद सरकार के मुखिया को देश के बाहर शरण लेनी पड़ती है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ऐसी चरमराई हुई है कि उसे चीन के सामने हाथ फैलाए हुए खड़ा रहना पड़ता है.
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भारत में चुनावी हार-जीत के बावजूद सभी को साथ रहने का मौका मिलता है. जिस मंजिल की तरफ कदम बढ़ाए जा रहे हैं कहीं गलती से वह मंजिल मिल गई तो क्या होगा, उस अंजाम को भी आज ही सोचना होगा. अपने घर में सम्मान से रहने को न मिले और दूसरे देशों में शरणार्थी की हैसियत बनानी पड़े तो तब बहुत अफ़सोस का वक्त होगा लेकिन फिर उस हालात से उबरने में कई सदियाँ लग जायेंगी. यही वक्त है कि गलत राह पर बढ़े कदम वापस खींच लिए जाएं.