Wednesday - 30 October 2024 - 6:41 AM

युवा भारत की राजनीति कब होगी ‘युवा’

अब्दुल हई

आजकल जिस वर्ग या क्लास की खूब चर्चा हो रही है वो है युवा। कोई भी चर्चा तभी पूरी होती है जब उसमें युवा लफ्ज शामिल होता है। अपनी राजनीति चमकाने के लिए बुजुर्ग युवाओं और युवा भारत की बात तो करते हैं, लेकिन कभी भी किसी युवा के लिए अपना पद या राजनीतिक मोह नहीं छोड़ते हैं।

नौकरी, नेता, एजुकेशन और यहां तक की देश सबका केंद्र युवा ही है। भारत एक युवा देश है, आंदोलन करते हुए, भटके हुए, सहमे हुए, नौकरी की मांग करते हुए, कंपीटीशन की तैयारी में लगे युवा, जहां तक आपकी नजर जाएगी वहां युवा ही युवा हैं।

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टीवी से लेकर मंच तक युवा-युवा-युवा के शोर के बीच जब बजट के सत्र से पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण को सुनते हुए संसद की कार्यवाही के दौरान वहां बैठे लोगों पर नजर पड़ी तो देखा कि देश की संसद में युवा सफेद चावलों के बीच कंकड़ के समान नजर आ रहे थे। मतलब युवा देश की संसद से युवा ही गायब हैं?

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कहते हैं दौलत और सत्ता का संयोग जिस इंसान के पास होता है वह दुनिया में सबसे ज्यादा ताकतवर होता है। यही संयोग दिल्ली विधानसभा चुनाव में देखने को मिला।

सत्ता के साथ अपनी ताकत को और मजबूत बनाने के लिए तीनों मुख्य पार्टियों और उनके सहयोगियों के 164 करोड़पति उम्मीदवार इस बाद चुनाव मैदान में उतरे। साल 2015 के चुनाव में करोड़पतियों की संख्या 143 थी तो वहीं औसत आयु के मामले में 2015 के चुनावों की तुलना में इस साल  भाजपा और आप का बुढ़ापा बढ़ा है, जबकि कांग्रेस जवान हुई है।

2015 में आप के उम्मीदवारों की औसत आयु 43.1 साल थी, जो इस बार बढ़कर 47.3 वर्ष हो गई है। इसी तरह भाजपा की औसत आयु भी 51.7 से बढ़कर 52.8 साल हो गई है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 53.3 वर्ष से घटकर 51.2 साल हो गया है।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे युवा और सबसे उम्रदराज उम्मीदवार कांग्रेस ने उतारा है। चुनाव मैदान में सबसे युवा उम्मीदवार राजेन्द्र नगर से रॉकी तुसीद (25 साल) और सबसे उम्रदराज शाहदरा सीट से नरेन्द्रनाथ (75 साल) है। कांग्रेस और भाजपा ने 51-60 उम्र के सबसे ज्यादा 25-25 उम्मीदवार उतारे हैं। इसी तरह आप के 21 उम्मीदवार हैं।

अमेरिका-जापान से भी युवा है भारत

राजनीति में युवाओं की भागीदारी का आह्वान सभी पार्टियां जोर-शोर के साथ करती हैं। सभी पार्टियां चाहती हैं कि उनके पास युवा ब्रिगेड हो जो धरने से लेकर सभाओं तक की व्यवस्था करे और ये युवा अपने सपनों की डोर से हमारी पतंग उड़ाएं। अब सोशल मीडिया की गुत्थम-गुत्था के लिए भी युवा की आवश्यकता है, लेकिन जब इस युवा को पार्टी में पद और टिकट देने की बात आती है तो नेताओं को सिर्फ अपने परिवार में ही युवा नजर आते हैं। भारत दुनिया का सबसे युवा मुल्क है।

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2011 की जनगणना के अनुसार 25 वर्ष तक की आयु वाले लोग कुल जनसंख्या का 50 फीसद है, वहीं 35 वर्ष तक वाले कुल जनसंख्या का 65 फीसद है। इन आंकड़ों से भी यही बात निकलती है कि भारत एक युवा देश है। दुनिया के दूसरे मुल्कों से कम्पेयर किया जाए तो भी भारत की औसत आयु अन्य देशों के मुकाबले कम ही है।

जहां 2020 में अमेरिका की औसत आयु 45 वर्ष, चीन की 37 वर्ष, पश्चिमी यूरोप और जापान की 48 वर्ष है, वहीं भारत में औसत आयु 29 वर्ष है। इसका सीधा सा मतलब है कि दुनिया की विकसित महाशक्तियां जहां ढलान और बुजुर्गियत की ओर हैं तो वहीं भारत युवा हो रहा है।

खिलाड़ियों के रिटायरमेंट की उम्र में, युवा होते नेता

ऐसे में एक बात पल्ले नहीं पड़ती कि युवा है कौन क्योंकि राजनीति में 40 और 48 साल के नेताओं को टीवी, अखबार और पक्ष-विपक्षी पार्टियां युवा नेता कहते हैं, जबकि खेल में 40 की उम्र संन्यास की उम्र हो जाती है। भारत में लगभग युवा 25 वर्ष की उम्र तक ही होता है क्योंकि 30 साल की उम्र में तो लड़के-लड़कियों को ढंग के रिश्ते भी नहीं मिलते।

ऐसे में फिर युवा कौन है, जिसका शोर चारों ओर है? भारतीय वैदिक परंपरा में और स्कूल में पढ़ा था कि इंसान के जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया है।

इसके आधार पर 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य, 25-50 तक ग्रहस्थ, 50-75 तक वानप्रस्थ और 75-100 वर्ष तक संन्यास आश्रम माना गया है। भारत सरकार ने 2003 में ‘राष्ट्रीय युवा नीति’ का गठन किया उसमें 13-35 वर्ष के आयु समूह को युवा की श्रेणी में रखा गया।

‘राष्ट्रीय युवा नीति’ के अंतर्गत ही राष्ट्रीय स्तर पर युवाओं को दो समूहों के अंतर्गत विभाजित किया गया जिनमें 13-19 वर्ष के लिए किशोर (जिसे टीन एजर्स कहा जाता है) और 20-35 वर्ष के आयु समूह के लिए मध्यम युवा वर्ग कहा गया। वहीं दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में भी 13-19 वर्ष के व्यक्ति को टीन एजर्स माना जाता है और 20-40 वर्ष के व्यक्ति को युवा माना जाता है। उसके बाद 40-60 तक अधेड़ और 60 के बाद बुजुर्ग माना जाता है।

 

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सरकारी और सैद्धांतिक बातों का निचोड़ निकाला जाए तो 40 वर्ष तक के आयु समूह को युवा कहा जा सकता है। भारत का यह आयु समूह जिसे युवा कहा जा रहा है वह कुल जनसंख्या का तकरीबन 67 फीसद है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प है कि इस 67 फीसद युवा की राजनीति में कितनी भागीदारी रही है? राजनीति से मेरा आशय यहां संसदीय राजनीति में चुनकर आने वाले सांसदों से है।

भारत युवा लेकिन संसद बुजुर्ग

मौजूदा यानी 16वीं लोकसभा की बात करें तो इस लोकसभा में 543 में से केवल 70 सांसद ही 40 वर्ष से कम आयु के थे। मतलब केवल 12.89 फीसद और बाकी 87 फीसद सांसद 40 वर्ष से अधिक के थे जबकि भारत की 67 फीसद आबादी 40 से कम की है यानी 67 फीसद युवा जनसंख्या का संसद में 12.89 फीसद लोग प्रतिनिधित्व कर रहे थे वहीं 33 फीसद जनसंख्या का संसद में 87 फीसद प्रतिनिधित्व है।

इन आंकड़ों में एक और मजेदार बात है। अगर आप 16वीं लोकसभा के 12.89 फीसद युवा सांसदों पर ठीक से नजर दौड़ाएं तो पाएंगे की इनमें से 5.09 फीसद युवा सांसद वह हैं जो विरासत के बलबूते संसद में विराजमान हैं। मतलब की वह जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है।

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अब आप 16वीं लोकसभा में सामान्य युवा का संसद में प्रतिनिधित्व देखेंगे तो वह केवल 7.8 फीसद है। मतलब साफ है कि देश तो युवा हो रहा है, लेकिन संसद बुजुर्ग!

युवाओं को नहीं मिल रहा मौका

आज देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय हो गया है। क्या बदला अब तक संविधान में? वही परिवारवाद, वही उम्र दराज राजनीतिकों का सत्ता मोह, 8 से 10 बार विधायक या सांसद की सीट पर मृत्युपर्यंत दावा पेश करना और युवाओं व अन्य योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी, आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों की तानाशाही, उन्हें बार-बार टिकट देना, बागी के तेवर, हित पूरे न होने पर दलकृबदल और उनके पीछे गुलाम मानसिकता वाले लोगों की अंधी भीड़।

फिर पार्टी चाहे सत्ताधारी की हो या किसी अन्य पार्टी, सब इसी ढर्रे पर चल रही है। लोग सोच रहे हैं, हम इनके साथ हैं तो संविधान में परिवर्तन आ रहा है।

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कई राजनेता अपने क्षेत्र में दबदबे के कारण 10-10 बार से सांसद या विधायक बने बैठे हैं। वे युवाओं को मौका देना ही नहीं चाहते हैं। अब बगावत नहीं होगी तो क्या होगा। किसी पार्टी का एक व्यक्ति ताउम्र पार्टी की सेवा में व्यतीत कर देता है लेकिन उसे चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं मिलता, ऐसे में या तो वह किसी अन्य पार्टी में चला जाता है या निर्दलीय चुनाव लड़ता है।

आज का युवा दबा हुआ है, उम्रदराज राजनीतिक लोगों और परिवारवाद के बोझ से। उसे चाह कर भी नहीं आगे नहीं लाया जा सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी महत्त्वाकांक्षा त्यागना नहीं चाहता है। इन नेताओं वो कहावत बिल्कुल फिट बैठती है ‘प्राण जाए पर सत्ता न जाए….’

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