न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। रमजान का मुबारक महीना है और इन दिनों राजधानी लखनऊ की जो गलियां और सड़कें सुबह- शाम खुश्बू और जायके से महकती रहती थीं, वहां अब लॉकडाउन के चलते सन्नाटा पसरा है। न सहरी की रौनक दिखाई दे रही है और न ही इफ्तार की रंगत बची है।
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‘दस्तरख्वान’ के प्रबंधक जावेद सिद्दीकी की माने तो कोरोना संक्रमण ने नवाबों के शहर के जायकों और खुशबू को बेड़ियों में जकड़ लिया है। हालांकि पहले ज्यादातर रोजे़दार सहरी घरों में ही जलपान, शरबत-दूध आदि से कर लेते थे लेकिन पुराने लखनऊ के अकबरी गेट पर जायके के शौकीनों का मजमा सुबह ही लग जाता था।
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जावेद की माने तो पूरे इलाके में मसालों की खुशबू तैरती थी और रहीम के कुल्चे- नहारी के लिए गली में भीड़ उमड़ पड़ती थी। लेकिन अब तो सन्नाटा पसरा हुआ है। यकीन ही नहीं होता कि यह रमजान का महीना है।
रहीम होटल के बिलाल अहमद के अनुसार उसके दादा हाजी अब्दुल रहीम ने ही कुल्चे का चलन शुरू किया था और सौ साल से ज्यादा पुरानी उनकी दुकान में इफ्तारी से सहरी तक खूब भीड़ रहती थी।
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‘ओपन एयर’ रेस्त्रां के उत्तम प्रकाश की माने तो पुराने लखनऊ में रमजान के दिनों में शाम का नजारा मुख्तलिफ ही होता था। चौक, अकबरीगेट, नक्खास, मौलवीगंज, अमीनाबाद, नजीराबाद, हुसैनाबाद में खाने के शौकीनों की फौज इफ्तारी के बाद से ही नजर आने लगती थी।
इन जगहों पर जितने भी होटल हैं, उनमें खाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था। इस बार तो लॉकडाउन ने सारा स्वाद फीका कर दिया है।
बिरयानी कारीगर आलम का कहना है कि लॉकडाउन ने सारी रौनक छीन ली है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जतायी कि लॉकडाउन खत्म होने पर पुराने लखनऊ की गलियां और सड़कें जायके के शौकीनों से फिर आबाद होंगी।