न्यूज डेस्क
बाहुबली विधायक मुख़्तार अंसारी और उनके सांसद बने भाई अफजाल अंसारी सहित सभी आरोपियों को 29 नवंबर 2005 को गाजीपुर में हुए चर्चित कृष्णानंद राय मर्डर केस में दिल्ली की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया। इस मामले में करीब छह साल से चल रही सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर गवाह अपने बयानों से पलटते नहीं तो नतीजा कुछ और ही हो सकता था।
इस मामले को स्पेशल जज अरुण भारद्वाज ने भयानक करार दिया। उन्होंने फैसले में लिखा कि इस मामले की जांच यूपी पुलिस से लेकर सीबीआई को दी गयी थी। हालांकि, विधायक कृष्णानंद की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में मुक़दमे को गाजीपुर से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया।
लेकिन इस मामले में गवाहों के मुकर जाना अभियोजन की नाकामी का उदाहरण बन गया। वहीं,अगर कहीं गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 का लाभ मिलता तो नतीजा कुछ और हो सकता था।
इन वजहों से हुआ बरी
इस मामले के अहम गवाह गाजीपुर की जमानिया तहसील के संजीव राय और मुन्ना राय ने गवाही नहीं दी। इसके अलावा इस हत्याकांड के दौरान जिन्दा बचे शशिकांत राय और प्रत्यक्षदर्शी मनोज गौड़ की संदिग्ध हालात में मौत हो जाना भी एक बड़ा कारण है।
वहीं, मुख्तार अंसारी की फैजाबाद जेल में बंद बाहुबली अभय सिंह से फ़ोन पर हत्याकांड को लेकर बातचीत हुई थी। इसके सबूत मिले थे। इसकी मजबूती के लिए मुख़्तार की आवाज़ का टेस्ट होना था लेकिन कोर्ट ने अर्जी ख़ारिज कर दी इसका भी आरोपितों को लाभ मिल गया।
पूर्व डीएसपी शैलेंद्र कुमार सिंह ने सीएम से की अपील
पूर्व डीएसपी शैलेंद्र कुमार सिंह ने सीएम योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वह परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करवाएं। पूर्व डीएसपी का कहना है कि उन्होंने वर्ष 2004 में सेना के भगोड़े से एलएमजी पकड़ी थी। यह एलएमजी मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय की हत्या के लिए मंगाई थी।
इस संबंध में एक रेकॉर्डिंग भी है, जिसमें मुख्तार ने राय की हत्या के लिए एलएमजी मंगाने की बात कही थी। यह रेकॉर्डिंग शासन की अनुमति से की गई थी इसलिए यह साक्ष्य के रूप में कोर्ट में मान्य है।
2005 में हुई थी कृष्णानंद राय की हत्या
कृष्णानंद राय गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के तहत गोंडूर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने वर्ष 2002 में हुए चुनाव में मोहम्मदाबाद सीट पर मुख्तार के भाई अफजाल को हराकर अंसारी बंधुओं के वर्चस्व को चुनौती दी थी। यहीं से दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत हुई। 13 जनवरी, 2004 को मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय के बीच पहली मुठभेड़ लखनऊ के कैंट इलाके में हुई।
इसके बाद राय को अंसारी बंधुओं से अपनी जान का डर सताने लगा। उन्होंने यूपी सरकार से अपनी सुरक्षा बढ़ाने की मांग की, लेकिन तब इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया। नतीजा 29 नवंबर, 2005 को गाजीपुर में राय की हत्या हो गई। इस घटना में छह और लोग मारे गए थे। अभियोजन ने अपना केस साबित करने के लिए 53 गवाह पेश किए थे।