जुबिली न्यूज डेस्क
मेडिकल हेल्थ के महानिदेशक डॉ. वेदव्रत सिंह ने पत्र जारी कर कहा है कि सरकारी अस्पतालों में बाहर की दवा न लिखी जाय। मरीज़ों को बाहर से दवा लिखने वाले डॉक्टर पर करवाई की जाएगी।
आदेश तो बहुत ही प्रशंसनीय है और पहले भी इस तरह के आदेश जारी होते रहे हैं लेकिन ये सभी केवल दिखाने आदेश हैं। सवाल ये है कि जब दवा ही नहीं मिलेगी तो मरीज़ को क्या दिया जाय और डॉक्टर क्या करे।
देखा जाय तो सबसे अधिक संख्या में मेडिकल स्टोर सरकारी अस्पताल के पास ही खुले हैं। उन्हें कुछ साल पहले तक स्वास्थ्य विभाग ही लाइसेन्स जारी करता रहा है।
सवाल बड़ा साफ़ है कि ये मेडिकल स्टोर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों के भरोसे ही तो चलते हैं।अगर अस्पताल पूरी दवा दे और डॉक्टर बाहर की दवा न लिखे तो क्या ये मेडिकल स्टोर अब तक बंद नहीं हो गए होते।
यही हाल ब्लड जाँच का भी है मरीज़ बाहर के जाँच केंद्र पर जाने मजबूर किया जाता है।
मेडिकल हेल्थ के महानिदेशक डॉ. वेदव्रत सिंह भी उन्हीं अस्पताल की इकाइयों से आए हैं और उन्हें सब पता है, लेकिन सरकार की नज़र में नम्बर बढ़ाना तो आदेश कर रहे हैं लगे तो सख़्त हैं।
अस्पताल में दवा की आपूर्ति हो नहीं रही है तो क्या मरीज़ को दवा कहाँ से मिलेगी –
उत्तर प्रदेश में जबसे मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन बना है तबसे प्रदेश के अस्पतालों में दवा की क़िल्लत बनी हुई है,इसके अलावा कभी अधोमानक दवाएँ तो कभी ऐसी दवाएँ आपूर्तित होती हैं जिनकी अस्पताल में कोई ज़रूरत ही नहीं है। बिना माँग पत्र के ज़बरदस्ती भेजी दवाएँ रखे रखे एक्सपायर हो जा रही हैं।
प्रदेश में दो मानसिक चिकत्सालय वाराणसी और बरेली में हैं लेकिन सूत्र बताते हैं कि मानसिक इलाज़ की दवाए न के बराबर दी जा रही हैं डिमांड के बाद भी उन दवाओं को भेज दिया जा रहा है जिनकी ज़रूरत ही नहीं है।तो महानिदेशक महोदय ने इस पर कोई करवाई किया होता तो इन विशिष्ट अस्पतालों को मानसिक रोग की पूरी दवाएँ मिल जातीं।
लगता है इन सबकी जानकारी भी महानिदेशक को नहीं हैं या है भी तो कुछ कर नहीं सकते।
जबसे मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन (UPMSCL) ने अपने वेयर हाउस बनाए हैं और स्वास्थ्य विभाग से इतर अपने कर्मचारियों को नियुक्त किया है तबसे इन कर्मचारियों की मनमानी देखी जा रही है माँग पत्र के बाद भी दवा नहीं देंगे,दवा एक्सपायर हो जा रही लेकिन वापस नहीं लेंगे जबकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी/कर्मचारी विवश हैं क्योंकि कोई सुनने वाला नहीं है।
UPMSCL द्वारा दवा की आपूर्ति कितनी की जा रही है इसकी बानगी देखिए –
अस्पतालों में 238 प्रकार की आवश्यक औषधियों (ई०डी०एल०) की लिस्ट है जिसे अनिवार्य रूप से होना चाहिए लेकिन ज़िला चिकित्सालय अम्बेडकर नगर ने जब 238 की लिस्ट की दवा का माँग पत्र दिया तो मिली केवल 02 दवाएँ।
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Inj ARV की क़िल्लत कई अस्पतालों में है।सूत्रों के अनुसार महाराज गंज,अम्बेडकर नगर जैसे कई ज़िला अस्पताल इसकी कमी से जूझ रहे हैं।
नियम है कि inj ARV के साथ इंसुलीन सिरिंज देना ज़रूरी है।पहले की सप्लाई में आता भी था लेकिन अब नहीं दी जा रही है।अस्पताल के पास सिरिंज ख़रीदने का फंड है नहीं तो स्वभाविक है कि सिरिंज बाहर से मरीज़ ख़रीदेगा,और यही होता भी है।अस्पताल के लिखने के बाद भी इस पर कोई सुनवाई नहीं है।
ज़िला अस्पताल अम्बेडकर नगर में एक साल से इंसुलीन सिरिंज नहीं दी जा रही है यही हाल सभी अस्पतालों का है लेकिन महानिदेशक कह रहे हैं कि बाहर से ख़रीद नहीं होगी।
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एक सवाल और अगर पेपर पर इंसुलीन सिरिंज नहीं है तो ये कैसे मान लिया जाय कि Inj ARV की डोज़ मरीज़ को लगी। साफ़ ही कि सरकारी अभिलेख भी बताएगा कि इंसुलीन सिरिंज बाहर से डॉक्टर ने मरीज़ से ख़रीदवाया है।
इस लिए अधिकारी वास्तविक स्थिति को सुधारें तभी उनके आदेश का कोई मायने होगा।
नव नियुक्त उप मुख्यमंत्री इस तथ्य को संज्ञान में लें और UPMCL द्वारा दवा की आपूर्ति शतप्रतिशत सुनिशित कराएँ तभी बाहर से दवा की ख़रीद रुक सकती है और तभी सबको निशुल्क चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी जो सरकार की मंशा भी है।