जुबिली स्पेशल डेस्क
मध्य पूर्व में इज़राइल और ईरान का तनाव दशकों से चला आ रहा है। हालांकि दोनों देशों के बीच खुली जंग नहीं हुई है, लेकिन उनके बीच गहरी दुश्मनी ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर असर डाला है। यह दुश्मनी सिर्फ राजनैतिक ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सामरिक (strategic) स्तर पर भी है।
ताजा हालात अब एक बड़ी जंग की तरफ इशारा कर रहे हैं। इजरायल लगातार ईरान को मदद पहुंचाने वाले लोगों को मौत के घाट उतार रहा है। उसने लेबनान और गाजा में लगातार बमबारी कर ईरान को बड़ा जख्म देने का काम किया है। इतना ही नहीं ईरान ने जब दो अक्टूबर को इजरायल पर मिसाइल अटैक किया तो इजरायल डर गया था लेकिन उसने कुछ दिन बाद ही ईरान को टारगेट करते हुए बड़ा हमला कर दिया था।
इसमें ईरान के दो से तीन सैनिकों के मारे जाने की खबर थी। इसके बाद कहा जा रहा है कि ईरान इस बार इजरायल को एक बड़ी चोट देंगा ताकि आगे ईरान पर अटैक करने के बारे में सोचे न लेकिन इस बीच सुप्रीम लीडर खामनेई ने इजरायल और अमेरिका का नाम लेकर मुंहतोड़ जवाब देने की धमकी दी।
उन्होंने कहा, ‘दुश्मन चाहे इजरायल हो या फिर अमेरिका, जो भी ईरान और उसके सहयोगियों को चोट पहुंचा रहा है, उसे करारा जवाब मिलेगा। हालांकि, उन्होंने जवाबी कार्रवाई के समय या दायरे के बारे में विस्तार से नहीं बताया। ईरान के इस बयान के बाद से इजरायल पर हमले का खतरा मंडराने लगा है।
आनन-फानन अमेरिका अपने दोस्त इजरायल की मदद के लिए पहुंच गया है और उसने शुक्रवार को कहा कि ईरान और उसके उग्रवादी सहयोगियों को रोकने के लिए अधिक विध्वंसक, लड़ाकू स्क्वाड्रन, टैंकर और लंबी दूरी के बी-52 बमवर्षक क्षेत्र में पहुंचेंगे। अमेरिका ने अपने परमाणु बॉम्बर बी-52 की तैनाती कर खलबली मचा दी है।
बता दे कि इज़राइल और ईरान के बीच संघर्ष का एक कारण क्षेत्रीय वर्चस्व भी है। ईरान सीरिया, लेबनान और इराक जैसे देशों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपने सहयोगी समूहों को समर्थन देता है। इनमें लेबनान का हिज़्बुल्लाह और फिलिस्तीनी हमास जैसे गुट शामिल हैं, जो इज़राइल के प्रति शत्रुता रखते हैं।