Thursday - 14 November 2024 - 12:55 PM

अमित शाह के बढ़ते दबदबे के बीच क्या करेंगे राजनाथ! 

उत्कर्ष सिन्हा 

बात सन 2014 की है जब भाजपा नरेंद्र मोदी को अपने संसदीय दल का नेता चुन रही थी। उस वक़्त से कुछ पहले  तक प्रधानमंत्री पद के एक दावेदार राजनाथ सिंह तब नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़े हो गए थे।  खिलाफ थी तो सिर्फ सुषमा स्वराज।  उन्होंने तब कहा था – ” मेरा विरोध लिख कर दर्ज कर लो , एक दिन सब पछताओगे। ”

तब सुषमा स्वराज की इस बात को भले ही राजनाथ सिंह ने न माना हो , मगर आज 5 साल के बाद ये बात उनके कानो में बार बार गूंज रही होगी। इस बात  के गवाह बीते 10 दिनों की गतिविधियां है।

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2013 में जिस वक्त नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था , उस वक़्त नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी ताकत उनके पक्ष में खड़े वे कारपोरेट घराने थे जिन्हे मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री गुजरात में खूब सुविधाएं दी थी।  चुनावी खर्चे की जरुरत ने पार्टी को ये फैसला लेने की परिस्थिति पैदा कर दी थी। राजनाथ ने तब नरेंद्र मोदी के साथ तात्कालिक समझौता कर लिया था , मगर उस वक्त शायद वे  मोदी की अमित शाह नामकी  उस परछाई को पहचानना भूलने की गलती कर गए , जो परछाई बीते 5 सालो में तो बड़ी हुयी ही मगर बीते 10 दिनों में इतनी बड़ी हो गई है कि कई बार नरेंद्र मोदी भी उसके नीचे दिखाई देने लगते हैं।

राष्ट्रीय राजनीति में अमित शाह का पदार्पण नरेंद्र मोदी के पीछे पीछे हुआ , शुरुआती दौर में शाह की पहचान गुजरात के एक सजायाफ्ता मुजरिम और दंगो के दोषी के रूप में होती थी , मगर धीरे धीरे उन्होंने इन सब आपराधिक मामलो से बरी होने में सफलता पाई और फिर खुद को भाजपा संगठन में उस स्थिति में ला खड़ा कर दिया जहाँ उनकी मर्जी के बिना पार्टी में एक पत्ता तक नहीं हिल सकता।  

राजनाथ सिंह के समर्थक बीते दो आम चुनावो  में इस संभावना पर काम करते रहे कि यदि भाजपा बहुमत से दूर रहती है तो एक सर्वमान्य नेता के रूप में दूसरे दलों की पसंद राजनाथ सिंह हो सकते हैं, मगर एक एक बाद एक दोनों चुनावो के नतीजो ने इस संभावना को ही ख़त्म कर दिया है।

5 साल  पहले राजनाथ मोदी मंत्रिमंडल में गृहमंत्री भी थे और नंबर दो की पोजीशन पर भी . 30 मई 2019 को भी जब नरेंद्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो भी हर किसी को लगा कि राजनाथ की ये स्थिति बरक़रार रहेगी , लेकिन 31 मई को हालात बदलने शुरू हो गए।  अमित शाह देश के गृह मंत्री बने और राजनाथ को रक्षा मंत्रालय मिला।  इसके बाद तो घटनाक्रम और तेजी से बदला और कैबिनेट समितियों के गठन की घोषणा होते ही ये साफ़ होने लगा कि राजनाथ के सिक्के के बरक्स अमित शाह ज्यादा मजबूत हो चुके हैं।

कैबिनेट समितियों में तो अमित शाह ने नरेंद्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया।  सभी 8 समितियों में अमित शाह सदस्य है जबकि राजनाथ सिंह को पहले सिर्फ 2 समितियों में शामिल किया गया था , लेकिन जब सियासी गलियारों में इसकी चर्चा तेज होने लगी तो फिर राजनाथ सिंह को 6 समितियों में जगह मिल पाई।  इसके बाद शाह को नीति आयोग का पदेन सदस्य भी बना दिया गया ।

सरकार के सामान्य कामकाज में भी अमित शाह का दबदबा बढ़ा है।  4 जून को शाह ने इस बात के संकेत दे दिया थे कि वे महज गृहमंत्री की भूमिका ही नहीं निभाने वाले हैं।  उन्होंने वित्त, पेट्रोलियम और रेल जैसे बड़े विभागों के मंत्रिओं की बैठक बुला ली।  यह संकेत था कि इन मामलो में भी अमित शाह की ही चलने वाली है। नौकरशाही में बड़े पदों पर नियुक्ति करने वाले समिति में भी सिर्फ अमित शाह और नरेंद्र मोदी ही शामिल हैं।

जाहिर है ये हालात राजनाथ सिंह के लिए मुफीद नहीं है।  अमित शाह के इतने ताकतवर बनने से पहले राजनाथ यदा कदा  मोदी सरकार को असहज करने वाले बयान देते रहे।  आम चुनावो के पहले भी उन्होंने कह दिया था कि यूपी में महागठबंधन भाजपा का नुकसान कर सकता है।  ये बात अमित शाह भूले नहीं हैं।फिलहाल अमित शाह सरकार को अपने नियंत्रण में ले चुके हैं और संगठन पहले से ही उनके नियंत्रण में है।  पार्टी के अगले अध्यक्ष के बारे में कयास लगाए जा रहे हैं , लेकिन इतना तो तय ही है की जो भी आएगा वो शाह की टीम का ही होगा। शाह ये भी सुनिश्चित करेंगे कि राजनाथ और नितिन गडकरी की दखल  संगठन में नहीं बन पाए।

राजनाथ का इकलौता सहारा आरएसएस है।  वे संघ के साथ तालमेल बना कर चलने वाले नेता रहे हैं. समय समय पर संघ ने उनकी स्थिति को न सिर्फ बिगड़ने से बचाया है बल्कि उन्हें मजबूती भी दी है,  लेकिन ये दौर अलग है।  अमित शाह ने फिलहाल अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली है कि वे संघ का लिहाज तो करेंगे मगर उसके हर निर्देश को माने ये जरूरी नहीं।

राजनाथ सिंह को जानने वाले कहते हैं कि उनमे धीरज रखने की गजब की क्षमता है।  तो क्या अपने इस क़ाबलियत के भरोसे राजनाथ सिंह अगले 5 साल तक अपने पक्ष में संतुलन बनाये रख सकेंगे ? ये सवाल है। लेकिन इसके साथ ये सत्य भी सामने है की अमित शाह अपने सामने वाले हर बड़े पेड़ को बखूबी गिराने में अब तक कामयाब होते रहे हैं।

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