जुबिली न्यूज डेस्क
इसरो अपने चंद्रयान का प्रयोग केवल चंद्रमा पर रोवर और लैंडर भेजने के लिए नहीं कर रहा है. इसका लक्ष्य भी अन्य मिशन की तरह चांद पर इंसानों को उतारना ही है. लेकिन, इसे हासिल करना इतना आसान नहीं है. इसरो की रॉकेट और इंजन की मौजूदा क्षमता इसको हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसीलिए इसरो हर चरण की सफलता के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है.
चंद्रयान-1 में ऑर्बिटर और मून इम्पैक्ट प्रोब लॉन्च किया गया. फिर चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर के साथ लैंडर और रोवर भी भेजे गए थे. जबकि चंद्रयान-3 में सिर्फ़ लैंडर और रोवर भेजा गया. इस प्रयोग में चंद्रयान-2 में इस्तेमाल किए गए ऑर्बिटर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की कोशिश
चंद्रयान-3 की सफलता और जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर चंद्रयान-4 उसके बाद प्रयोग जारी रखेगा. यदि ये सभी सफल रहे तो अगले मिशनों में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की कोशिश होगी. इस दिशा में कुछ और प्रयोग पहले से ही चल रहे हैं. इसरो का आगामी गगनयान भी इसी का हिस्सा है. उल्लेखनीय है कि भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा, रूस के सोयूज़ टी-11 अंतरिक्ष यान से तीन अप्रैल, 1984 को अंतरिक्ष में गए और करीब आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे.
बहरहाल, अब इसरो दूसरे देशों की मदद से नहीं बल्कि पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान प्रयोग करने की तैयारी में है. गगनयान प्रयोग में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से 400 कि.मी. की ऊंचाई तक ले जाने और तीन दिनों तक उन्हें वहां रख कर, वापस लाने की परिकल्पना की गई है.
अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी की चुनौती
चंद्रयान प्रयोगों में अब तक इस्तेमाल किए गए ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर्स को पृथ्वी पर वापस नहीं लाया जाएगा. लेकिन अगर अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजा जाता है, तो उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की चुनौती होगी.
इसके लिए नासा के मॉडल के मुताबिक क्रू मॉड्यूल बनाये जाने की ज़रूरत है. इतना नहीं कम से कम समय में चंद्रमा तक पहुंचने के लिए विशाल रॉकेट भी बनाने होंगे. चंद्रमा पर उतरने के लिए मानवयुक्त लैंडर भेजना होता है और अगर लैंडर को धरती पर लौटना है तो चंद्रमा की कुछ ऊंचाई पर एक कमांड मॉड्यूल भी होना चाहिए.
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इस कमांड मॉड्यूल से लैंडर चंद्रमा पर उतरेगा और अंतरिक्ष यात्री वहां शोध करने के बाद उसी लैंडर मॉड्यूल में चंद्रमा की सतह पर कमांड मॉड्यूल पर लौट आएंगे. फिर कमांड मॉड्यूल को पृथ्वी पर वापस लाया जाता है.
ये सभी प्रयोग दस दिन के अंदर करने की चुनौती भी होती है. इसके लिए उन्नत तकनीक और विशाल रॉकेट की आवश्यकता होती है. चंद्रमा पर कोई वायुमंडल नहीं है. अंतरिक्ष में तापमान भी बहुत कम हो जाता है. यानी वहां भी रॉकेट को चलाने के लिए क्रायोजेनिक इंजन डिजाइन करना होगा.
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इन सबके अलावा, प्रक्षेपण के दौरान अप्रत्याशित त्रुटियों के मामले में अंतरिक्ष यात्रियों वाले क्रू मॉड्यूल की सुरक्षा के लिए एक ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ भी तैयार किया जाता है. इन सबके साथ अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर वापस लाने वाला क्रू मॉड्यूल भी तैयार किया जाना चाहिए.
यह सब हासिल करना चंद्रयान-3 और उसके बाद के प्रक्षेपणों की सफलता पर निर्भर करता है. यदि चंद्रयान-3 सफल होता है और उसके बाद के प्रयोग भी योजनाबद्ध स्तर पर सफल होते हैं, तो इसरो चंद्रयान-10 या 11 में चंद्रमा के साथ अंतरिक्ष मिशन को अंजाम देने और चंद्रमा पर इंसानों को भेजने में सक्षम होगा.
इसरो को भी बड़े रॉकेट की ज़रूरत
अपोलो-11 को चार दिनों में चंद्रमा पर ले जाया गया, जहां अपोलो-11 ने ईगल लैंडर को चंद्रमा पर उतारा, और अंतरिक्ष यात्रियों के चंद्रमा पर उतरने और शोध करने के बाद, लैंडर ऑर्बिटर तक पहुंचने और वापस लौटने के लिए इसे बहुत अधिक ईंधन की आवश्यकता हुई.भविष्य में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के इसरो के मिशनों में ऐसे विशाल रॉकेट और भारी ईंधन की आवश्यकता होगी. ज़ाहिर है चंद्रयान-3 की कामयाबी इसी दिशा में इसरो का कद़म होगा.