न्यूज डेस्क
केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर अहम फैसला लिया है। सरकार जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने का फैसला किया है।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जायेगा। जम्मू कश्मीर में विधायिका होगी जबकि लद्दाख में विधायिका नहीं होगी।
सरकार के इस फैसले को लेह-लद्दाख में ऐतिहासिक माना जा रहा है। वहां के नेता और धार्मिक संस्थाएं भी इसका स्वागत कर रही हैं, लेकिन उन्हें विधायिका न होने की टीस भी है। उनकी मांग है कि यहां पर विधायिका की भी व्यवस्था होनी चाहिए। दरअसल लद्दाख के लोग बहुत सालों से इसकी मांग कर रहे थे।
लद्दाख में साल 1989 में अलग राज्य बनाए जाने को लेकर आंदोलन भी चला था जिसके आधार पर लद्दाख को स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल मिली थी।
लोगों का मानना है कि बिना विधायिका दिए लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं। लेह में तो लगभग सभी लोग इस कदम का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक इस फैसले को लेकर कारगिल में थोड़ी सहजता नहीं है।
लेह में बौद्ध भारी संख्या में रहते हैं। यहां करीब 15-20 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है, जबकि कारगिल मुस्लिम बहुल इलाका है और वहां बौद्ध कम संख्या में हैं।
लद्दाख में क्या बदलेगा
हमेशा से जम्मू-कश्मीर की बात होती रही है। लद्दाख को अलग करने की मांग लंबे समय से होती रही है लेकिन उनकी आवाज दूर तलक नहीं गई। फिलहाल अब, जब लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश बनने जा रहा है तो यहां क्या बदलाव होगा, यह जानते हैं।
मालूम हो जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्रफल का 68 प्रतिशत हिस्सा लद्दाख का है। केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद लद्दाख को पहचान मिलेगी। भारत के नक्शे में इसे अलग जगह मिलेगी।
सबसे बड़ी बात यह कि यहां के निवासियों को महत्वपूर्ण कामों के लिए इधर-उधर नहीं जाना पड़ेगा। अब तक हर छोटे-मोटे काम के लिए इन लोगों को जम्मू या फिर श्रीनगर जाना पड़ता था।
हालांकि यहां के लोगों को यह चिंता हो सकती है कि देश के अन्य राज्यों के लोग यहां आकर यहां जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन यह भी सच है कि जम्मू-कश्मीर के लोग पहले भी यहां आकर जमीन खरीद सकते हैं। बावजूद यहां पर जमीनें ज्यादा नहीं बिकी हैं।
हां अब यह हो सकता है कि आने वाले समय में बहुत सारे लोग यहां आएं और जमीन खरीद कर होटल बनाएं। यहां के लोग इसी तरह की समस्याओं के लिए विधान परिषद या विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर रहे थे। अगर ऐसी व्यवस्था होती है तो लद्दाख के लोग अपने कानून बना सकते हैं और अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।
लद्दाख के लोगों का कहना है कि अगर उन्हें विधायिका मिलती, चाहे वह विधानसभा हो या परिषद, तो वे अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं। दरअसल लद्दाख की अपनी सांस्कृति पहचान रही है और भौगोलिक आधार पर भी यह अलग है।
ऐतिहासिक रूप में भी यह 900 से अधिक सालों तक स्वतंत्र पहचान रखने वाला क्षेत्र रहा है। यह जम्मू या कश्मीर से किसी तरह मेल नहीं खाता। ऐसे में जरूरी है कि इसे इन बातों को ध्यान में रखते हुए नियम-कानून बनाने का अधिकार मिले।
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