Friday - 25 October 2024 - 3:52 PM

पंजाब में अब क्या करेगी भाजपा?

जुबिली न्यूज डेस्क

किसान आंदोलन को भले ही केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार अब भी हलके में ले रही है, लेकिन भाजपा शासित राज्यों पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही है।

हरियाणा में तो किसान आंदोलन की वजह से खट्टर सरकार काफी दिनों से परेशान है, लेकिन 28 जनवरी के बाद से प्रदेश प्रदेश में भी प्रदेश भाजपा के माथे की शिकन बढ़ गई है।

अब तो किसान आंदोलन की वजह से पंजाब में भाजपा की परेशानी काफी बढ़ गई है। मंगलवार 9 फरवरी को भाजपा के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा स्थानीय कार्यकर्ताओं से मिलने फिरोजपुर पहुंचे थे।

यहां कोई अप्रिय स्थिति न बने इसके लिए एहतियातन स्थानीय पुलिस तैनात किया गया था, बावजूद इसके प्रदर्शनकारियों ने अश्विनी शर्मा के खिलाफ नारे लगाए।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष शर्मा जब अपनी कार में बैठकर जाने लगे थे तो अज्ञात प्रदर्शनकारियों ने उनकी कार पर हमला बोल दिया।

अश्विनी शर्मा भले ही वहां से सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गए लेकिन उनकी कार को काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा भी उन्हें फजिल्का जिले के अबोहर शहर में भी ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा था।

इसके अलावा नवां शहर में शर्मा को एक जनसभा को संबोधित करना था। लेकिन सभा शुरु होने से पहले ही प्रदर्शनकारी जमा हो गए। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन प्रदर्शनकारियों ने सभा स्थल तक जाने की सड़क को बंद कर दिया।

आखिरकार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को अपनी सभा स्थगित करनी पड़ी।

भाजपा प्रदेश के साथ हुई यह घटना एक बानगी है। पंजाब में कई भाजपा नेताओं को ऐसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

इससे पहले 8 फरवरी को पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय संपाला अपने पार्टी के उम्मीदवारों का प्रचार करने के लिए निकले थे। रास्ते में प्रदर्शनकारियों के एक दल ने उनकी कार रोककर नारेबाजी शुरू कर दी।

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इसके अलावा भटिंडा में भाजपा उम्मीदवार जतिन कुमार साहिल और मोहन वर्मा के पोस्टर, बैनर इत्यादि को लोगों ने काले रंग से पोत दिया गया था। ये दोनों नेता इसके खिलाफ शिकायत करने पुलिस के पास अभी गए।

पंजाब में स्थानीय निकाय चुनाव होना है। चुनावों में अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं और वहीं भाजपा के नेताओं को पूरे राज्य में विरोध -प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है।

इसका नतीजा यह है कि भाजपा नेता या तो अपने घरों के अंदर रहने को मजबूर हैं या फिर वे अपने अभियान को गुपचुप ढंग से चलाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनका विरोध करने वाले लोग हर जगह पहुंच जा रहे हैं।

ऐसा भाजपा के साथ क्यों हो रहा है पार्टी बखूबी जानती है। लेकिन केंद्र सरकार बिल को लेकर आडिग है इसलिए भाजपा नेता कोई आश्वासन भी नहीं दे पा रहे हैं।

पंजाब में विरोध-प्रदर्शन नया नहीं है। पिछले साल जून में जब केंद्र सरकार तीन कृषि कानून का प्रस्ताव अध्यादेश के तौर पर लाई थी तब से पंजाब में भाजपा नेताओं को ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

पंजाब में 14 फरवरी को स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, और ऐसे में आखिरी दौर के प्रचार में भी वे चाहकर पूरी ताकत नहीं झोंक पा रहे हैं।

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निकाय चुनाव की अहमियत

पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद से यह पहला मौका है जब राज्य में कोई चुनाव होने जा रहा है। स्थानीय निकाय चुनावों में आठ नगर निगमों, 109 नगरपालिका और नगर पंचायतों के चुनाव और उपचुनाव होने हैं।

राज्य में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन चुनावों के बाद ही अगले साल की शुरुआत में ही राज्य में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

मौजूदा समय में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार है।

साल 2015 में जब अकाली दल और भाजपा का गठबंधन सत्ता में था, तब स्थानीय निकाय चुनावों में गठबंधन को ही जीत हासिल हुई थी। इस बार अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा अकेले चुनाव मैदान में है।

पहले तो भाजपा कई जगहों पर प्रत्याशी तलाशने में भी मुश्किल हुई। करीब 2300 वॉर्ड में से भाजपा सिर्फ 670 वॉर्डों में ही अपने प्रत्याशी खड़े कर सकी और इनको अपना प्रचार करने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

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क्या है भाजपा की रणनीति?

पंजाब में भाजपा नेताओं को हर दिन विरोध-प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन पार्टी इसका दोष सीधे तौर पर किसानों पर थोपने से बच रही है।

नेताओं के ऊपर हुए हमले और विरोध प्रदर्शन के लिए भाजपा कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहरा रही है। पंजाब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कुछ दिनों पहले कहा था कि किसान कहीं भी संलिप्त नहीं हैं। कांग्रेस सरकार की ओर से प्रायोजित लोग ऐसी गड़बडिय़ा कर रहे हैं। उन्होंने पुलिस पर सरकार से मिलने का आरोप लगाया था।

हालांकि कई उम्मीदवार ऐसा मानते हैं कि भाजपा का आक्रामक विरोध के चलते उनका चुनावी अभियान प्रभावित हो रहा है और इसका असर नतीजे पर भी पड़ सकता है।

लेकिन वरिष्ठ नेता विजय संपाला को उम्मीद है कि जल्द ही पार्टी इस दौर से उबर आएगी। उन्होंने कहा कि यह पार्टी के लिए एसिड टेस्ट जैसा है, लेकिन हमने 1980 और 90 के शुरुआती दौर में भी काफी मुश्किलों को देखा था। इससे पार्टी उबर आएगी।

क्या है किसानों की राय?

भाजपा भले ही किसानों पर दोष देने से बच रही है लेकिन किसान संगठनों की ओर से स्पष्टï तौर पर कहा जा रहा है कि वे लोग केवल भाजपा का विरोध कर रहे हैं।

किसान नेता सुखदेव सिंह कोकरी ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के सिलसिले में हम लोगों ने भाजपा के मुख्य नेताओं का भी विरोध करने का फैसला किया था। हम लोग ना तो किसी पार्टी के इर्दगिर्द घूम रहे हैं और ना ही किसी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन हम लोग सिर्फ भजापा का विरोध कर रहे हैं।

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