प्रीति सिंह
अक्सर कहा जाता है ‘हेल्थ इज वेल्थ’। मतलब स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है। जाहिर है जब हम स्वस्थ्य होंगे तो ही कुछ कर पायेंगे। इसीलिए डॉक्टर अच्छा खाने-पीने की सलाह देते हैं। हम जितना पौष्टिक आहार लेंगे उतना ही स्वस्थ्य रहेंगे। आज जब कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है तो इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि ऐसा आहार लें जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत हो, क्योंकि कोरोना वायरस की लड़ाई में इम्यून सिस्टम ही बड़ा हथियार साबित हो रहा है। जिनका इम्यून सिस्टम अच्छा है वह कोरोना को आसानी से मात दे रहे हैं।
अब असल मुद्दे पर आते हैं। बीते मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि मुफ्त अनाज वितरण की योजना अब अगले पांच महीने यानी नवंबर तक और जारी रहेगी। इसके तहत करीब अस्सी करोड़ लोगों को पांच किलो गेहूं या चावल और साथ में एक किलो चना दिया जाएगा, ताकि कोई रोजगार या मजदूरी का काम नहीं मिलने की स्थिति में उनके सामने भूखे रहने की नौबत नहीं आए। सरकार की यह पहल अच्छी है, मगर सवाल यह है कि चावल या गेहूं के सहारे पोषण और सेहत की क्या तस्वीर होगी? गेहूं और चावल खाने से इम्यून सिस्टम कितना मजबूत होगा? क्या गेहूं-चावल से कोरोना को मात दे पायेंगे?
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ऐसे बहुत से सवाल फिजा में है। देश की एक बड़ी आबादी कोरोना महामारी के बीच हुई तालाबंदी से प्रभावित हुई है। इस तालाबंदी ने करोड़ों लोगों को बेरोजगारी के दलदल में ढकेल दिया। जिसकी वजह से इनके सामने दो रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। कोरोना की लड़ाई में कितनी जरूरी चीजें शामिल है। मसलन मास्क, सेनेटाइजर, अच्छा भोजन और पानी। ये कोरोना की लड़ाई में अहम हथियार है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो दो रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं वह इन सब चीजों की व्यवस्था कैसे करेंगे। वह कोरोना से लड़ाई कैसे लड़ेंगे।
कोरोना महामारी अब भी चुनौती बनी हुई है। मार्च महीने में संक्रमण रोकने के लिए देशव्यापी तालाबंदी की गई जिसकी वजह से लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई। तभी से सबसे बड़ी चिंता यही सामने थी कि जिन लोगों के खाने-पीने की निर्भरता ही रोजाना की मजदूरी या दिहाड़ी पर टिकी थी, वे कैसे खुद को बचाएंगे। इस समस्या का दायरा शहरों-महानगरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक अब भी बना हुआ है। तालाबंदी खुलने के बाद भी रोजी-रोटी या रोजगार के अभाव में ऐसे तमाम लोग हैं, जो किसी मदद के बूते अपना वक्त काट रहे हैं।
तालाबंदी में बड़ी संख्या में शहरों से मजदूर गांवों की ओर पलायन कर गए। काफी जद्दोजहद के बाद गांव तो पहुंच गए लेकिन रोजी-रोटी का संकट उनके सामने अभी भी बना हुआ है। गरीब तबकों के लोगों के सामने जिंदा रह पाने लायक भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया है। ऐसे समय में सरकार की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह इस समस्या का कोई ठोस हल निकाले।
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सरकार ने अप्रैल महीने से मुफ्त अनाज मुहैया कराने की व्यवस्था की और इसकी वजह से बहुत सारे लोगों को तात्कालिक राहत मिली, लेकिन बहुत से लोग इससे वंचित रह गए। बीते मंगलवार को मोदी सरकार ने इस योजना को अब आगे बढ़ाकर नवंबर तक कर दिया है। सरकार की इस घोषणा से यह संकेत भी उभर रहा है कि कोरोना महामारी की वजह से लागू पूर्णबंदी अब देश के अलग-अलग राज्यों में चरणबद्ध तरीके से खुलने की ओर जरूर बढ़ रही है, लेकिन उसके असर की वजह से रोजी-रोजगार की स्थिति में फिलहाल कोई बड़ा बदलाव नहीं आने जा रहा है।
अगर यह हालत बना रहता है तो सबसे बड़ी मुश्किल उन लोगों के सामने होगी, जो पहले ही काम-धंधे पूरी तरह ठप होने के चलते आर्थिक रूप से पूरी तरह लाचार हो चुके हैं और उनके पास अपना और अपने परिवार का पेट भरने तक के लिए पैसे या अनाज नहीं हैं।
हालांकि यूपीए सरकार के दौरान 2013 में खाद्य सुरक्षा कानून बनने के बाद देश की दो-तिहाई आबादी को दो रुपए किलो गेहूं और तीन रुपए किलो चावल प्रति व्यक्ति के हिसाब से पांच किलो अनाज हर माह देने की व्यवस्था की गई थी। अब मौजूदा सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत जरूरतमंदों को मुफ्त अनाज मुहैया कराने की योजना कुछ समय के लिए जारी रखती है तो निश्चित रूप से यह अभाव से लड़ते लोगों की एक अतिरिक्त और बढ़ी मदद होगी।
मगर फिर वहीं सवाल चावल या गेहूं के सहारे पोषण और सेहत की तस्वीर क्या होगी? इसलिए जरूरी है कि सरकार चावल- गेहूं के साथ अन्य वह चीजें देने पर भी विचार करें जो कोरोना की लड़ाई में अहम साबित हो, क्योंकि अच्छी सेहत ही कोरोना को मात दे पायेगी?