Tuesday - 29 October 2024 - 5:18 PM

‘राष्ट्रपत्नी’ विवाद पर क्या इस पूर्व मंत्री के सुझावों मानेगी सरकार !

जुबिली स्पेशल डेस्क

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपत्नी’ कहकर संबोधित करने का मामला लगातार तूल पकड़ रहा। इतना ही नहीं इस पूरे मामले में जमकर दोनों सदनों में हंगामा देखने को मिला। आलम तो ये रहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों इस मामले को लेकर आमने सामने आ गए। सदन से बाहर सोनिया गांधी और स्मृति इरानी की तीखी बहस देखने को मिली है।

दरअसल ये हंगामा कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘राष्ट्रपत्नी’ बोलने पर गुरुवार को संसद में भारी हंगामा हुआ। मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि दोनों पार्टी के नेता एक दूसरे के आमने-सामने आ गए थीं। इसी मुद्दे को लेकर सदन से बाहर सोनिया गांधी और स्मृति इरानी की तीखी बहस भी देखने को मिली।

मामला बढ़ता देखकर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अपनी उस टिप्पणी के लिए लिखित माफी मांग ली, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति को ‘राष्ट्रपत्नी’ कहकर संबोधित किया था।चौधरी ने कहा, ‘‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यह जुबान फिसलने से कारण हुआ। मैं माफी मांगता हूं और आपसे आग्रह करता हूं कि आप इसे स्वीकार करें।’’कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने इसी विषय को लेकर शनिवार को राष्ट्रपति से मुलाकात का समय मांगा है। उनकी इस टिप्पणी को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था। उन्होंने बुधवार को मीडिया से बातचीत में राष्ट्रपति के लिए ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द का उपयोग कर दिया था।

इस पूरे मामले पर कांग्रेस के जाने-माने नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री  प्रदीप जैन आदित्य ने एक बड़ी पहल करते हुए कल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक लेटर लिखा है।

उन्होंने इस पूरे मामले पर एक ट्वीट करते हुए कहा है कि संसद में जनता से जुड़े महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर बहस की बजाए राष्ट्रपति और राष्ट्रपत्नी जैसे विषयों पर विवाद हो रहा है। उन्होंने अपने लेटर के माध्यम ऐसे विवादों से बचने के लिए संविधान के अनुच्छेद 394-अ में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के हिंदी अनुवाद में बदलाव के लिए एक रिपोर्ट भेजी है।

उन्होंने अपने लेटर के माध्ययम से इस पूरे विवाद पर सुझाव देते हुए कहा है कि राष्ट्रपति और राष्ट्रपत्नी जैसे शब्दों से बचा जा सकता है अगर संविधान में प्रधानमंत्री मंत्री लोक सभा अध्यक्ष राज्यपाल मुख्यमंत्री न्यायधीश महाधिवक्ता जैसे कई पदों के बारे में प्रावधान है ऐसे कई पदों के अंग्रेजी और हिंदी अनुवाद में कोई विवाद नहीं होता है।

उन्होंने आगे अपने लेटर में कहा है कि संविधान के अनुछेद 52 से 62 में राष्ट्रपति और 64 से 69 में उपराष्ट्रपति पद के बारे में प्रावधान है। इसके अलावा भी संविधान के कई अन्य प्रावधानों में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का उललेख मिलता है।

संविधान के अनुछेद 64 के तहत उपराष्ट्रपति को राज्य सभा के सभापति की मान्यता होती है। वर्तमान विवाद से लगता है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति और सभापति जैसे शब्दों को समयनुकुल बदलने की जरूरत है।

भारत ने मानवाधिकारों के बारे में 1948 की अंतरराष्ट्रीय संधि, महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों के बारे में 1954 की अंतरराष्टï्रीय संधि, नागरिकों और राजनीतिक अधिकारों के बारे में 1966 की अंतरराष्ट्रीय संधि जैसे अनेक अंतरराष्टï्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किया है। उन्होंने आगे लिखा है कि संविधान के अनुच्छेद 15, 16 के अनुसार लिग के आधार पर किसी तरह का भेदभाव वर्जित है। लंैगिक भेदभाव के अनुसार राष्टï्रीय और संवैधानिक पदों का हिन्दी नामकरण, संविधान के साथ अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन भी है।

बता दें कि भाजपा ने चौधरी की ‘राष्ट्रपत्नी’ वाली टिप्पणी और कांग्रेस ने सोनिया के साथ लोकसभा में हुए व्यवहार को लेकर संसद के दोनों सदनों में भारी हंगामा किया, जिस कारण शुक्रवार भी सदन की कार्यवाही बाधित हुई।

 

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