जुबिली न्यूज डेस्क
आस्ट्रेलिया के इतिहास में एक नया मामला दर्ज हुआ है, जो चर्चा में है। दरअसल मेलबर्न में एक दंपति को एक भारतीय महिला को गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई है।
यह पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया की कोर्ट में सिर्फ घरेलू दासता से संबंधित कोई मामला आया था।
विक्टोरिया राज्य की सुप्रीम कोर्ट ने मेलबर्न में रहने वाले एक दंपति को एक भारतीय महिला को 8 साल तक गुलाम बनाकर रखने के आरोप में जेल की सजा सुनाई है। सजा सुनाते वक्त जज ने कहा कि यह “मानवता के खिलाफ अपराध” था।
विक्टोरिया की शीर्ष अदालत ने मेलबर्न के कांडासामी और कुमुथिनी कानन को जेल की सजा सुनाई है। 53 वर्षीय कुमुथिनी कानन को 8 साल जेल में बिताने होंगे और वह 4 साल बाद परोल के लिए आवेदन कर पाएंगी।
वहीं 57 वर्षीय कांडासामी कानन को 6 साल की सजा हुई है और उन्हें तीन साल बाद ही परोल मिल सकेगी। इस दंपति ने भारत की एक तमिल महिला को साल 2007 से 2017 के बीच आठ साल तक गुलाम बनाकर घर में रखा।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान दंपति ने बार-बार अपने बेगुनाह होने की बात कही। उनके वकील ने संकेत दिया है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं। पति-पत्नी को अप्रैल में सुनवाई के बाद एक जूरी ने दोषी करार दिया था।
‘घिनौनी मिसाल’
डीडब्ल्यू की खबर के मुताबिक बुधवार को अदालत की कार्रवाई लगभग तीन घंटे तक चली, जिसे देखने के लिए 200 से अधिक लोग मौजूद थे। फैसला सुनाते समय शीर्ष अदालत के जज जस्टिस जॉन चैंपियन ने कहा, गुलामी को इंसानियत के खिलाफ अपराध माना जाता है। आप लोगों ने जो किया है वह आपके बच्चों की मौजूदगी और समझ के दौरान रोज हुआ। आपने दूसरे लोगों के साथ कैसे बर्ताव किया जाना चाहिए, इसकी आपने उन लोगों के सामने एक बहुत घिनौनी मिसाल पेश की है।
दरअसल 8 साल तक गुलाम बनाकर रखी गई महिला को कड़ा दुर्व्यवहार सहना पड़ा। उसे शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ीं और जब यह मामला सामने आया तब उसका वजन सिर्फ 40 किलो रह गया था।
जस्टिस चैंपियन ने कहा, “उसकी जिंदगी आपके घर तक ही सीमित थी और आप लोगों ने इस बात का ख्याल रखा कि उसकी हालत का समुदाय में बाकी लोगों को पता ना चले। यह आपका गंदा राज था। इस घिनौने व्यवहार के लिए अदालत आपकी सार्वजनिक तौर पर भर्त्सना करती है।”
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क्या है पूरी कहानी?
भारतीय महिला अलग-अलग समय पर इस दंपति के घर काम करने के वास्ते तीन बार भारत से ऑस्ट्रेलिया आई थी। दो बार वह भारत लौट गई थी, लेकिन तीसरी बार साल 2007 में वह ऑस्ट्रेलिया आई और उसे गुलाम बना लिया गया।
भारतीय महिला को खाना बनाने, घर की सफाई करने और बच्चों के काम करने के लिए मजबूर किया गया। उसे सिर्फ 3.39 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग 185 रुपये रोजाना का मेहनताना दिया गया। ऑस्ट्रेलिया में मौजूदा न्यूनतम मजदूरी 20 डॉलर प्रतिघंटा यानी लगभग 1200 रुपये रोजाना है।
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उम्र के छठे दशक में पहुंच चुकी वह महिला जब भारत वापस नहीं आई तो उसके परिवार को चिंता होने लगी। वे उससे संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे तो साल 2015 में उन्होंने विक्टोरिया पुलिस से उस महिला की खबर लेने का आग्रह किया।
जब पुलिस अधिकारी पूछताछ करने कानन दंपती के घर पहुंचे तो उन्होंने कहा कि उन्होंने तो महिला को 2007 से देखा ही नहीं है, जबकि तब महिला को एक फर्जी नाम से अस्पताल में भर्ती कराया गया था क्योंकि वह बेहोश होकर गिर पड़ी थी।
बाद में महिला ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उसे जमे हुए चिकन से पीटा गया था और उबलते पानी से जलाया गया था।
फैसला सुनाते समय जस्टिस चैंपियन ने कहा, “वह एकदम कृशकाय हो गई थी और उसका वजन 40 किलो था।”
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कानन दंपती के वकीलों ने दलील दी कि महिला की शारीरिक प्रताडऩा के आरोपों को साबित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि कानन दंपती ने उस महिला को परिवार के सदस्य की तरह रखा और उसे कभी बेडिय़ों में नहीं जकड़ा।
वहीं जस्टिस चैंपियन ने कहा कि गुलामी की परिभाषा बदले जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हमें गुलामों की उस छवि को अपने मन से निकालने की जरूरत है जिसमें वे बेडिय़ों में जकड़े या खेतों में बंधुआ काम करते नजर आते हैं। गुलामी उससे ज्यादा भी बहुत कुछ हो सकती है और हो सकता है कि उसमें शारीरिक बंधन न हों। ”
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