पोलिटिकल डेस्क
सोमवार को समाजवादी पार्टी के आफिस में काफी गहमागहमी रही। बंद कमरे में जुटे सपा नेताओं को पहले से ही यकीन था कि “नेता जी” यानी मुलायम सिंह यादव के तेवरो से बचना मुश्किल है।
और हुआ भी यही , जैसे ही कुछ नेताओं ने हार के कारण गिनने शुरू किये , मुलायम के तेवर सख्त हो गए। नेता जी ने कहा – चुप रहो।
करारी हार के बाद अखिलेश यादव चिंतन की मुद्रा में हैं और एक बार फिर पार्टी नेता जी की शरण में जाती दिखाई दे रही है। 23 मई के नतीजों के बाद अखिलेश और मुलायम तकरीबन हर रोज पार्टी आफिस में बैठ रहे हैं। अखिलेश तो अपने नेताओं से इस कदर नाराज है कि उन्होंने सबसे पहले प्रवक्ता पैनल को ख़त्म किया और उसके फ़ौरन बाद पार्टी के सभी फ्रंटल संगठनो को भांग कर दिया। इशारा साफ़ है , सपा में बहुत कुछ बदल रहा है।
पार्टी आफिस में हुयी बैठक की शुरुआत नेता जी आक्रामक थे, उन्होंने वरिष्ठ नेताओं से कहा – “तुम लोगो ने तो घर की सीटें भी हरा दी।” मुलायम का यह गुस्सा अनायास नहीं है। धर्मेंद्र यादव , डिम्पल यादव और अक्षय यादव जैसे परिवार के सदस्य चुनाव हार चुके हैं। और साथ ही यादव पट्टी का मिथ भी टूट गया है , जहाँ आम तौर पर मान लिया जाता था कि यहाँ तो सपा करीब करीब अजेय है।
“आधा चुनाव तो तुम पहले ही हार चुके थे”
जब अखिलेश यादव ने मायावती के साथ समझौता कर के महज 38 सीटों पर लड़ने का फैसला किया था , उसके बाद से ही नेता जी ने ये बात हमेशा कही। ख़ास तौर पर सपा ने इस समझौते में अपनी कई मजबूत सीटें भी बसपा को दे दी थी , और जहाँ पार्टी कभी मजबूत नहीं रही वहां पर उसने बसपा पर भरोसा कर लिया , जोके नतीजे सुखद नहीं रहे।
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बैठक में शामिल एक नेता बताते हैं कि नेताजी ने कहा है कि पार्टी को न सिर्फ अपने संगठन में बदलाव करने की जरुरत है बल्कि गठबंधन की जगह जमीनी स्तर पर मजबूती की बात कह रहे हैं। यानी पार्टी में कई बड़े बदलाव देखने को तैयार रहना होगा।
मुलायम का गुस्सा पार्टी के प्रचार के तरीकों को भी लेकर भी था और अखिलेश के सलाहकारों को ले कर भी। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा – आप जिन लोगो से घिरे रहते हैं , उनकी मदद से चुनाव नहीं लड़ा जा सकता।
बैठक में शामिल सूत्र तो ये भी कह रहे हैं कि नेता जी ने ये भी कहा कि शिवपाल यादव के अलग होने से नुकसान हुआ है , आपको रास्ता दिखने वाले लोग गलत रास्ता दिखा रहे हैं।
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फिलहाल समाजवादी पार्टी चिंतन में हैं , और समर्थको को पार्टी संगठन में बदलाव की उम्मीद। आखिर 11 सीटों पर उपचुनावों में बहुत वक्त नहीं बचा है, जहाँ मजबूती से लड़ कर अगर पार्टी ने कामयाबी हासिल कर ली तो उसका उत्साह बढ़ेगा।