न्यूज डेस्क
”मेरे अतिथि शिक्षकों को मैं कहना चाहता हूं। आपकी मांग मैंने चुनाव के पहले भी सुनी थीं। मैंने आपकी आवाज उठाई थी और ये विश्वास मैं आपको दिलाना चाहता हूं कि आपकी मांग जो हमारी सरकार के घोषणापत्र में अंकित है वो घोषणा पत्र हमारे लिए हमारा ग्रंथ है।”
यह बातें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संत रविदास जयंती के अवसर पर जिले में कुडीला गांव में एक सभा को सम्बोधित करते हुए कही।
सिंधिया ने कोई पहली बार अपने सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद नहीं किया है। मध्य प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस के आने के बाद से वह लगातार कमलनाथ सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपनाएं हुए हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जिस तरह से कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है, वह राजनीति में नया नहीं है। हालांकि इसकी वजह में बार-बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस के रसातल में जाने की वजह से दिल्ली से लेकर राज्यों में कांग्रेस नेताओं में रार ठनी हुई है। नेतृत्व सही नहीं है इसलिए ऐसा हो रहा है। जबकि ऐसा नहीं है।
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राजनीति पर लंबे समय तक काम करने वाले पत्रकारों की माने तो कांग्रेस में जिस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलेट, महाराष्ट्र में अशोक चाव्हाण आदि नेता अपने ही साथियों के खिलाफ बोल रहे हैं वह नया नहीं है। ऐसी राजनीति पहले भी होती रही है।
वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कांग्रेस पार्टी के भीतर पहले भी खूब विरोध होता था। यह तब बंद हुआ जब पार्टी की कमान इंदिरा गांधी के हाथ में आ गई। बीजेपी में भी ऐसा ही होता था। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो उनके कई फैसलों पर उनके अनुषांगिक संगठन उसका विरोध करते थे। अभी में देखा जाए तो कई बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मोदी के कई फैसलों पर ऐतराज जताकर उसे बचाने की कोशिश की है।
वो कहते हैं, यदि ये कहें कि पार्टी के भीतर से जब विरोध होता है तो विपक्ष को ज्यादा बोलने का मौका नहीं मिल पाता। एक तरह से सरकार को बचाने की कोशिश की जाती है। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश और राजस्थान में है।
वरिष्ठ पत्रकार रूबी सरकार कहती हैं, सिंधिया कमलनाथ के खिलाफ बोल कर एक तीर से कई निशाना साध रहे हैं। वह उन्हीं मुद्दों पर आवाज उठा रहे हैं जिन मुद्दों पर जनता ने उनकी पार्टी को सत्ता में पहुंचाया।
दरअसल वह अपने बयानों से जनता में यह संदेश दे रहे हैं कि कांग्रेस ने उनसे जो वादा किया था वह भूली नहीं है। उन्हें याद है और वह इसे पूरा करने के लिए कटिबद्ध हैं। इससे दो फायदा हो रहा है। पहला यह कि इन मुद्दों के माध्यम से अपना जनाधार बढ़ा रहे हैं और दूसरा वह विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का मौका नहीं दे रहे हैं।
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