जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। देश की सियासत के मौजूदा साल काफी अहम है क्योंकि अगले कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव होने वाला है। राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव पर अपना पूरा फोकस लगा रहे हैं।
कांग्रेस ने सभी विपक्षी गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लडऩे का फैसला किया है जबकि बीजेपी भी लोकसभा चुनाव में जीत को लेकर भरोसा दिखा रही है। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राम मंदिर के नाम पर खूब सियासत हो रही है। दरअसल 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह होना है।
ऐसे में बीजेपी एक बार फिर राम मंदिर के सहारे लोकसभा चुनाव में अपनी जीत दर्ज करने की चाहत रखती है जबकि कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह से किनारा किया है।
इसको लेकर कांग्रेस ने सफाई दी है और कांग्रेस ने बीजेपी पर राम मंदिर को राजनीतिक परियोजना बनाए जाने का आरोप लगाते हुए कार्यक्रम में जाने से इंकार किया है। कांग्रेस ने बयान जारी कर कहा, कि भगवान राम की पूजा करोड़ो भारतीय करते हैं. धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता है लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने सालों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है।
साफ है कि एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है। दूसरी तरफ इस मामले को लेकर राजनीतिक पार्टियों से लेकर धार्मिक शख्सियतों तक में मतभेद सामने आ रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब उत्तराखंड की ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि देश के चारों शंकराचार्य 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल नहीं होंगे। हालांकि अभी दो शंकराचार्यों की तरफ से कोई बयान समाने नहीं आया है।
क्यों इतने अहम होते हैं शंकराचार्य
धार्मिक मान्यताओं की माने तो शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु होते हैं। इसके साथ ही आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए 4 मठों की स्थापना की थी। इनमें तमिलनाडु स्थित श्रृंगेरी मठ, ओडिशा स्थित गोवर्धन मठ, गुजरात स्थित शारदा मठ और उत्तराखंड स्थित ज्योतिर्मठ शामिल हैं। भारती तीर्थ महाराज, स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज, स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज क्रमश: इन चारों मठों के शंकराचार्य हैं।
शंकराचार्य क्या कहना है
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “राम मंदिर का उद्घाटन कार्यक्रम धर्मग्रंथों और नियमों के विरुद्ध है। निर्माण कार्य पूरा हुए बिना भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करना सनातन धर्म के नियमों का उल्लंघन है। इसके लिए कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। मंदिर का निर्माण पूरा हो, तभी प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए।”
इसी तरह ओडिशा की गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर के उद्घाटन में शास्त्रों के नियमों का उल्लंघन हो रहा है।
अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा, “एक अधूरे मंदिर का उद्घाटन करना और मूर्ति स्थापित करना बुरा विचार है। हो सकता है कि आयोजन करने वाले हमें मोदी विरोधी कहें। हम मोदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम धर्म शास्त्र के खिलाफ भी नहीं जा सकते।”
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि कार्यक्रम में शामिल होना उनकी ‘गरिमा के खिलाफ’ होगा। उन्होंने कहा, “अगर नियमों का ठीक से पालन नहीं किया जाता है तो प्रतिमा में बुरी चीजें प्रवेश कर जाती हैं।”
कुल मिलाकर शंकराचार्य ने न जाने से बीजेपी के लिए ये एक बड़ा झटका है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं की माने तो शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु होते हैं। ऐसे में 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह उनके न होना थोड़ा अजीब जरूर लगेंगा।