Friday - 25 October 2024 - 9:51 PM

मध्य प्रदेश का क्या है सियासी समीकरण?

न्यूज डेस्क

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद सेसियासी समीकरण बदल गया है। सिंधिया के बागी 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। अब सारा दारोमदार विधानसभा स्पीकर और राज्यपाल पर है।

स्पीकर कह सकते हैं बागी विधायकों को पेश होने के लिए

पिछले साल कर्नाटक में कुमार स्वामी सरकार के सामने जिस तरह सियासी संकट आया था, वैसे ही वर्तमान में कमलनाथ सरकार के सामने है। कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफे के बाद गेंद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति के पाले में है जो कांग्रेस के नेता हैं।

नियमत: अगर किसी सदस्य ने इस्तीफा दिया है तो उससे विधानसभा अध्यक्ष का संतुष्ट होना जरूरी है। यदि वह संतुष्ट हैं तो इस्तीफा स्वीकार कर सकते हैं। यदि स्पीकर को लगता है कि दबाव डालकर विधायकों से इस्तीफा दिलवाया गया है तो वह सदस्य से बात कर सकते हैं। साथ ही उस सदस्य को अपने समक्ष उपस्थित होने को कह सकते हैं। स्पीकर के संतुष्ट होने पर ही इस्तीफे को अगले कार्रवाई के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। कर्नाटक में स्पीकर ऐसा कर चुके हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए लगता नहीं कि स्पीकर इतनी आसानी से इस्तीफा स्वीकार करेंगे।

संविधान के नियमों के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा देने वाले सदस्यों को पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित नहीं कर सकते हैं। कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफा देने वाले बागी विधायकों को हमेशा के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट गया। कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता को सही माना था लेकिन उन्हें उपचुनाव लड़ने  की छूट दे दी थी।

मध्यावधि चुनाव चाहेगी कांग्रेस और बीजेपी उपचुनाव

यदि मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 230 में से आधे से अधिक सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया तब गेंद राज्यपाल के पाले में जाएगी। यह राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह सदन को भंग कर मध्यावधि चुनाव की सिफारिश करें या खाली सीटों पर उपचुनाव की। माना जा रहा है कि बीजेपी उपचुनाव पर बल देगी जबकि कांग्रेस का जोर मध्यावधि चुनाव पर रहेगा।

राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकती है बीजेपी

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बागी 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद सारा दारोमदार अब राजभवन पर है। गुरुवार को राज्यपाल लालजी टंडन लखनऊ से वापस लौट रहे हैं। उनके लौटते ही राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलेगा। सबसे पहले तो उन छह मंत्रियों को पद से हटाने पर फैसला होगा, जिन्हें हटाने की सिफारिश मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दो दिन पहले की है।

वहीं 16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होगा, जो खासा गहमा-गहमी भरा होने वाला है। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक बीजेपी राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकती है।

राज्यपाल लालजी टंडन लखनऊ होली का त्योहार मनाने लखनऊ गए हैं। गुरुवार को वह वापस आयेंगे। जाहिर है उनके आतेे ही राजनीतिक उठापटक तेज होने की संभावना है।

जानकारों के मुताबिक बीजेपी नेता प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति से वाकिफ कराने के लिए राजभवन जा सकते हैं। साथ ही विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले सरकार को बहुमत सिद्ध करने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। सारा दारोमदार राज्यपाल टंडन पर है कि भाजपा की ओर से उठने वाली ऐसी मांग पर वह क्या निर्णय लेते हैं।

सबसे पहले तो उन छह मंत्रियों को पद से हटाने पर फैसला होगा, जिन्हें हटाने की सिफारिश मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दो दिन पहले की है। 16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो रहा है, जो खासा गहमा-गहमी भरा होगा। भाजपा राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकती है।

कमलनाथ छह मंत्रियों को हटाने की कर चुके हैं सिफारिश

मालूम हो मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्यपाल लालजी टंडन को सिंधिया समर्थक महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी, स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट, राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, श्रम मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया, खाद्य मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर और स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी को पद से हटाने के लिए विधिवत पत्र लिख चुके हैं। चूंकि राज्यपाल छुट्टी पर चल रहे हैं, इसलिए इस पत्र पर अब तक फैसला नहीं हो सका है।

विधानसभा का गणित

एमपी में अब तक कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। विधानसभा अध्यक्ष अगर इन्हें स्वीकार कर लेते हैं तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 206 पहुंच जाएगी। वहीं इन विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की संख्या 92 पहुंच जाएगी। उधर, बीजेपी के विधायकों की संख्या 107 है। इसमें कुछ विधायकों ने बागी रुख अपना रखा है। चार निर्दलीय, दो बीएसपी, एक एसपी विधायक हैं। ये सभी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। इनका समर्थन बना रहा तो कांग्रेस की संख्या 99 पहुंच जाएगी। अगर बात राज्यसभा चुनाव की करें तो एक सीट जीतने के लिए 52 वोटों की जरूरत होगी। वर्तमान परिस्थिति में बीजेपी आसानी से दो सीट जीत सकती है। कांग्रेस को दूसरी सीट जीतने के लिए 5 वोटों की जरूरत होगी।

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