रतन मणि लाल
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र होने की वजह से सभी दलों और नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इस बार के लोक सभा चुनाव में ऐसा लगता है कि प्रमुख विपक्षी दल ने केवल लखनऊ को गंभीरता से नहीं ले रहे, बल्कि यहाँ से प्रत्याशी के चयन को जिस हलके में लिया जा रहा है वह आश्चर्यजनक है।
लखनऊ में मतदान पांचवे चरण में छह मई को होना है, और नामांकन की अंतिम तारिख 18 अप्रैल है। भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ से वर्तमान सांसद केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का नाम पहली ही सूची में घोषित कर दिया था। लेकिन यहाँ से नामांकन दाखिल करने के दो दिन पहले तक प्रमुख विपक्षी दल अधिकारिक रूप से अपने प्रत्याशी नहीं घोषित कर पाए।
जिस तरह एक विशाल रोडशो और समर्थकों के जुलूस के साथ राजनाथ ने 16 अप्रैल को अपना नामांकन दाखिल किया, वह उनके आत्मविश्वास और पार्टी के आश्वस्त होने का एक बड़ा प्रतीक था। उस समय तक विपक्षी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने अपने प्रत्याशी तय नहीं किये थे, केवल अटकलें लगाई जा रही थीं।
कुछ दिन पहले ही खबर आई कि 6 अप्रैल को भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए बिहार के शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी लखनऊ से प्रत्याशी हो सकती हैं। लेकिन उसके बाद इस दिशा में कोई अधिकारिक बयान नहीं आया। फिर यह खबर आई कि यहाँ से सपा के उम्मीदवार के खिलाफ कांग्रेस शायद अपना कोई उम्मीदवार न खड़ा करे। यह क्षेत्र सपा और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के चलते सपा के खाते में आई है।
राजनाथ के परचा दाखिल करने के कुछ घंटो बाद ही अचानक खबर मिली कि पूनम सिन्हा लखनऊ आ रही है, वे सपा में शामिल होंगी और उन्हें लखनऊ से प्रत्याशी घोषित किया जायेगा। आनन-फानन में खबर की पुष्टि हुई और पूनम सिन्हा ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की उपस्थिति में सपा की सदस्यता ग्रहण की।
लेकिन शाम तक पूनम सिन्हा के लखनऊ से सपा प्रत्याशी होने की घोषणा नहीं हुई। अगले दिन 17 अप्रैल को अवकाश होने की वजह से अब यह घोषणा 18 को होगी – यानी नामांकन भरने के अंतिम दिन – और फिर वे तुरंत अपना नामांकन दाखिल करेंगी।
कांग्रेस की ओर से तो और भी विचित्र स्थिति देखने को मिली
कुछ हफ़्तों पहले शाहजहांपुर के वरिष्ठ कांग्रेस नेता जीतेन्द्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद के अपनी पारंपरिक सीट के बजाये लखनऊ से कांग्रेस प्रत्याशी बनाये जाने की खबर चली, और उसके साथ ही यह भी पता चला कि वे इस बदलाव के चलते कांग्रेस छोड़ भी सकते हैं, और शायद भाजपा में शामिल हो जाएं।
यह वास्तव में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होता, लेकिन हुआ नहीं। प्रसाद ने बड़ी शान्ति से कहा कि ऐसा कुछ नहीं है, और वे चुनाव कहाँ से लड़ने जा रहे हैं यह बाद में पता चलेगा। अंततः कांग्रेस की ओर से लखनऊ के लिए प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुई और फिर 16 अप्रैल को ही, पूनम सिन्हा के सपा में शामिल होने के कुछ घंटों बाद, कांग्रेस की ओर से घोषणा हुई कि संभल के प्रमोद कृष्णम (जो आचार्य प्रमोद कृष्णम के नाम से जाने जाते हैं), लखनऊ से पार्टी के प्रत्याशी होंगे।
वे संभल के ही एक ब्राह्मण परिवार से हैं और वहां कल्कि आश्रम के अलावा कुछ समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हैं। वे संभल से ही 2014 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं, और मीडिया में अपने भाजपा और नरेन्द्र मोदी विरोधी बयानों के लिए चर्चित हैं। उत्तर प्रदेश में सपा शासन के दौरान भी वे राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहते थे और सरकार के पक्ष में अक्सर दिखाई देते थे।
अब लखनऊ में चुनावी समीकरण अत्यंत रोचक है
• दशकों से भाजपा में रहे वरिष्ठ अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम जो स्वयं भी अभिनेत्री रहीं हैं, अब लखनऊ से सपा की उम्मीदवार हैं। उनके पक्ष में मुख्यतः उनका एक कायस्थ नेता की पत्नी होना है।
• सपा की ओर से पूर्व में की गई अपील के बावजूद कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद को अपना उम्मीदवार बनाया है। सपा ने अपनी अपील में कहा था कि वे इस सीट से अपना प्रत्याशी न उतारें, ताकी वे इस सीट पर भाजपा को मात दे सकें।
• राजनाथ लखनऊ से पिछला चुनाव लगभग 2.80 लाख मतों से जीत चुके हैं, और लखनऊ जैसे भाजपा के गढ़ में उनका अच्छा प्रभाव हैं।
• पूनम सिन्हा और आचार्य प्रमोद, दोनों ही लखनऊ के नहीं है और यहाँ के मतदाताओं के लिए बाहरी प्रत्याशी हैं। हालांकि दोनों को ही अलग कारणों से लोग जानते जरूर हैं।
• राजनाथ का यहाँ से दोबारा चुनाव लड़ना बहुत पहले घोषित हो गया था, जबकि बाकी दोनों प्रत्याशियों की घोषणा उसी दिन हुई जब राजनाथ ने अपना नामांकन दाखिल किया।
• पूनम सिन्हा की ओर से शत्रुघ्न सिन्हा और उनकी अभिनेत्री बेटी सोनाक्षी सिन्हा प्रचार करने आ सकती हैं। लेकिन क्या कांग्रेस को पूनम सिन्हा के खिलाफ प्रचार करने के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को भी निशाने पर लिया जायेगा?
• लखनऊ में पूर्व में कई फ़िल्मी हस्तियाँ चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं, जैसे जावेद जाफरी (आम आदमी पार्टी, 2014), नफीसा अली (सपा 2009), राज बब्बर (सपा 1999), और मुजफ्फर अली (सपा 1998)। सपा ने 2009 में पहले अभिनेता संजय दत्त को अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन अपराधिक मामले में सजा मिलने के कारण वे चुनाव नहीं लड़ पाए थे, फिर नफीसा अली को चुनाव में उतारा गया था।
• अन्य विशिष्ट लोग जो लखनऊ से चुनाव लड़ चुके हैं उनमे कश्मीर के कर्ण सिंह और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी शामिल हैं।
• लखनऊ से वर्ष 1999 से भाजपा ही जीतती आई है, और यहाँ से भाजपा प्रतिनिधियों में अटल बिहारी वाजपेयी, लालजी टंडन और राजनाथ सिंह प्रमुख हैं।
अब देखना है कि चार्चित क्षेत्रों में शामिल रहे लखनऊ में इस बार आने वाले दिनों में प्रचार का प्रकार क्या होता है। उम्मीद यही थी कि राजनाथ के खिलाफ या तो सपा और कांग्रेस कोई संयुक्त प्रत्याशी उतारेंगे, या दोनों ही दल कोई मजबूत प्रत्याशी घोषित करेंगे।
ऐसा माना जा रहा है कि लखनऊ निवासी कायस्थ वर्ग के लोग पूनम सिन्हा के पक्ष में जा सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी का मैदान में होना उन्हें नुकसान भी पहुंचा सकता है। उनके नाम की घोषणा पर राजनाथ सिंह का कहना था कि ‘किसी को तो चुनाव लड़ना चाहिए, यही लोकतंत्र की सुंदरता है।
हम पूरी गरिमा के साथ चुनाव लड़ेंगे, तहज़ीब जो लखनऊ की बहुत बड़ी धरोहर है, उसको भी हम कायम रखेंगे। मुझे कुछ ज्यादा बोलने की कोई जरूरत नहीं है।’