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ईरान-पाकिस्तान झड़प के मायने क्या हैं

16 जनवरी, 2024 को, ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ईरान विरोधी विद्रोही समूह जैश अल-अदल (न्याय की सेना) के दो गढ़ों पर मिसाइल हमले किए, जो दिसंबर 2023 में ईरानी सुरक्षा बलों (रेवलूशनरी गार्ड कोर) के कर्मियों की हत्या के लिए जिम्मेदार थे।

पाकिस्तान ने इसे ईरान द्वारा अपनी संप्रभुता हमला माना। ईरान द्वारा पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ईरान विरोधी विद्रोही समूह पर हमले के दो दिन बाद ही, पाकिस्तान ने 18 जनवरी, 2024 को जवाबी हमले में ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत के अंदर तथाकथित अलगाववादी आतंकवादियों पर हमले शुरू कर दिए।

पाकिस्तान और ईरान के बीच इस झड़प का समय इस पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है, क्योंकि पश्चिम एशिया और अन्य जगहों पर संघर्ष चल रहे है। बलूच समस्या कोई नई नहीं, बल्कि 75 साल से अधिक पुरानी समस्या है। बलूच मानते हैं कि वे एक अलग क्षेत्र हैं और उनके देश पर पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान का कब्जा है और उनकी जमीन के एक बड़े हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा है। इसके साथ-साथ ईरान, इराक और सीरिया के साथ भी संघर्षरत है।

हमें इस समस्या को 24 फरवरी, 2022 को शुरू हुए रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत है। यह सर्वविदित तथ्य है कि यूक्रेन, अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से रूस के साथ छद्म युद्ध लड़ रहा है, जिसके जल्द ही सुलझने का अनुमान था। लेकिन यह लगभग दो साल तक खिंच चुका है। इस संघर्ष ने युद्ध के लिए अपनी कुछ आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रूस को चीन के और करीब ला दिया। पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक और सामरिक मुद्दों पर शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। इसके अलावा, अमेरिका और ईरान के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं। इस वैश्विक परिस्थिति ने रूस, ईरान और चीन को आपस में एक बहुत अच्छा सहयोगी और रणनीतिक साझेदार बना दिया है।

अमेरिका और पश्चिम द्वारा यूक्रेन को लगातार मिल रहे युद्ध सामग्री की सहायता और समर्थन के कारण रूस-यूक्रेन संघर्ष खिंचता जा रहा है। युद्ध सामग्री की कमी के कारण रूस के लिए इस युद्ध को अनुकूल तरीके से समाप्त करना बहुत मुश्किल हो गया है। ऐसी परिस्थितियों में, इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि रूस समर्थन के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर रहेगा और उनसे सहायता लेगा। रूस अपनी युद्ध सामग्री की आपूर्ति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से चीन का समर्थन ले रहा है और उत्तर कोरिया भी चीन के इशारे पर रूस का समर्थन और सहयोग कर रहा है।

जहां तक ईरान का सवाल है, रूस-यूक्रेन संघर्ष में रूस का समर्थन करने के लिए, ईरान ने अपने सहयोगी चरमपंथी समूहों हमास, हिजबुल्लाह और हूती को अमेरिका के बहुत करीबी सहयोगी इजरायल के खिलाफ खड़ा कर दिया, ताकि अमेरिका और पश्चिम के समक्ष दो मोर्चों पर युद्ध शुरू कर जाए जिससे अमेरिका और पश्चिमी देशों के संसाधन दो भागों में बंट जाएं। हमास-इजरायल संघर्ष शुरू हुए तीन महीने से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन अभी भी हमास खत्म नहीं हुआ है और वह इजरायल की मुश्किलें बढ़ा रहा है।

जैश अल-अदल को अमेरिका और सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त है। यह काफी तार्किक है कि इस्राइल-हमास संघर्ष के बदले में अमेरिका ने ईरान के विरुद्ध युद्ध का एक मोर्चा खोलने के लिए ईरान को पाकिस्तानी धरती पर हमला करने के लिए उकसाने के लिए जैश अल-अदल का इस्तेमाल किया। अमेरिका के संकेत पर, पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की होगी और ईरान पर हमला किया होगा। यद्यपि पाकिस्तान इस समय आर्थिक बदहाली से जूझ रहा, परंतु पाकिस्तान एक परमाणु-सशस्त्र देश है और पाकिस्तान की सामरिक शक्ति ईरान से ज्यादा है।

इसके अलावा, 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद पाकिस्तान और ईरान के रिश्तों में गर्माहट की कमी आने के बावजूद भी रिश्ते लगभग सामान्य ही थे। पाकिस्तान ने बदले में ईरान के खिलाफ इतनी त्वरित कार्यवायी क्यों की, यह एक विचारणीय विषय है। ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान ने इसे अमेरिका के साथ अपने विश्वास और संबंधों को सुधारने और कुछ वित्तीय सहायता प्राप्त करने के अवसर के रूप में लिया, जिसकी पाकिस्तान को सख्त जरूरत है।

ईरान इस जवाबी कारवाई को भूल जाएगा या पूरी तैयारी के साथ पुनः प्रतिशोध लेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा । दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध रखने वाले चीन ने भी ईरान और पाकिस्तान से सायं बरतने की सलाह दी है। यही सलाह ईरान और पाकिस्तान को रूस और तुर्किए ने भी दिया है। अब यह देखना होगा की पाकिस्तान पैसे के लिए अमेरिका का दामन थामेगा या चीन, तुर्किए और रूस की बात मानेगा?

अब विश्व में संघर्ष का विस्तार गंभीरता की ओर बढ़ रहा है क्योंकि रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास/हिजबोलाह/हूती संघर्ष के अलावा कोरियाई प्रायद्वीप, ताइवान-चीन, पाकिस्तान-ईरान और दक्षिण चीन सागर संघर्ष जैसे संघर्ष के कई फ़्लैश बिंदु मौजूद हैं। यदि समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो यह एक और विश्व युद्ध का कारण बन सकता है क्योंकि कई देश परमाणु हथियारों से लैस हैं।

(डॉ दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन अकादमी, अंबझारी नागपूर के पूर्व प्रधान निदेशक है। )

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