न्यूज डेस्क
मध्य प्रदेश के बदले सियासी समीकरण के बीच तीन सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव का भी गणित काफी हद तक साफ हो गया है। कमलनाथ के इस्तीफे से पहले तक एक सीट के लिए मुकाबला रोचक हो गया था लेकिन अब ऐसा नहीं है। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद से बीजेपी अपने दोनों मंसूबों में कामयाब होती दिख रही है।
मध्य प्रदेश में दस मार्च, होली के दिन जब पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना इस्तीफा सार्वजनिक कर पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात किए थे, उसी दिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का जाना तय हो गया था। बीजेपी ने सिंधिया को अपने खेेमे में लाकर एक तीर से कई निशाना साधा था। सिंधिया बीजेपी में आए तो कांग्रेस के बागी हुए 22 विधायक में बीजेपी में शामिल हो गए।
पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे से सिर्फ कमलनाथ सरकार ही नहीं गिरी है, बल्कि उनके 22 करीबी विधायकों के इस्तीफे की वजह से कांग्रेस राज्यसभा में एक आसान सीट भी गंवा सकती है। इसी बीच भाजपा एक बार फिर अपनी दोनों सीटों को बचाए रखने में सफल होगी।
26 मार्च को मध्य प्रदेश में तीन राज्यसभा सीटों के लिए मतदान होना हे। प्रदेश में राजनीतिक उठापटक से पहले किसी भी उम्मीदवार को सीट जीतने के लिए 58 प्रथम वरीयता के वोटों की जरूरत थी। तब कांग्रेस के पास 114 विधायक थे और उसके पास निर्दलीय, सपा और बसपा विधायकों का समर्थन भी था। ऐसे में उसके पास राज्यसभा में दो सीटें जीतने का आसान मौका था। वहीं, भाजपा के पास राज्य में 107 विधायक थे, यानी वह बिना विधायकों को तोड़े सिर्फ एक ही सीट जीत सकती थी। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।
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सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद 20 मार्च को मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर एनपी प्रजापति ने सिंधिया गुट के 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकृत कर लिए। वे पहले ही 6 कैबिनेट मंत्रियों को भी पद से हटा चुके थे। ऐसे में 230 सीटों वाली विधानसभा (जिसमें दो सीटें पहले से ही खाली हैं) में विधायकों की संख्या 206 ही रह गई। मौजूदा समय में भाजपा के पास 106 और कांग्रेस के 92 विधायक हैं। इसके अलावा सपा के एक, बसपा के दो और चार निर्दलीय विधायक हैं।
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राज्यसभा के नए गणित के मुताबिक, किसी भी पार्टी को राज्यसभा में अब एक सीट जीतने के लिए प्रथम वरीयता के 52 वोट पाने होंगे। विधायकों के आंकड़े इस मामले में भाजपा का समर्थन करते हैं। जहां भाजपा को राज्य से दो राज्यसभा सीटें मिलती दिख रही हैं, वहीं कांग्रेस को संभवत: एक सीट से ही संतोष करना पड़ेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले भी भाजपा के पास इस राज्य से दो सीटें थीं और कांग्रेस के पास एक। भाजपा से प्रभात झा और सत्यनारायण जाटिया एमपी से राज्यसभा सांसद थे, तो कांग्रेस से दिग्विजय सिंह।
मध्य प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों के लिए इस बार चार उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। इनमें बीजेपी से ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी तो कांग्रेस से दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया मैदान में हैं।
माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश की राजनीतिक उठापटक का फायदा आरएसएस एक्टिविस्ट और बड़वानी जिले में असिस्टेंट प्रोफेसर सुमेर सिंह सोलंकी को ही होगा। सोलंकी पर हाल ही में कांग्रेस उम्मीदवार बरैया ने आरोप लगाया था कि उन्होंने सरकारी पद पर रहते हुए नामांकन दाखिल किया। हालांकि, रिटर्निंग अफसर ने उनके इन आरोपों को खारिज कर दिया।