न्यूज डेस्क
सोनभद्र में बुधवार को जमीन के लिए जो खूनी खेल खेला गया, वह कुछ महीने या साल की अदावत का परिणाम नहीं था। यह अदावत छह दशक पुरानी है। दो रोटी की जुगाड़ में यहां के आदिवासी छह दशक से जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सोनभद्र का नरसंहार न हुआ होता तो इसके पीछे कौन-कौन लोग रहे हैं, उनका नाम भी नहीं आ पाता। दरअसल इस नरसंहार के स्क्रिप्ट में अहम किरदार बिहार के पूर्व आईएएस अफसर प्रभात मिश्रा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बिहार से आये हुए हथियारबंद लोगों ने वारदात को अंजाम दिया।
जिस जमीन को लेकर खूनी संघर्ष हुआ उसकी खरीद-फरोख्त के पीछे बिहार के एक आईएएस के होने की बात सामने आई है। आदिवासी बहुल सोनभद्र जिले के तमाम इलाकों में भूमिहीन सरकारी जमीन जोतकर गुजर-बसर करते हैं। ओबरा-आदिवासी बहुल जनपद में सदियों से आदिवासियों के जोत कोड़ के तमाम नियमों के आधार पर नजरअंदाज किया जाता रहा है। तमाम सर्वे के बावजूद अधिकारियों की संवेदनहीनता उन्हें भूमिहीन बनाती रही है।
भाजपा के पूर्व सांसद ने किया चौंकाने वाला खुलासा
पूर्व सांसद भाजपा छोटेलाल खरवार ने इस समूचे प्रकरण पर चौंकाने वाले खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि 17 दिसम्बर 1955 को तहसीलदार रबार्ट्सगंज ने ग्राम समाज की 638 बीघा यह जमीन आदर्श कॉपरेटिव सोसाइटी के नाम कर दी थी। बावजूद इसके 1966 में सहकारिता समिति अधिनियम यूपी स्वत: समाप्त हो गया। फिर भी इस सैकड़ों एकड़ जमीन पर काबिज लोग जोतते-बोते रहे।
खरवार ने कहा कि तत्कालीन डीएम व आईएएस अधिकारी प्रभात मिश्रा की नजर इस जमीन पर पड़ी। उस समय सोनभद्र जिला नहीं था, वह मिर्जापुर का ही एक हिस्सा था। प्रभात ने अपने साथ अपनी पत्नी आशा मिश्रा, विनीता शर्मा और भानु शर्मा के नाम पूरी जमीन करा ली।
इस पर नजर मीरजापुर के तत्कालीन डीएम व आईएएस अधिकारी प्रभात मिश्रा की पड़ी। उस समय सोनभद्र जिला नहीं था बल्कि मीरजापुर का ही एक हिस्सा था। डीएम ने 6 सितंबर 1989 में अपने साथ पत्नी आशा मिश्रा , विनीता शर्मा और भानु शर्मा के नाम पूरी जमीन को कर लिया।
इस विवादित जमीन में से 140 बीघा जमीन प्रभात मिश्रा ने 17 अक्टूबर 2017 को ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के नाम बैनामा कर दिया। इसका दाखिल खारिज 6 फरवरी 2019 में हुई है।
ग्राम प्रधान ने जमीन खाली कराने के लिए प्रशासन से अपील की थी लेकिन आदिवासियों के आगे प्रशासन भी फेल हो गया। ऐसा नहीं है कि इस मामले की जानकारी जिला प्रशासन को नहीं थी। जिला प्रशासन को इस बात का बखूबी आशंका थी कि इस विवादित जमीन को लेकर बड़ी वारदात हो सकती है। बावजूद इसके जिला प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की, लिहाजा एक साथ 10 लाशें बिछ गईं, जबकि 20 लोग जख्मी हो गए।
32 ट्रैक्टर और तीन सौ लोगों के साथ कब्जे की कोशिश
अपनी जमीन पर कब्जा करने के लिए ग्राम प्रधान यज्ञदत्त पूरी तैयारी के साथ धुभ्भा टोला पहुंचा था। वह ये जानता था कि जमीन खाली कराना इतना आसान नहीं है। आदिवासी इसका विरोध करेंगे। इसीलिए वह 32 टैक्ट्रर और तीन सौ लोगों के साथ पहुंचा था। इन तीन सौ लोगों में दो दर्जन से अधिक हथियार बंद शामिल थे। इन लोगों को खासतौर से बिहार और झारखंड से बुलाया गया था।
आदिवासियों ने इन लोगों से मोर्चा तो लिया लेकिन असलहे के आगे कमजोर पड़ गए। चश्मदीदों के मुताबिक गांव में एक घंटे तक गोलियां चलती रहीं। आदिवासी जहां लाठी-डंडे से लैस थे तो विरोधी असलहे चला रहे थे।
सोनभद्र के पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार ने इस पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए, तभी दोषी पकड़े जायेंगे। जो भी अधिकारी ,कर्मचारी दोषी हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि मामले की जानकारी जिला अधिकारी समेत जिले के सभी आला अधिकारियों को थी। बावजूद इसके इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया गया।
काली कमाई ठिकाने लगाने का हब है सोनांचल
आईएएस अफसरों व नेताओं ने काली कमाई को निवेश करने के लिए सोनांचल को हब बना लिया है। सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचारी अफसरों और नेताओं ने अपने परिवारीजनों के नाम से काफी जमीन खरीदकर फार्म हाउस, होटल से लेकर खेती तक के प्रॉजेक्ट डाल दिए हैं। जिन जमीनों पर कभी आदिवासियों का अधिकार था, उसको राजस्व कर्मचारियों के सांठगांठ से अपने नाम करवा लिया। पिछले एक दशक से जमीन पर कब्जे को लेकर जंग की कई घटनाएं सोनभद्र के साथ मीरजापुर पहाड़ी इलाकों में हो चुकी हैं।